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Jyoti

#leafbook # प्रकृति🌿🍃

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Unsplash  जब आप प्रकृति🌿🍃से सच्चा करते हैं, 
तो आप को दुनिया की
हर जगह खुबसूरत लगेगी।

©Jyoti #leafbook # प्रकृति🌿🍃

चाँदनी

# पाप, कर्म, अधर्म

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White कहते है ख़ुद से प्रेम करो
ख़ुद को रोज I loveyself बोलो
ठीक है प्रेम करो खूब करो पर

सात दिनों मे एक दिन 
खुद से नफ़रत कर के देखो
और उस एक दिन के लिए बोल के
देखो I hate myself

तुम्हे उस रोज चाहे जान के या
अंजाने मे किया गया पाप, अन्याय
 और बिना रक्त गिराए हत्त्या नज़र आयेगा

अगर तुम इंकार करते हो तो
बेशक तुम हैवान हो

©चाँदनी # पाप, कर्म, अधर्म

Asheesh Mishra

कर्म

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Kavi Himanshu Pandey

कर्म... #beingoriginal Hindi

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White हसरत, दौलत, शोहरत, सब कुछ कमा ले ज़िंदगी में, 
मगर अंत सफ़र में कर्मों की कहानी याद आती है! 
....... Er. Himanshu Pandey

©Kavi Himanshu Pandey कर्म... #beingoriginal #NojotoHindi

Uttam Bajpai

हिंदी कॉमेडीचाचा की वाइफ का नाम क्या है

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नवनीत ठाकुर

White दरख्त काट के हमने शहर बसाए,
अब हर सांस को तरसने का वक्त बना रखा है।

दरिया रो रहे हैं, पहाड़ टूट रहे हैं,
हमने तरक्की के नाम पर ज़हर बना रखा है।

जंगल जलाकर हमने इमारतें खड़ी कीं,
फिर भी छांव को तरसने का दौर बना रखा है।

 हवा, पानी, धरती का हाल पूछो ज़रा,
हमने कुदरत को अपने बाप की जागीर बना रखा है।

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति

Vinod Mishra

"खुशी मानव की अपनी प्रकृति है." #विनोद #मिश्र #मोटिवेशन ✍️

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नीतू सिंह

# धर्म # कर्म भक्ति

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Ghanshyam Ratre

प्रकृति की सुंदरता

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नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

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जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
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