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संजय जालिम " आज़मगढी"
White अफ़साना दिल का कहूँ कैसे दीवाना दिल को रखू कैसे माना मैं मुफ़्लिस् ,काफिर हु ज़माने का उनके सिवा "जालिम" उल्फ़त में जियु कैसे ©संजय जालिम " आज़मगढी" # जीयु कैसे#
# जीयु कैसे#
read moreF M POETRY
White आधे रस्ते पे मुझे छोड़ गया.. जाने क्यों मेरे दिल को तोड़ गया.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #आधे रस्ते पे....
#आधे रस्ते पे....
read moreGhumnam Gautam
White हाँ, मुझे प्यार है और तुम से ही है पर बताओ मैं इज़हार कैसे करूँ ©Ghumnam Gautam #कैसे #इज़हार #ghumnamgautam
Ashok Verma "Hamdard"
White स्मार्टफोन की कैद खुद से ज़्यादा संभालकर रखता हूँ मोबाइल अपना, क्योंकि हर रिश्ता अब इसी में बसा है सपना। वक्त के साथ बदल गए मुलाकातों के मायने, अब स्क्रीन पर सिमट गए हैं चाहतों के आईने। संदेशों में छुपी है माँ की ममता की बात, वीडियो कॉल में मिलती है पिता की सौगात। दोस्तों के ठहाके अब वॉइस नोट में सजे हैं, सारे रिश्ते जैसे डिजिटल दायरे में बंधे हैं। न गली के नुक्कड़, न चौपाल की कहानियाँ, बस ऐप्स में सिमट गई हैं सारी रवायतें पुरानियाँ। खुशियाँ और ग़म अब इमोजी से बयाँ होते हैं, दिल के जज्बात भी टेक्स्ट में दबे-छुपे से होते हैं। काश लौट पाती वो कागज़ की चिट्ठियाँ, जहाँ भावनाएँ चलती थीं हवाओं की लहरियाँ। पर अब यही मोबाइल है रिश्ता निभाने का सहारा, इसके बिना तो ज़िंदगी लगे सूना और बंजारा। समय का तकाज़ा है, इसे अपना लिया है, दिल से रिश्तों का नाता इसमें जमा लिया है। पर कहीं ना कहीं दिल में ये सवाल उठता है, क्या वाकई हर रिश्ता इसी डिवाइस में सच्चा लगता है? ©Ashok Verma "Hamdard" #स्मार्ट फोन की कैद
#स्मार्ट फोन की कैद
read moreParasram Arora
White ये बात कित्नी अजीब है कि सांसे मेरी धीमी और मंद होती जा रहीं जबकि मेरी नब्ज़ ने फड़कना बन्द कर दिया है अब ये कैसे तय हो कि मै कितनी देर या कितने दिन और जीता रहूगा ? और मानलो मरना ही पढ़ा तो मेरा अंतिम क्षण कौनसा होगा ©Parasram Arora कैसे तय हो?
कैसे तय हो?
read moreचेतना सिंह 'चितेरी ', प्रयागराज
New Year 2024-25 कैसे कहूंँ अलविदा -- 2024 _______________________ हे दिसंबर ! कैसे कहूँ अलविदा --2024 जाते जाते कितनों के आंँखें कर गए नम माना कि मेरे हिस्से में आई हैं खुशियांँ, खुशियांँ भी मना न पाऊंँ जाने कितने को दे गए हो गम हे दिसंबर ! तुम्हें कैसे कहूंँ अलविदा-- 2024 भूल से भी ना भूलेगा मिटे से भी ना मिटेगा ज़ख्म है कितना गहरा , बेखबर हो गए हो तुम क्या जानो ! जाने कितनों की सांँसे थम गईं हे दिसंबर ! कैसे कहूंँ अलविदा -- 2024 कपकपाती काया के रूह से पूछो- जाते जाते कितने को दर्द दे गए सिलते सिलते जाने कितने की उंगलियांँ जम गईं हे दिसंबर! कैसे कहूंँ अलविदा - 2024 (मौलिक रचना) चेतना प्रकाश चितेरी , प्रयागराज , उत्तर प्रदेश ३१/१२/२०२४ , ११:०८ पूर्वाह्न ©चेतना सिंह 'चितेरी ', प्रयागराज # कैसे कहूंँ अलविदा -- 2024
# कैसे कहूंँ अलविदा -- 2024
read moreParasram Arora
Unsplash कैसे पता लगे कि कौनसी बात न्याय संगत है और कौनसी बात व्यर्थ कागज़ी फूलों पर तुमने कभी किसी भवरे को बैठते हुए देखा है क्या? ©Parasram Arora कैसे पता लगे?
कैसे पता लगे?
read moreSatish Kumar Meena
mujhe chod do mere haal pe मैं निराश हूं, कृंदनों से। मुक्त हो जाऊं,, बंधनों से। मुझे समझाने में, बरसों लगेंगे। ज़ख्म गहरे हैं,, जी भर सहेंगे। फंस गए अब, किसी की चाल पे, मुझे छोड़ दो,, मेरे हाल पे।। ©Satish Kumar Meena मेरे हाल पे
मेरे हाल पे
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