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Parul (kiran)Yadav
White " मुझे मत ले के चल तू इन हसीं वादियों में मैंने कहा कोई ऐसा ख्वाब देखा है , मुझे तो तेरी बाँहो का सहारा ही बहुत है , मेरी दुनिया तो इन बाँहो में आकर ही सिमट जाती है , मेरा सुकून इन वादियों में नही , तेरे प्यार में मिलता है ,..... तेरी हँसी में मिलता है , तेरी खुशी में मिलता है , तुझे देखकर मिलता है , तेरे संग जी कर मिलता है , तेरे बिना बहुत बेमानी लगती है ये हसीं वादियां भी ....❤️❤️❤️❤️ ©Parul (kiran)Yadav #mountain #प्यार #रिश्ता #बेमानी #हसीं_वादियां #नोजोतो #हिंदी #मेरी_कलम_से✍️ Sethi Ji Anshu writer SIDDHARTH.SHENDE.sid hardik Mahaj
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
बादल सिंह 'कलमगार'
अदनासा-
White लोग मुझे ज़रूर जानते तो होंगे मगर जिन्हें मेरी कुछ बातें पसंद नही आती क्या ही करूं मेरी पसंद कुछ दिगर है उन्हें कोई नापसंदगी तक नही आती ©अदनासा- #हिंदी #जानते #दोस्त #Dosti #दिगर #उन्हें #जिन्हें #Instagram #Facebook #अदनासा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
लिए त्रिशूल हाथों में गले में सर्प डाले हैं । सुना है यार हमने भी यही वो डमरु वाले हैं ।।१ नज़र अब कुछ इधर डालें लगा दो अर्ज़ मेरी भी। सुना हमने उसी दर से सभी पाते निवाले हैं ।।२ यही हमको निकालेंगे कभी बेटे बडे़ होकर । अभी जिनके लिए हमने यहाँ छोडे़ निवाले हैं ।।३ नहीं रोने दिया उनको पिया खुद आँख का पानी । दिखाते आँख अब वो हैं कि हम उनके हवाले हैं ।।४ किसी को क्या ख़बर पाला है मैंने कैसे बच्चों को वहीं बच्चे मेरी पगड़ी पे अब कीचड़ उछाले हैं।।५ यहाँ तुमसे भला सुंदर बताओ और क्या जग में । तुम्हारे नाम पर सजते यहाँ सारे शिवाले हैं ।।६ डगर अपनी चला चल तू न कर परवाह मंजिल की । तेरे नज़दीक आते दिख रहे मुझको उजाले हैं । ७ प्रखर भाता नहीं बर्गर उन्हें भाता नहीं पिज्जा । घरों में रोटियों के जिनके पड़ते रोज़ लाले हैं ।।९ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR लिए त्रिशूल हाथों में गले में सर्प डाले हैं । सुना है यार हमने भी यही वो डमरु वाले हैं ।।१ नज़र अब कुछ इधर डालें लगा द
Pratibha Dwivedi urf muskan
hanuman jayanti 2024 जिनके हृदय में राम लखन सिया संग विराजें जिनको भजते ही काल डर भागे ऐसे मारुति नंदन अंजनी के लाला आपको बारंबार प्रणाम हमारा हे राम के दास कहलाने वाले शिव के अवतारी श्रीराम के पुजारी भक्त शिरोमणि बजरंग बली संकटमोचन जय हनुमान बुद्धि सबकी पावन कर दो सबको रोग शोक भयमुक्त कर दो प्रगति पथ पर दौड़े फिर हिंदुस्तान यही विनती करती है "मुस्कान" सुन लीजो हे कृपा निधान जय हनुमान जय जय हनुमान जय हनुमान जय जय हनुमान हनुमान जयंती की अनंत शुभकामनाएंँ 🙏 प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान© 23 अप्रैल 2024 ©Pratibha Dwivedi urf muskan #hanumanjayanti24 #हनुमान #हनुमानजन्मोत्सव #प्रतिभाउवाच #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कान© #प्रतिभाद्विवेदीमुस्कान© #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कानकीक
Shaarang Deepak
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थी ।।२ हटे कैसे नज़र मेरी हँसी रुख से । जिसे अब देख तर जाने की जल्दी थी ।।३ न था अपना कोई उसका मगर फिर भी । उसे हर रोज घर जाने की जल्दी थी ।।४ सँवरना देखकर तेरा मुझे लगता । तुझे दिल में उतर जाने की जल्दी थी ।।५ बताती हार है अब उन महाशय की । उन्हें भी तो मुकर जाने की जल्दी थी ।।६ नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।७ सही से खिल नहीं पाये सुमन डाली । जमीं पे जो बिखर जाने की जल्दी थी ।।८ लगाये आज हल्दी चंदन वो बैठे । न जाने क्यों निखर जाने की जल्दी थी ।।९ किये सब धाम के दर्शन प्रखर ऐसे । खब़र किसको निकर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ