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Stories related to मृदा अपरदन

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somnath gawade

जागतिक मृदा दिन

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      एखाद्याने तुमच्या
   आयुष्याची 'माती' जरी
  केली तरी त्यातुनही 'उभे'
  राहण्याची उमेद उरी बाळगा.
  कारण आता मातीला कधी नव्हे ते 
   असाधारण महत्व प्राप्त झाले आहे.
  जागतिक मृदा दिनाच्या
       हार्दिक शुभेच्छा! जागतिक मृदा दिन

Ajay Amitabh Suman

मृदा मात्र गुबार नहीं हूँ #कविता

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Vijay Kumar

#WoRasta अहंकार और घमंड इंसान को मृदा में मिला देता है #Motivational

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AB

मृदा नहीं देह है यह,. भू - पटल पर बिछी हुई श्वास इसमें भी निःसंदेह ही है और है निरंतर ही, अपरदित होता #day #soilerosion #5dec_2021

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....... 

मृदा नहीं देह है यह,.
भू - पटल पर बिछी हुई
श्वास इसमें भी निःसंदेह ही है
और है निरंतर ही,

अपरदित होता

vishnu prabhakar singh

खुशहाली से बड़ी रखवाली! हृदय का पौधा सींच भाव का मृदा करुणा भरी एक प्रकृति तटस्थ #yqbaba #yqdidi #विप्रणु

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हृदय का पौधा
सींच भाव का
मृदा करुणा भरी
एक प्रकृति तटस्थ
कोमल कली समता
मूल अप्रभावित रखना!
प्रकृति नियंत्रित है
फल,प्रतिफल हेतु
प्रेम की बोआई
सनातन बन अटल
तुम्हें जीत नहीं
व्यपार में कदाचित!
मानव का धर्म
शांति का दूत
विस्तृत शिष्ट गगन
कीर्ति की मृदा
तुम्हें हार मिली
जबकि,प्रकृति तटस्थ! खुशहाली से बड़ी रखवाली!



हृदय का पौधा
सींच भाव का
मृदा करुणा भरी
एक प्रकृति तटस्थ

Ravi Shankar Kumar Akela

पर्यावरण असन्तुलन के कारण प्राकृतिक संकट, वायु प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा, जल-प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ऋतुओं में अन्तर एवं संस्कृति के संकट #पौराणिककथा

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पर्यावरण असन्तुलन के कारण प्राकृतिक संकट, वायु प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा, जल-प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ऋतुओं में अन्तर एवं संस्कृति के संकट के रूप में वन-विनाश, जनसंख्या वृद्धि, निर्धनता, गन्दी बस्तियाँ, ध्वनि-प्रदूषण, अपराध, घातक रोग, ऊर्जा संकट के रूप में दिखाई पड़ते हैं।

©Ravi Shankar Kumar Akela पर्यावरण असन्तुलन के कारण प्राकृतिक संकट, वायु प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा, जल-प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ऋतुओं में अन्तर एवं संस्कृति के संकट

Sunita D Prasad

#अनवरत बारिशें, हमें कभी पूरा सूखने नहीं देतीं..! धरा, रखती है हममें सदा कुछ हरा..!! पहाड़, बनाए रखता है #yqbaba #yqdidi #yqpowrimo

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बारिशें, हमें कभी पूरा 
सूखने नहीं देतीं..!
धरा, रखती है हममें
सदा कुछ हरा..!!

पहाड़, बनाए रखता है
थोड़ी-सी दृढ़ता..!
जंगल, बनाए रखते हैं
विविधता में समरसता..!!

वायु, बनाए रखती है हमें
अवसादों में भी हल्का..!
मृदा, बनाए रखती है
हममें सृजनात्मकता..!!

जिसने बिठा लिया
प्रकृति से सामंजस्य..!
उसने जीवंत रहने के लिए 
बचा लीं संभावनाएँ ..!!

आखिरकार..
प्रकृति ही तो
अनंत संभावनाओं का 
अनवरत स्रोत है.....!! #अनवरत

बारिशें, हमें कभी पूरा 
सूखने नहीं देतीं..!
धरा, रखती है हममें
सदा कुछ हरा..!!

पहाड़, बनाए रखता है

SANGHARSH KE MOTI

#WorldEnvironmentDay आओ फिर से, प्रकृति की ओर लौटे , यूँ प्रदूषण , रसायनों से, भविष्य का दम न घोटें , पर्यावरण का हों सरक्षण - संवर्द्धन , #कविता

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आओ फिर से, प्रकृति की ओर लौटे ,
यूँ प्रदूषण , रसायनों  से, भविष्य का दम न घोटें ,
पर्यावरण का हों सरक्षण - संवर्द्धन ,सहयोग करे हम छोटे -मोटे ,
आओ फिर से, प्रकृति की ओर लौटे ,
बचाए  जल को , सुरक्षित करे कल को ,
जल हे तो कल हे , मिलकर जल को संजोते
आओ फिर से, प्रकृति की ओर लौटे ,
कम करें रसायन छिड़काव ,
मृदा बने उपजाऊ , जैविकता अपनाओं ,
रसायन स्वस्थ्य के लिए.,अच्छे नहीं होतें ,
आओ फिर से, प्रकृति की ओर लोटें ,
वृक्षारोपण कर, हरियाली हम बढ़ाए ,

©SANGHARSH KE MOTI #WorldEnvironmentDay

आओ फिर से, प्रकृति की ओर लौटे ,
यूँ प्रदूषण , रसायनों  से, भविष्य का दम न घोटें ,
पर्यावरण का हों सरक्षण - संवर्द्धन ,

vishnu prabhakar singh

अर्थ के अनर्थ में सिर्फ मुहावरों का ही समावेश नहीं हुआ।यथावत रहने का कारण ढूंढें।। विवेक से अर्थ का अनर्थ करते अंजान अंत तकअपनी सूझबूझ को द #yqbaba #philosophy #yqdidi #yqthoughts #विप्रणु

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विवेक से अर्थ का अनर्थ करते अंजान
अंत तकअपनी सूझबूझ को दें सम्मान

क्या बात परख ली हैआपाधापी तमाम
अबअपरदन से दें निर्मलता भरा पैगाम

स्वीकार हो स्वार्थ वो भी असंगत हराम
संशोधन में पिछड़ रहा निजता बेलगाम

क्यूँ तुम्हें अंदेशा नहीं अनिष्ट का उफान
उत्पन्न कारक सुविधा भरी विधि विधान

जब जैसा तब वैसा की पद्धति का धाम
बहुतेरे अवसर में लगाया है सत्य विराम

क्या बात मरते रहिये जीविका को थाम
इस मनमोहकता के छांव को भी प्रणाम अर्थ के अनर्थ में सिर्फ मुहावरों का ही समावेश नहीं हुआ।यथावत रहने का कारण ढूंढें।।

विवेक से अर्थ का अनर्थ करते अंजान
अंत तकअपनी सूझबूझ को द

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं वैशाखनन्दन।। मैं वैशाखनन्दन रेंकता। मैं भाल-चन्दन लेपता। मैं हो विवश हूँ देखता, कर मैं हूँ भावी टेकता। मैं नृप नहीं ना देवता, अपने अहं #Poetry #kavita #nojotophoto

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 मैं वैशाखनन्दन।।

मैं वैशाखनन्दन रेंकता।
मैं भाल-चन्दन लेपता।
मैं हो विवश हूँ देखता,
कर मैं हूँ भावी टेकता।
मैं नृप नहीं ना देवता,
अपने अहं
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