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Stories related to 'mahabharat और कर्ण का युद्ध'

SumitGaurav2005

मैं सूर्यपुत्र होते हुए भी,
सूत पुत्र कहलाया थ। 
कुंती माँ मुझे जना तू ने, 
परन्तु राधेय कहलाया था। 
कर्ण दानवीर होते हुए भी,
सबसे तिरस्कार पाया था।
ऐसी क्या तेरी विवशता थी,
जो तूने मुझे ठुकराया था।
✍🏻सुमित मानधना 'गौरव'😎

©SumitGaurav2005 #कर्ण  #karna #महाभारत #Mahabharat #Mahabharata #Sumitgaurav2005 #sumitkikalamse #sumitgaurav #sumitmandhana #Epic

Parasram Arora

अघोषित युद्ध

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White दिल और दिमाग़ मे 
एक अघोषित युद्ध 
चल रहा है कई दिनों से 


मुझे लगता है 
ये युद्ध तब तक नही 
थामेगा ज़ब तक मै 
इन दोनो केबींच से 
हट नही जाता

©Parasram Arora अघोषित युद्ध

MD Iftekhar

कहावत कौआ और कान का

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एक बहुत ही पॉपुलर कहावत है
कौआ कान बाला क्या है ये कहावत हमें बताएं

©MD Iftekhar कहावत कौआ और कान का

Parasram Arora

फुल का उदय और अंत

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White जिस फुल को सुबह
 मैंने उगते देखा था 
उसी सांझ उसे मैंने 
मुरझा कर धरती पर 
बिखरते देखा.

और ये भी सच है 
उसी फूल को मैंने सुबह 
हँसते और महकरे हुए 
देखा था  लेकिन 
उसी साँझ उसे मैने 
धरती पर उसे 
दहाड़े मार कर  
रोते हुए भी देखा था

©Parasram Arora  फुल  का उदय और अंत

Parasram Arora

भक्त और भगवान का रिश्ता

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Unsplash भक्त और भगवान
 का रिश्ता दिख जाता 
है कभी कभी मंदिरो मे 

अच्छा लगता 
भगवान को अगर
 उसे तुमने अपने घर 
बुला कर पूजा होता

©Parasram Arora भक्त और भगवान का रिश्ता

Ram Prakash

#traveling युद्ध

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Unsplash मौज मस्ती से जो ऊबे 
हैं

लालच के युद्ध में
डूबे
हैं

©Ram Prakash #traveling युद्ध

NOTHING

Shiv Narayan Saxena

#GoodMorning अंतर का गृह-युद्ध..... poetry in hindi

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White अंतर का गृह-युद्ध हमेशा 
              मन से ही तो होता है।
मन के ऐसे हालातों का
              मन खुद आप विजेता है।।
मन में ठान लिया सरिता को
             सागर से मिलवाता है।
निरुद्देश्य नालों में बहता
             जल बस सड़ता जाता है।।

©Shiv Narayan Saxena #GoodMorning अंतर का गृह-युद्ध..... poetry in hindi

Shiv Narayan Saxena

#sad_qoute अंतर मन का युद्ध hindi poetry

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White सबसे बड़ी  विडंबना , अंतर का गृह-युद्ध। 
मुश्किल खुद को जीतना, जीते सोई बुद्ध।।

अंतर का गृह-युद्ध यह, किया करे संकेत।
  खुद को जीते चेत वह, बाकी सभी अचेत।।

अंतर  के  गृह - युद्ध  से, बल-मद  टूटा जाय।
  हरि ने करुण पुकार पे, गज को लिया बचाय।।

©Shiv Narayan Saxena #sad_qoute अंतर मन का युद्ध  hindi poetry

Avinash Jha

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha #संशय
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