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Dileep Bhope
क्षितीजापल्याड सोबती असे जायचे सखे. का ऋतू सावल्यांचा सारखा रेंगाळतो इथे! ©Dileep Bhope #प्रवासी
@mukesh_inscribe#
( प्रवासी ) क्या इस देश के वासी हैं, अगर हम नहीं है इंसान तो मार दो हमें, दे दो फरमान खाने को तो कुछ ना मिल पाया, भूख लगी तो डंडा खाया फासले तय किए हजारों मील के, कुछ साईकिल पर कुछ पैर नंगे मरे कई भूख से, और कई धूप से पर हिम्मत ना टूटी, बड़ो के झूठ से बस से भेज कर, रेल से भेज कर जान खो बैठे, रास्ते भूल कर यहां प्रतिमाओं की बड़ी हस्ती पर इंसानों की जान है सस्ती बड़े सपने अच्छे दिन बतलाए पर भूख किसी की मिटा ना पाए ना चाहिए भीख ना दान, बस ना छिनिए आत्मसम्मान हम तो बस प्रवासी हैं क्या इस देश के वासी हैं।। @mukesh_inscribe# #प्रवासी
Kunal Salve
संभाजीनगर... रात्रीच्या बारा वाजता शेवटचा स्टॉप त्याचा आला एक बिचारा मग तिला मिठीत घेऊन भेटू पुन्हा बाय प्रवास संपला बोलला ! #प्रवासी
Qamar Abbas
क्या होता है परिवार पूछो उन प्रवासियों से जिनकी मां बिमार और पिता अर्थी पे हों (क़मर अब्बास) #प्रवासी
its.vedee
प्रवास शब्द!शब्द!! शब्द!! जोडून ,कविता तरी काय करावी पण शब्द तरी का शोदावे?? आयुष्यात च कविता असावी एखादी बस जशी, भावनांनी गाच्च असावी.. प्रवासी कितीही असुदे, काही नाती मनाशी जुळावी कोणीतरी म्हंटलय, सोबत छान असली की प्रवास ही छान होतो अनोळखी असून कोणीतरी, ओळखीचा हात सापडतो मला सुद्धा असच काही, प्रवास करायचय तुझ्यासोबत एकटं नाही; सारं जग पहायचय तुझ्यासोबत आयुष्याचा कवितेत रुळायचयं तुझ्यासोबत.. शेवटचा प्रवासी बनून रहायचंय तुझ्यासोबत!! ©its.vedee प्रवासी
DR. LAVKESH GANDHI
मंजिल मंजिल नहीं आसान है प्रवासियों की मंजिल दूर भी बहुत है प्रवासियों का #प्रवासी # #प्रवासी मजदूर का हाल # #yqlachari #yqbevasi #
Parasram Arora
#5LinePoetry क्या कभी लौटेगा प्रवासी जल इन मारुसथलो मे मरुस्थल कैसे भूल सकते है वे दिन ज़ब सागर यहां भी कभी ठाठेंमारा करता था इसीलिए आज भी वो स्वप्न लहराती तरलता. क़ेही देखता है और उसका ये दर्द सन्नाटों मे कई बार गूँजता हुआ सुनाई भी पड़ता है ©Parasram Arora प्रवासी जल.....
Usha Yadav
कोरोना और प्रवासी मजदूर सचमुच दिल दहल सा जा रहा है प्रतिदिन मजदूरों की ऐसी तस्वीरों को देखकर। भारत में जब से करोना वायरस ने अपना पैर पसार है।तब से संपूर्ण भारत लाक डाउन हो गया। परंतु उन मजदूरों का क्या? जो रोज कमाते थे रोज खाते थे उन बेचारों को तो अब हर चीजों के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। बेशक सरकार अपनी तरफ से रियायतें दे रही है परंतु क्या इन थोड़े से राशन और ₹500 से अपना और अपने परिवार का पेट कब तक पाल सकेगा। बेचारा मजबूत किराए का मकान प्रतिदिन उपयोग की वस्तुएं हर चीजों के लिए तो पैसा चाहिए। कहां से लाएगा यह मजदूर। इसलिए उन लोगों ने अपने गांव की तरफ पलायन करना शुरू कर दिया। सरकार ने ट्रेन तो शुरू कर दी है क्या इन ट्रेनों का किराया यह मजदूर उठा पाएगा? इतना किराया जिसके पास खाने के लिए पैसे तक नहीं वह किराया कहां से दे पाएगा। आखिर बेचारे! क्या करें अपने पैरों को ही रास्ता तय करने के लिए मजबूत बना लिया। अपने गांव तक के रास्ते को तय करके अपने पैरों को ही वाहन बना अपने बच्चों समेत चल दिए। बस चलते ही रहे मंजिल तक का कोई ठिकाना नहीं किसी के बच्चे भूखे किसी के बच्चे प्यासे रो रहे हैं। ऐसी हालत हो चुकी है बेचारों की यदि पैरों की चप्पल टूट भी गई तो नंगे पैरों इतनी कड़कड़ाती धूप में भी निकल चले हैं। कोई साइकिल से कोई पैदल अपनी जान की परवाह किए बिना बस चल पड़े। उन्हें नहीं पता कि वह घर पहुंचेंगे भी या नहीं। रोजाना सोशल मीडिया के द्वारा पता चलता है कि मजदूरों की सड़क दुर्घटना में इतने मजदूर मारे गए। कोई ट्रेन की चपेट में आ गए कोई मां भूखे प्यासे थक कर के अपने बच्चों को कंधों पर बिठाकर बस चलती जा रही है। खुद को नहीं पता मंजिल उसे मिलेगी या नहीं बस दिलासा देती जा रही है बस थोड़ी दूर और बस थोड़ी दूर और चलना है बेटा ! यह बेचारे कोरोना से तो बाद में मरेंगे भूख प्यास से पहले मर जाएंगे। जब हमारी प्रजा ही नहीं बचेगी तो हम इस अर्थव्यवस्था और आत्म निर्भरता का क्या करेंगे ? लिखने को तो बहुत कुछ है परंतु यह सब लिखते वक्त दिल जैसे रो पड़ा है हम लोग लाक डाउन में अपने घरों में तो है। परंतु उन मजदूरों का क्या जो निकल पड़े हैं भूख से बेहाल होकर! धन्यवाद😔😔 प्रवासी मजदूर