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Stories related to अन्वेषकों और आविष्कार

Parasram Arora

तारीफ और तालिया

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Unsplash उसकी तारीफ़ भी  क़ी और कई बार उसकी  शान मे तालिया  भी बजाई 

इसके बावजूद किसी का दर्द तुमने कम होते हुए कभी देखा है क्या,=?

©Parasram Arora तारीफ  और तालिया

Parasram Arora

आदम और ईव

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Unsplash वो दिन याद करो 
ज़ब ये आदमी पहले  "आदम "  था 
और स्त्री "ईव " थीं 

तब न आखर था न शब्द न लिपि 
न कोई आपस मे संवाद था 
तब केवल ध्वनि थीं तरंग थीं लय थीं
इसके बाद वो ध्वनि  कब  संगीत बनी कब सरगम मे तब्दील हुई कोई नहीं जानता
लेकिन वो "आदम " तब तक आदमी और  वो ईव स्त्री मे  रूपांतरित 
 हो  गए थे

©Parasram Arora  आदम और ईव

harikesh

अभी और कर तू 1. इस रंग बिरंगी दुनियां में तू भी अपना रंग जमा उढ़ जाग अपने अंधियारे से खुद को नईं राह दिखा आँखें खोल, देख और कुछ कर तू अभी

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White ✍️ 6 वी 🙏


          अभी और कर तू

1. इस रंग बिरंगी दुनियां में तू भी अपना रंग जमा
उढ़ जाग अपने अंधियारे से खुद को नईं राह दिखा 
आँखें खोल, 
देख और कुछ कर तू 
अभी और और थोड़ा और कर तू

2. तू खुद में झाँक जरा,
और खुद पर अनुसंधान कर 
यहां जो खुद से जागा,
उसने नया दिखाया आविष्कार
यहां मन बिखरा तेरा,
 इक्कटा कर तू 
अभी और कर तू

3. मन बिखरा, 
समय निकला,
कभी खुद को पूछा, 
क्या किया 
साथ तेरे जो आज है कल कहां,
पाजेब देख, 
क्या जमा किया 
कुछ नही, 
कुछ नही,
 फिर क्या तू
अभी और कर तू

4. जिसने कल किया, 
आज उसी का तो चर्चा है
तू इंशा वो भी इंशा, 
जिसका दरो दीवार पे पर्चा है 
खुद से, 
खुद के, 
समय से छल न कर तू
अभी और और थोड़ा और कर तू

✍️

©harikesh अभी और कर तू
1. इस रंग बिरंगी दुनियां में तू भी अपना रंग जमा
उढ़ जाग अपने अंधियारे से खुद को नईं राह दिखा 
आँखें खोल, 
देख और कुछ कर तू 
अभी

Parasram Arora

आदर्श और संवेदनाये

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White हमारे  आदर्शी को पस्तझनी देने मे समर्थ है हमानी विचलित  चेतनाये
 
तभी तों  रेत मे मुंह छुपा कर रहती है  हमारी अनसुलझी समस्याएं 

जबकि अंतकाल तक हम फेरते रहते है मुर्ख 
सपनो की  मालाये
शायद इसीलीये  डूब चुके है हमारे भाव  और ख़ो चुकी है  संवेदनाये

©Parasram Arora आदर्श और संवेदनाये

Ashok Verma "Hamdard"

#गांव और शहर

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White अच्छे थे वो, कच्चे घर भी,
इमारतों में, इंतजाम बहुत है!!

गाँव की गलियाँ, खाली पड़ी हैं,
शहरों में, सामान बहुत है!!

खुली हवा में, जो चैन मिलता,
बंद कमरों में, धुआँ बहुत है!!

न रिश्तों की अब, गर्मी बची है,
पर तकनीकी, सम्मान बहुत है!!

दादी-नानी की बातें छूटीं,
 मोबाईल में ही ज्ञान बहुत है!!

सच्ची हंसी, कम दिखती अब,
लेकिन चेहरे पर ,नकाब बहुत है!!

सुख-सुविधाओं से घिरा इंसान,
पर दिलों में, अरमान बहुत है!!

दौड़ रही दुनिया, आगे बढ़ने को,
फिर भी जीने में, थकान बहुत है!!

सादगी की जो मिठास थी कभी,
अब दिखावे में, ईमान बहुत है!!

अकेले होते लोग भीड़ में,
फिर भी दिखते, महान बहुत है!!

*अशोक वर्मा "हमदर्द"*(कोलकाता)

©Ashok Verma "Hamdard" #गांव और शहर
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