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Sakshi CHAUHAN
Pushpvritiya
कहते हैं पिता उस दानी को समसुप समान हृदय होगा, प्राण प्रिय सुता बिन उसका, कैसा अरूणोदय होगा...... कि बीज दिया और लहू भी और स्वेद भी और नीर भी, और स्वांस भी दी होगी अवश्य इसमें न कोई संशय होगा...... फिर क्यूं तुमने जीवन देकर, यूं जड़ता का मान किया, हे पिता...यूं निज सुता का, ऐसा कन्यादान किया........ कि धिक्कारों में सो लेगी, वो हाहाकार में डोलेगी, और पिता से बोलेगी......... कि रूधिर भी था और स्वांस भी, अस्थियां और मास भी....... जीवन होकर भी प्राण विहीन, ऐसी क्यूं मैं मानी गई, क्यूं शास्त्रार्थ तुम्हारे में, मैं मानुष न जानी गई...... कि अस्थियां भी टूट रही, मास देह भी छोड़ रहा, बहा रूधिर कईयों दशक, और स्वांस स्वांस को जोड़ रहा..... तुम नभ मेरा आधार भी थे, अब मैं हूं आधार बिना, अब आओ भी तो धन लेकर धन देकर ही जल पीना............. तेरे वचनों की अस्तु थी, क्या मैं दान की वस्तु थी........... अवमान जीया,अपमान पीया निज को जीवित समशान किया, और हे पिता कहो निज सुता का क्यूं ऐसा कन्यादान किया.......... @पुष्पवृतियां . ©Pushpvritiya #दानकीवस्तु कहते हैं पिता उस दानी को समसुप ही हृदय होगा, प्राण प्रिय सुता बिन उसका, कैसा अरूणोदय होगा...... कि बीज दिया और लहू भी