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Ankur tiwari
White दीवानों के दिलों में साज जब जब कोई बजता हैं सनम की आहटों का रूह को भी इल्म रहता हैं मोहब्बत में निगाहें हारकर भी जीत जाती हैं दिल का फलसफा यह हैं कि अक्सर हार जाता हैं ©Ankur tiwari #Free दीवानों के दिलों में साज जब जब कोई बजता हैं सनम की आहटों का रूह को भी इल्म रहता हैं मोहब्बत में निगाहें हारकर भी जीत जाती हैं दिल का
Rabindra Kumar Ram
यूं हासिल होने को हम भी हो जाये , हमें मुहब्बत से भी चाहे कभी कोई . " ये इल्म तेरा यकीनन इल्म तेरा ही हो , तुम हमारे ख़सारे पे ग़ैर तो फ़रमाओ . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram यूं हासिल होने को हम भी हो जाये , हमें मुहब्बत से भी चाहे कभी कोई . " ये इल्म तेरा यकीनन इल्म तेरा ही हो , तुम हमारे ख़सारे पे ग़ैर तो फ़रम
Bharat Bhushan pathak
आज दर्द सब झेल लेते हैं, शायद कब्र लाजवाब होगी। आज बैचेनी ही बैचेनी है, शायद कब्र में पुरसुकूँ लेटूँ। इल्म मुहब्बत जो, सिखाते हैं जहाँवाले, वो नफ़रतों की , कई किताब पढ़ बैठे हैं। ©Bharat Bhushan pathak #फलसफा_जिंदगी_का_ऐसा_भी #जीवनकाअफ़साना #जीवनअनुभव #यथार्थ #nojohindi #andaazebayaan#kuchhalfaaz#untold आज दर्द सब झेल लेते हैं, शायद कब्र ल
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** दरीचे *** " गिले-शिकवे तमाम रखेंगे , मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे , फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये , बात जो भी फिर गिला - शिकवा का क्या किया जाये , यूं रोज़ आयेदिन तुमसे सामना होता ही रहेगा फिर किसी ना किसी बहाने , मुहब्बत की पुर-ख़ुलूस मुहब्बत ही रहेगा , दिल को दिलासा ना देते तो क्या देते , इस एवज में दिल को तुझे मुहब्बत करने से सुधार तो नहीं देते , यूं देखना भी फिर देखना ही हैं यूं तसव्वुर के ख्यालों से , फिर किसी और की तस्बीर लगा तो नहीं देते , जो है सो है फिर किसी और को पनाह तो नहीं देते , दिल फिर इस इल्म से गवारा क्या कर लें , तुझे छोड़ के फिर से इश्क़-मुहब्बत दुबारा कर लें . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** दरीचे *** " गिले-शिकवे तमाम रखेंगे , मुहब्बत के दरीचे तमाम रखेंगे , फिर तुझसे कैसे और क्या मिला जाये , बात जो भी फिर गिल
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Village Life ग़ज़ल :- रखेगा याद हर कोई शहादत का महीना है । अदब से पेश आ इंसा इबादत का महीना है ।।१ नसीहत दे गये हमको वतन पे देख लो मिटकर । चलूँ अब चाल मैं उनकी की चाहत का महीना है ।।२ चुनावी हो रहे दंगल गली घर में लगे पर्चे । करो मतदान तुम बस अब सियासत का महीना है ।।३ लड़ेगी आँख तेरी भी किसी दिन तो हसीनों से । जिगर तू थाम लेना बस मुहब्बत का महीना है ।।४ अभी आयी जवानी है सँभलकर तुम जरा चलना । कदम बलखा न जाये अब नज़ाकत का महीना है ।।५ खिले जो फूल गुलशन में उन्हें कच्ची कली मानों भँवर को भी बता दो अब हिफ़ाज़त का महीना है ।।६ प्रखर से सीख लो कुछ इल्म झूठी इन रिवायतों के । बता देगा तुम्हें वो भी तिज़ारत का महीना है ।।७ २८/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- रखेगा याद हर कोई शहादत का महीना है । अदब से पेश आ इंसा इबादत का महीना है ।।१ नसीहत दे गये हमको वतन पे देख लो मिटकर । चलूँ अब चाल मैं
Bharat Bhushan pathak
बुत तराशते हैं जो पत्थर तराश हैं। तारों में तू कहीं है हम ढूँढते आकाश हैं। रोज निहारते हैं आईना जब ढूँढते तुझे- इल्म तब होता है तू रहता है मेरी हर साँस में। ©Bharat Bhushan pathak #sunlight बुत तराशते हैं जो पत्थर तराश हैं। तारों में तू कहीं है हम ढूँढते आकाश हैं। रोज निहारते हैं आईना जब ढूँढते तुझे- इल्म तब होता है त