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Poet Kuldeep Singh Ruhela
White #मुझको भी खाने थे आम यारो मगर मेरी जेब में पैसे नही थे पड़ा था एक दस का नोट मेरी पॉकेट में देखा तो मुझे मेरे बच्चो का ख्याल आ गया ! गुमनाम शायर ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #mango_tree मुझको भी खाने थे आम यारो मगर मेरी जेब में पैसे नही थे पड़ा था एक दस का नोट मेरी पॉकेट में देखा तो मुझे मेरे बच्चो का ख्याल आ
person
क्या बात है क्या चीज है पैसा दुनिया की हर चीज है कैसा अमीर गरीब बनता है पैसा अमीर गरीब बनता है पैसा पैसा पैसा नोट है कैसा 365 दिन 24 घंटे मैंने चाहा पैसे को फिर भी फिर भी पास ना आईं पैसा ©person money 💰 Money controls human emotions, brings happiness and also brings sadness. Makes you laugh and makes you cry क्या बात है क्या चीज है
Irfan Saeed
Devesh Dixit
नोट बंदी नोट बंदी में देख हुआ, सबका बुरा हाल। लगे कतार में बैंक के, मन में उठे सवाल। क्या सोचा सरकार ने, जो हुआ बवाल। फिर बताया विद्वान ने, ये था माया जाल। हेरा-फेरी से कमा कर, कर रहे जो गुणगान। चोट जो ऐसी दी उन्हे, पूर्ण हुआ अभियान। बोरे भरकर फेंक दिये, नोटों के भण्डार। कुछ जंगल में थे मिले, कमाल किये सरकार। एक झटके में निकल गये, देखो तो काले धन। छिपा रखे गृहणियों ने, बेचैन हुए तब मन। नोट बदलने के लिए, सामने आया राज। पतियों को मालूम पड़ा, तब जाकर वह काज। मोदी जी का हो भला, जो किया ये काम। पत्नियाँ सिर को पीटतीं, खेल हुआ तमाम। ................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #नोट_बंदी #nojotohindi #nojotohindipoetry नोट बंदी नोट बंदी में देख हुआ, सबका बुरा हाल। लगे कतार में बैंक के, मन में उठे सवाल।
Shaarang Deepak
Shaarang Deepak
Bharat Bhushan pathak
चित्रपदा छंद विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण चार चरण, दो-दो समतुकांत भगण भगण गुरु गुरु २११ २११ २ २ नीरद जो घिर आए। तृप्त धरा कर जाए।। कानन में हरियाली। हर्षित है हर डाली।। कोयल गीत सुनाती। मंगल आज प्रभाती। गूँजित हैं अब भौंरे। दादुर ताल किनारे।। मेघ खड़े सम सीढ़ी। झूम युवागण पीढ़ी।। खेल रहे जब होली। भींग गये जन टोली।। दृश्य मनोहर भाते। पुष्प सभी खिल जाते।। पूरित ताल तलैया। वायु बहे पुरवैया।। भारत भूषण पाठक'देवांश' ©Bharat Bhushan pathak #holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध
Dhanraj Gamare
cjcjffjfjfjfjfjpfjfjfkgkfgfkfkfk ©Dhanraj Gamare जागतिक महिला दिनाच्या निमित्ताने गझल काव्य संध्या व बुककट्टा टीम ( पिंपरी चिंचवड) यांच्या संयुक्त विद्यमाने आयोजित दुसरे कवी संमेलन २०२४
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- यहाँ कोई भी मतदानी नहीं है । बिके हैं सब बेईमानी नहीं है ।।१ गिरा जो आँख से पानी नहीं है । बयां करना भी आसानी नहीं है ।।२ लगाओ खूब नारे हिंद के अब । यहाँ कोई भी यूनानी नहीं है ।। ३ जरा सा हौसला करके तो देखो । कोई भी दरिया तूफ़ानी नहीं है ।।४ तुम्हीं से पूछने आये चले हम । हमीं पे क्यूँ मेहरबानी नहीं है ।।५ चुनावी खेल चालू हो गये तो । दिखा कोई भी अभिमानी नहीं है ।।६ लगे आरोप झूठे सैनिकों पे । हमारा देश बलदानी नहीं है ।।७ अदब से सर झुकाते हैं उन्हें बस । प्रखर की वह महारानी नहीं है ।।८ १२/०३ २०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- यहाँ कोई भी मतदानी नहीं है । बिके हैं सब बेईमानी नहीं है ।।१ गिरा जो आँख से पानी नहीं है । बयां करना भी आसानी नहीं है ।।२
Pintu Paswan