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Gaurav pawar

#Sad_Status अच्छाई और बुराइ हर इंसान के अंदर होती है।

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White अच्छाई और बुराइ हर इंसान के अंदर होती है। एक बार एक महात्मा ने सफेद पेपर एक दीवार के ऊपर चिपकाया और उस पर एक काली डोट लगा दी और लोगों से पूछा कि बताओ तुम्हें इसमें क्या दिखाई दे रहा है? लोगों ने कहा कि हमें काली डोट दिखाई दे रही है। इस पर महात्मा ने कहा बड़ी अजीब बात है । तुम्हे इतना बड़ा सफेद पेपर नहीं दिखाई दिया जो तुम्हे काली डोट दिखाई दी, लोग बड़े शर्मिंदा हुए, महात्मा से माफी भी मांगी। महात्मा का कहना था यही आज की सच्चाई है। इंसान की अच्छाइयां किसी को नज़र नहीं आती, लेकिन उसकी एक छोटी सी ग़लती उसको पकड़ कर उनमें बुराइयां नज़र आने लगती है और यही आज की वास्तविकता भी है

©Gaurav pawar #Sad_Status अच्छाई और बुराइ हर इंसान के अंदर होती है।

रजनीश "स्वच्छंद"

नयन नहीं जो भींगते, जब देखा संताप।
निज मानव क्या मानना, क्या अंतर पशु आप।।

©रजनीश "स्वच्छंद" #आदमी #इंसान

अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

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‌Abdhesh prajapati

आदमी को आदमी होने में

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White एक पल नहीं लगता
 इस दुनिया से बिदा होने में फिर भी कितना गुरूर है
आदमी को आदमी होने में..?

©‌Abdhesh prajapati आदमी को आदमी होने में

अनिल कसेर "उजाला"

आदमी

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संजय जालिम " आज़मगढी"

## इंसान##

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White हमें सच्चा प्यार सिर्फ एक बार ही मिलता है, 
मन में ढ़ेरों सपने अपने हर इंसान बुनता है, 
कभी कभी ऐसे  दोराहे पर खड़ा होता है
जहाँ कुदरत के आगे हर इंसान बेबस होता है
ऐसे समय पर " जालिम " अंजाम बुरा होता है

©संजय जालिम " आज़मगढी" ## इंसान##

पूर्वार्थ

#आदमी

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White शादीशुदा पुरुष का संघर्ष

शादीशुदा स्त्री की पीड़ा पर,सैकड़ों कविताएं गढ़ी गईं,
कहानियों में बसी उसकी वेदना,हर बार सम्मान से पढ़ी गईं।

पर शादीशुदा पुरुष का क्या?क्या उसके दुख कोई सुनता है?
जो हंसता है सबके सामने,क्या भीतर से कभी खिलता है?

वो घर का स्तंभ है, छत है, दीवार है,उसके कांधों पर हर जिम्मेदारी का भार है।
सुबह से रात तक भागता दौड़ता,सपनों से पहले, अपनों का ख्याल करता।

हर सुबह उठकर वो काम पर जाता,दबाव के पहाड़ तले, खुद को छिपाता।
दफ्तर की राजनीति, बॉस की फटकार,सब सहकर भी लाता है घर का त्योहार।

घर में जो रोटी की खुशबू आती है,वो उसके पसीने की गंध से मिलती है।
बच्चों की मुस्कान, पत्नी की खुशी,उसकी दुनिया बस इन्हीं में सिमटती है।

पर क्या कभी किसी ने देखा है,उसकी आंखों में छिपा दर्द?
उसके सपने, उसकी ख्वाहिशें,कहीं धुंधले पड़ गए हर कदम।

वो भी थकता है, पर कह नहीं पाता,दर्द से जूझता है, पर रो नहीं पाता।
उसकी मेहनत को ना कोई समझता,उसके संघर्ष को बस समाज अनदेखा करता।

जब पत्नी थकती है, दुनिया उसे सहलाती,जब पति थकता है, चुप्पी उसे खा जाती।
कहां है वो कंधा, जिस पर वो सिर टिकाए?कहां है वो सुकून, जो उसका मन बहलाए?

कभी-कभी अपमान की आंधियां आती हैं,घर के भीतर भी ताने सुनाई जाती हैं।
"तुम तो बस कमाने की मशीन हो,क्या और कोई संवेदना तुम्हारे पास नहीं हो?"

आरोप, अपेक्षा और तुलना के बाण,हर दिन उसकी आत्मा पर चलते हैं तीर समान।
कभी खुद को समझा नहीं पाता,कभी सबकी उम्मीदों का भार सह जाता।

पर ये समाज उसे हीरो नहीं मानता,ना उसकी तकलीफ पर कोई गीत गाता।
जो देता है सबको सपनों का सहारा,वो खुद अकेला क्यों रह जाता है बेचारा?

वो भी इंसान है, पत्थर नहीं,उसके भी अरमान हैं, कोई समझ नहीं।
उसकी चुप्पी में एक गहरा समंदर है,उसका हर दिन, एक नया संघर्ष है।

तो चलो, अब उसकी भी कहानी लिखी जाए,उसकी वेदना को भी स्वर दिए जाएं।
शादीशुदा पुरुष को भी सम्मान मिले,उसकी मेहनत और संघर्ष को सराहा जाए।

वो भी जीता है, वो भी सहता है,उसकी भी कहानी अब कही जाए।
क्योंकि वो भी समाज का आधार है,उसके बिना हर परिवार अधूरा संसार है।

©पूर्वार्थ #आदमी

संजय जालिम " आज़मगढी"

# # इंसान##

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White शांत सीधे सादे रहने का दौर नहीं
लोग हमें काफ़िर आज समझते है
 उन्हें क्या पता , किस ग़लतफ़ैमि में बैठे है
"जालिम" आज हम"इंसान" के वेश
में सबसे जहरीले साँप के साथ रहते है...

©Sanjay jalim # # इंसान##

Kulvant Kumar

ll संघर्ष और तजुर्बा हर इंसान के जीवन में नहीं आता ll

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White ll संघर्ष और तजुर्बा हर इंसान के जीवन में नहीं आता ll

©Kulvant Kumar ll संघर्ष और तजुर्बा हर इंसान के जीवन में नहीं आता ll

अनिल कसेर "उजाला"

इंसान

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