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Ajay Prakash
दर्द भरी गजल... मिल जाती अगर सभी को अपनी मौहब्बत की मजिलं.... तो यकीनन रातों के अंधेरो मे कोई दर्द भरी गजल नहीं लिखता ... ..Ajpatir.. दर्द भरी गजल नहीं लिखता ...
Shiv Anand
यूं तो मुझसे #आजकल नहीं होती गजल तेरे बिना #मुकम्मल नहीं होती जरूरी नहीं हर बार उसे छोड़ दिया जाए #सराफत हर मर्ज का #हल नहीं हो
Hinduism sanatan dharma
कलम नहीं हूँ,मैं कलमकार हूँ " नज्म नहीं हूँ,मैं नज्मकार हूँ ! गजल नहीं हूँ , मैं ग़ज़लकार हूँ" साहित्य नहीं हूँ ,मैं साहित्यकार हूँ! आपकी
Abhay Bhadouriya
सिर्फ जिस्म मिल जाने से इश्क नहीं होता । रूह का मिलना भी तो जरूरी है... हर बात इशारों में हो ये काफी नहीं होता । इजहार ए इश्क भी तो जरूरी है.. तेरी आंखों में नूर हो ये काफी नहीं होता । थोड़ा सा काजल भी तो जरूरी है.. सिर्फ "काफ़िया" मिल देने से गजल नहीं होती । दिल का मिलना भी तो जरूरी है... सिर्फ जिस्म मिल जाने से इश्क नहीं होता । रूह का मिलना भी तो जरूरी है... हर बात इशारों में हो ये काफी नहीं होता । इजहार ए इश्क भी तो जरूरी ह
Abhay Bhadouriya
प्रेम का एक श्वेतपत्र लिख रहा हूं गजल नहीं मैे अब , दिल लिख रहा हू.... पहली मुलाकात पर जो देखा था मैंने तुम्हारे गले का वो तिल लिख रहा हूं.... जिनसे मेरा पूरा घर रोशन था कभी तेरी पायल की वो छन-छन लिख रहा हूं.... हर बला से जो बचाते थे मुझको तेरी आंखों का वो काजल लिख रहा हूं.... जो लौटा दिए थे तुमने बड़ी खुदगर्जी से मैं टूटे हुए मां के कंगन लिख रहा हूं...... न कहानी लिख रहा हूं, न कथा लिख रहा हूं मैं तो बस प्रेम की व्यथा लिख रहा हूं...... प्रेम का एक श्वेतपत्र लिख रहा हूं गजल नहीं मैे अब , दिल लिख रहा हू पहली मुलाकात पर जो देखा था मैंने तुम्हारे गले का वो तिल लिख रहा हूं
अमित अनुपम
मुकद्दर में मेरे कोई हमसफ़र नहीं है। मिले बहुत हैं मगर कोई रहबर नहीं है।। जिंदा लाश बन गया हूं मैं आजकल। आंखे मूंद लूं कैसे यहां मुर्दाघर नहीं है।। मैं हर किसी की गिनती में हूं शामिल। मगर प्यार किसी का मयस्सर नहीं है।। आलीशान बंगले नसीबा ने दिए मुझे। सुकूं जो दे नजर आता वो घर नहीं है।। दिल में धधक रही आग कई मुद्दतों से। बुझा सके इसे जो कोई समन्दर नहीं है।। जिंदगी के अंधेरों से डर भी है मुझे। मगर आसानी से मिले मुनव्वर नहीं है।। कई हसरतें दफन सीने में मेरे मगर। "अमित" के लिए कोई स्वयंवर नहीं है।। पूर्णतः अप्रकाशित और मौलिक। अमित "अनुपम" गजल। कोई रहबर नहीं है।
BANDHETIYA OFFICIAL
दगा नहीं करना, सोने की बावत जगा नहीं करना। अपनों में हमको समझो लेकिन, अपनों में हमको लगा नहीं करना। खिलते हैं फूल कभी खार हुए , चुभना , चुभने में ठगा नहीं करना। तेरी मुस्कां पे निसार हंसना, मेरा हंसना ही भगा, नहीं करना। रोज 'बंधेतिया' इक खाब जुगा, गमगीं,गम वो दिल-सगा नहीं करना। ©BANDHETIYA OFFICIAL #दिल #दगा नहीं करना#गजल
मोहित "बेख़बर"
## ग़ज़ल ## हो रहा है जो भी यह अच्छा नहीं। तेरा प्यार मेरे लिए अब सच्चा नहीं। दिल में और जुब़ा पें है बातें अलग-अलग, तेरा फरेब ना समझू में कोई बच्चा नहीं। हो चला है अब तजुर्बा साथ में रहे कर, तेरे खेल में हे सनम में कच्चा अब नहीं । ©Rohit Sharma ##तेरा प्यार सच्चा नहीं ##गजल##