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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- देख लो लाडले अब कमाने चले । छोड़ माँ बाप दौलत बढाने चले ।।१ देखकर जो गरीबी हुए थे बड़े । आज किस्मत वही आजमाने चले ।।२ क्या गुजारा न होता घरों में कभी । जो बेटे बदलने अब ठिकाने चले ।।३ बेटियाँ माँ पिता के लिए गैर थी । आज बेटे पराया बनाने चले ।।४ भेजकर आज बेटे को परदेश में । आज फिर आप आँसूँ बहाने चले ।।५ दुख तुम्हारा यहाँ कौन समझे बता । जो कलेजे के टुकड़े दिखाने चले ६ फट गई छातियाँ आज माँ की प्रखर । बेटे रोके जो किस्सा सुनाने चले ।। ७ १२/०२/२०२४। - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- देख लो लाडले अब कमाने चले । छोड़ माँ बाप दौलत बढाने चले ।।१ देखकर जो गरीबी हुए थे बड़े ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- देख लो लाडले अब कमाने चले । छोड़ माँ बाप दौलत बढाने चले ।।१ देखकर जो गरीबी हुए थे बड़े । आज किस्मत वही आजमाने चले ।।२ क्या गुजारा न होता घरों में कभी । जो बेटे बदलने अब ठिकाने चले ।।३ बेटियाँ माँ पिता के लिए गैर थी । आज बेटे पराया बनाने चले ।।४ भेजकर आज बेटे को परदेश में । आज फिर आप आँसूँ बहाने चले ।।५ दुख तुम्हारा यहाँ कौन समझे बता । जो कलेजे के टुकड़े दिखाने चले ६ फट गई छातियाँ आज माँ की प्रखर । बेटे रोके जो किस्सा सुनाने चले ।। ७ १२/०२/२०२४। - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- देख लो लाडले अब कमाने चले । छोड़ माँ बाप दौलत बढाने चले ।।१ देखकर जो गरीबी हुए थे बड़े ।
arun dhuwadiya
अन्याय हुआ कह के पिटे छातियाँ अपनी। ये लोग वहीं लाये है अब लाठियाँ अपनी। कुछ लोग मेरा देश जलाने में लगे है। कुछ लोगों ने सेकी है यहां रोटियाँ अपनी। आओ न कोई काम अभी ऐसा करे हम। बेख़ौफ़ वतन में रहे फिर बेटियाँ अपनी। मेरी शिखा से जल गए कुछ लोग विरोधी। प्यारी थी जिन्हें जान से भी टोपियाँ अपनी। वो धर्म पे इल्जाम लगाने लगे साहिब। जिनसे न छुटी खून सनी कुर्सियां अपनी। अब तंग समझ बन गई है बेड़ियां जिनकी। कसते ही चले जा रहे वो बेड़ियाँ अपनी। मिल बांट के कोई भी नहीं खाता है घर में। हर कोई ले के आ गया है थालियां अपनी। है फिक्र उसे सारे वतन वालों की *आशू*। कुछ लोग तो पीटेगें फ़क़त ढपलियाँ अपनी। आशू रतलाम अन्याय हुआ कह के पिटे छातियाँ अपनी। ये लोग वहीं लाये है अब लाठियाँ अपनी। कुछ लोग मेरा देश जलाने में लगे है। कुछ लोगों ने सेकी है यहां रोटिय
VATSA
ख़ुश रहे वतन मेरा ,हर दिल यहाँ आबाद हो पुरखे सुनाते थे हमें कहानिया जो इस देश की प्रेम के इस देश में बस प्रेम ही बुनियाद हो ख़ुश रहे वतन मेरा ,हर दिल यहाँ आबाद हो फिर कोई ‘पंडित’, ‘बिस्मिल’ बुलाए ख़ुद को फिर कोई, ‘चंद्रशेखर’ यहाँ, ‘आज़ाद’ हो ख़ुश रहे वतन मेरा ,हर दिल यहाँ आबाद हो जहाँ कोई बेटी ना भीख माँगे, अपने अबरू की जहाँ इंसान बसते हो, ना कोई भी जल्लाद हो ख़ुश रहे वतन मेरा ,हर दिल यहाँ आबाद हो फिर कोई ‘भगत’ अपने मुल्क को महबूब कहे दिल धड़के, भले ना चौड़ी छातियाँ फ़ौलाद हो ख़ुश रहे वतन मेरा ,हर दिल यहाँ आबाद हो ना हिंदू जन्मे यहाँ, ना कोई मुसलमान जन्मे अबकी साल जो जन्मे, वो इंसान की औलाद हो ख़ुश रहे वतन मेरा ,हर दिल यहाँ आबाद हो #bharat #2020 #newyear #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #hindi #india ख़ुश रहे वतन मेरा ,हर दिल यहाँ आबाद हो पुरखे सुनाते थे हमें कहानिया