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Hariom
सुंदर था । सुनी मांग और सुना माथा देखकर उसके विधवा या कुंवारी होने का अंदाजा भर ही लगाया जा सकता था। सूती साड़ी को उसने धोती की तरह कस कर बांध रखा था जिससे उसे यहां तक आने में, कम से कम कपड़े की वजह से कोई परेशानी नहीं हुई थी। कमरे के दाएं तरफ एक लकड़ी की आलमारी पड़ी हुई थी। उसने आगे बढ़ के अलमारी के पल्ले को अपनी ओर खिंचा, और इसी के साथ जैसे कयामत आ गई वहां। उस सन्नाटे में एक चीख गूंज गई। ये चीख किसी और की नही बल्कि उस औरत की ही थी। अचानक ही उसपर किसी ने हमला किया था। एक हाथ से चोट वाले स्थान को पकड़े वह लड़खड़ा कर पीछे हट गई और लालटेन जमीन पर रख कर वहीं दीवार की टेक लिए बैठ गई। "आह 3 Period।" औरत के मुंह से एक कराह निकली। "मां 4 Period हे भगवान ! ये मैने क्या कर दिया..?" अपने दोनो हाथों में कसकर पकड़े आयताकार तख्ते जैसी चीज़ को, हमलावर ने हड़बड़ा कर एक तरफ फेंका और उस औरत पर झुक गई। , Page ©Hariom #RanbirAlia दरवाजे के पीछे पार्ट 5
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साये ने अपने पैरों से ही बिना झुके उस जगह से पत्तों के ढेर को हटाना शुरू किया। जल्द ही वो दिख गया उसे । वहां फर्श के स्थान पर एक बड़ा सा लंबा चौड़ा लकड़ी का टुकड़ा पड़ा था जो शायद उस साए ने ही वहां रखा था। आखिर क्या करना चाहती थी वो? कुछ छुपाना? मगर किस से? इस जगह कोई इंसानी साया तो दूर, कोई प्रेत आत्मा भी शायद ही आना पसंद करती। वह साया ज़मीन पर झुक सा गया। उसने लकड़ी के टुकड़े को ठेलकर एक तरफ हटाया । उसके हांफने के अंदाज से साफ जाहिर था कि लकड़ी का वह टुकड़ा हल्का फुल्का तो हरगिज भी नही था और उसे हटाने में उस साए को अपनी सारी शक्ति समेट कर ज़ोर लगाना पड़ा था। टुकड़े के हटते ही उस जगह एक गड्ढा सा नज़र आया, जो इतना बड़ा तो था ही कि एक इंसान वहां से आराम से पार हो सके। उस साए ने एक पल को कुछ सोचा और आहिस्ते से वहीं बैठ गई। उसने घूम कर एक पैर धीरे से गड्ढे में नीचे डाला और फिर आश्चर्यजनक रूप से, एक - एक कर के कदम नीचे रखती, वह उस गड्ढे में समाती चली गई। कुछ पलों के बाद ही वहां ऐसा सन्नाटा छाया था जैसे वहां कभी कोई था ही नही। दरअसल वह गड्ढा एक गुप्त कमरे में जाती सीढ़ियों का मुहाना था। गड्ढे में नीचे को जाती सीढियां बनी हुई थी जो , Page ©Hariom #humantouch दरवाजे के पीछे । पार्ट 3
Hariom
नीचे एक कमरे में जाकर खत्म होती थी। शायद उस कमरे से कोई रास्ता भी होगा, जो गुप्त रूप से इस खंडहर के बाहर भी जाता हो। लेकिन उससे इस साए को न तो कोई मतलब था, ना ही जरूरत। उसे तो बस उस गुप्त कक्ष की जरूरत थी जिसका पता उसके अलावा किसी को कभी न लगे और यहां उसकी तलाश पूरी हुई थी। जिस तरह से बिना रुके वह यहां तक पहुंचा था, उससे साफ जाहिर था कि पहली बार तो वह यहां नहीं आ रहा है। ये गुप्त रास्ता और गुप्त कक्ष, शायद कभी हवेली के मालिक ने यह सोचकर बनाया होगा कि किसी तरह का भी हमला होने पर वह गुप्त रूप से सुरक्षित हवेली से बाहर निकल कर जान बचा सके। अब ये उसके कितने काम आया होगा ये तो इतिहास के गर्भ में ही छुपा है। कमरे में उतरते ही उस साए ने अपने आंचल में बंधी माचिस की डिबिया निकाली और उसे जलाया। कमरे में हल्की सी पीली रौशनी फैल गई। कमरे के एक कोने में पड़े लालटेन को उसने रौशन किया और लालटेन को उठाए आगे बढ़ी। अब उसे साया कहना कहीं से भी तर्क संगत नहीं होगा, क्योंकि लालटेन की रौशनी में उसे साफ - साफ पहचाना जा सकता था। सांवला रंग और भरे भरे शरीर की स्वामिनी गंगा। अपने काले लंबे बालों को सर के पीछे की तरफ खींचकर एक बड़ा सा जुड़ा बनाया हुआ था उसने। चेहरा श्रृंगार विहीन लेकिन , Page ©Hariom #humantouch दरवाजे के पीछे पार्ट 4
Ràñsh Singh Sàtyàm
और उन्हे बताना मैं आया उस त्यौहार में जरूर था।। खाया पिया और नाच्या भी सबको बहुत खूब था।। तेरे बिदाई के साथ मेरी बिदाई भी हुई बहुत खूब थी।। रोया था सारा जमाना पर आंसू । तुम्हारे आंखों में भी बहुत खूब थी।।। ©Ràñsh Singh Sàtyàm दिल के टूटे अल्फाज पार्ट 3 #lightindark