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ck bable
इन्सान को लगता है मन्दिर -मस्जिद, चर्च -गुरुद्वारे में धर्म बसते हैं इसलिए हम मन के डर की आदत को आस्था कहते हैं ! , ©ck bable #flood इन्सान को लगता है मन्दिर -मस्जिद, चर्च -गुरुद्वारे में धर्म बसते हैं इसलिए हम मन के डर की आदत को आस्था कहते हैं !
Shahzad
Anuj Jain
// एक तुम हो और एक ही खुदा बीच में यह लोग कौन हैं कहते हैं खुदा का रास्ता बताएंगे तुमको // पूरी कविता Caption mein एक तुम हो और एक ही खुदा बीच में यह लोग कौन हैं कहते हैं खुदा का रास्ता बताएंगे तुमको क्यों
Saurav Upadhyay
Avinash ke 'अल्फ़ाज'
भाषण देते, आश्वासन देते, कुशासन देते नेता जी. चुनावों में वादे भी करते, और फिर भूल भी जाते नेता जी. मुद्दों की कभी बात न करते, बस बयानबाजी करते नेता जी. हिन्दू-मुस्लिम में फर्क दिखाकर, आपस में लड़वाते नेता जी. धर्म की उनको तनिक फिकर न, पर दिखलाते नेता जी. मन्दिर, मस्जिद और गुरुद्वारे में हमें उलझाते नेता जी. (Read full poem in #Caption ) **** नेता जी !!! **** भाषण देते, आश्वासन देते, कुशासन देते नेता जी. चुनावों में वादे भी करते, और फिर भूल भी जाते नेता जी. मुद्दों की कभी
prahlad mandal
शीर्षक- माता-पिता ही भगवान है। ढूंढ रहे हो मंदिर , मस्जिद और गुरूद्वारे में , वहां तो सिर्फ श्रद्धा का वास है । मत ढूंढो कही प्रभु का वास , घर जाकर पुछो उनका हालचाल जो बैठे हैं तेरे आश में। क्योंकि माता-पिता ही भगवान है। भूख लगे तो चलें जाना कभी मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे, बिन मांगे कोई एक तिनका तक नहीं देगा । वहीं भूख में तुम मुस्कुराते हुए घर में घुस जाना, तेरी मुस्कुराहट में तेरे भूख को पहचान लेगा। क्योंकि माता-पिता ही भगवान है। कभी किसी चीज की जरूरत पड़ी तो , मांग लेना मंदिर,मस्जिद, गुरुद्वारे में जाकर। खुद मांगकर मेहनत खुद से करना पड़ेगा। बिन कहे ही वो तेरे छोटी बड़ी जरूरत को पहचान लेता हैं। अपनी जरूरत को छोड़कर , वो तेरे जरूरत को पूरा कर देता है। क्योंकि माता-पिता ही भगवान है। मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे सिर्फ श्रद्धा का वास है। क्योंकि माता-पिता ही भगवान है। ******* स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित प्रहलाद मंडल कसवा गोड्डा ,गोड्डा ,झारखंड ई-मेल- mprahlad2003@gmail.com शीर्षक- माता-पिता ही भगवान है। ढूंढ रहे हो मंदिर , मस्जिद और गुरूद्वारे में , वहां तो सिर्फ श्रद्धा का वास है । मत ढूंढो कही प्रभु का वास
PRASHANT KUMAR
रजनीश "स्वच्छंद"
मैं एक शोर हूँ।। हुजूम का हिस्सा, बिन सोच लिए, मैं तो बस एक शोर हूँ। चारों दिशाएं, धरती-अम्बर, मैं तो सुनो चहुँओर हूँ। सुनाई दे जाता हूँ, बड़े बड़े भोंपुओं से, टीवी और अखबार में। बीच सड़क, पताकों के बीच, कभी संसद भवन में, हां, कभी तो सरकार में। बहुत सारे हैं रूप मेरे, सत्ता के गलियारे में, मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में। गेरुआ, हरा, सफेद, कोई भी दे दो रंग, हूँ समाया मैं सारे में। बन भूख कभी होंठों पे आता, बन विकास नभ में छाता, खेतों में पानी का शोर हूँ। बस कागज़ पे उकेरा जाता हूँ, सच की धरातल दूर बड़ी, बिन बारीश नाचता मोर हूँ। अभी माहौल चुनावी है, कार, ट्रक, और बसों पर, दीवारों पर चिपका मिलता हूँ। हसिया हथौड़ा तीर लालटेन, हाथ साईकल और हाथी, कमल सा खिलता मिलता हूँ। बस चिन्ह बदलते रहते हैं, स्वरूप मेरा तो एक रहा, सच के हुए दर्शन ही नहीं। मान कलंकित, मर्यादा कलंकित, सबने मेरा साथ लिया, पर सच दिखलाता दर्पण भी नहीं। कोई जीते या हारे कोई, खुशी के पल या मातम कोई, हर हाल में जीत मैं जाता हूँ। फिर नए सिरे से, ले फिर से एक पुनर्जन्म, कुछ पल बीत मैं आता हूँ। सियासत हारी, लियाक़त हारी, कभी रात कभी भोर हूँ। चारों दिशाएं, धरती-अम्बर, मैं तो सुनो चहुंओर हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" मैं एक शोर हूँ।। हुजूम का हिस्सा, बिन सोच लिए, मैं तो बस एक शोर हूँ। चारों दिशाएं, धरती-अम्बर, मैं तो सुनो चहुँओर हूँ।
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
🌷ये मुफ़्त में लंगर लगाते हैं🌷 (कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) 🌷ये मुफ़्त में लंगर लगाते हैं🌷 सिख एक ऐसा कौम है, जो अपने कर्म से जाने जाते हैं, ख्याति पाना इनका शौक नहीं, बस अपना धर्म निभाते हैं। सना
RadhakrishnPriya Deepika
फूलों सी मैं खिलती हुई "फूलों सी" एक कली से, बनी एक "खूबसूरत" सा "फूल" हूँ। डाली पर छोटी सी कली से लेकर.., मैं बनती एक खिला हुआ फूल हूँ..! ये जानते हुए भी की डाली से टूटने पर.. मैं मुरझा सी जाऊंगी फिर भी, मैं डाली से तोड़ी जाती हूँ..! कभी मंदिरों में रखी भगवान की प्रतिमा के चरणों मे रखी जाती हूँ, तो कभी भगवान की प्रतिमा पर माला बन पहनाई जाती हूँ। कभी गुरुद्वारे में रखे "गुरुग्रंथ" पर सजाई जाती हूँ , तो कभी दरगाह में रखे कुरान पर सजती हूँ। कभी चर्च में बन कर गुलदस्ता खिलती हूँ, तो कभी मैं महापुरुषों के चरणों मे अर्पण की जाती हूँ। कभी किसी की डोली निकले पर फेंकी जाती हूँ, तो कभी किसी की अर्थी उठने पर बरसाई जाती हूँ। कभी तिरंगे के सम्मान में बंधी जाती हूँ, तो कभी नेता-अभिनेता पर वर्षाई जाती हूँ। कभी किसी के बालों में गजरा बन मैं खिलती हूँ, तो कभी "रोज-डे" पर प्रेम का प्रतीक मानी जाती हूँ। ना मैं हिन्दू का प्रतीक हूँ, ना ही मैं मुस्लिम का प्रतीक हूँ, ना ही सिखों का प्रतीक हूँ, ना ही मैं ईसाई का प्रतीक हूँ। मैं तो "फूलों सी" बनी एक फूल हूँ.., सहस्त्र काटे होने पर भी मैं खिलती हूँ..! कभी मंदिर, कभी गुरुद्वारे, कभी दरगाह तो कभी चर्च में, एक समान ही मैं अर्पण व समर्पण की जाती हूँ। मेरी कोई जाति नही मैं तो सबमे एक समान मानी जाती हूँ, नहीं रखती मैं किसी मे भी भेदभाव.., मैं तो हर जगह सिर्फ अपनी सुगंध महकाती हूँ। मैं खिलती हुई "फूलों सी" कली से, बनी एक "खूबसूरत" सा फूल हूँ। ©राधाकृष्णप्रिय Deepika🌠 मैं खिलती हुई "फूलों सी" एक कली से, बनी एक "खूबसूरत" सा "फूल