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Uday Singh
स्वयं में आत्मसात होकर किसी का दर्द तो किसी की खुशी कोरे कागज़ पर जिवित कर जाती है जिसे पढ़ गैर का दर्द ,खुशी अपनी सी लगे गम खुशी दर्द मे भी अपनेपन का अहसास दे जाती है इसे कविता कहते हैं यहीं तो कविता कहलाती है इसे कविता कहते हैं यहीं तो कविता कहलाती है ©Uday Singh कविता कहलाती है #WorldPoetryDay
Ehssas Speaker
होली के रंगों सी मुस्कुराए, दीवाली के दीपों सी जगमगाए, बेटी बनकर घर महकाएं, बहन बनकर लुटाती है प्यार बनकर बेटी और बहू दूजे का घर अपनाती है। प्रयत्न करती है,सबको सुख देने का, प्रेम से उस घर को अपना बनाती है। दे कर जन्म इन्सान को, उसे इन्सानियत सिखाती है। प्रभु की नेमत है वह, रचती सृष्टि सारी है, ज़रा से प्यार के बदले, सर्वस्व लुटा दे, वह नारी कहलाती है।। ©Ehssas #वह नारी कहलाती है..
Ratnesh Rai
सभी दोस्तों को मेरा सादर प्रणाम! दोस्तों आज की मेरी यह कविता उन सभी लोगों को समर्पित है जिनके अपने लॉक डाउन की वजह से कहीं बाहर फंसे हुए हैं, जैसे कि मेरी माता जी मेरी बहन के घर से लॉक डाउन के कारण वापस अपने घर नहीं आ पा रही थीl सारा जहां हो पास में, मगर किसी एक के बगैर, सब कुछ सूना लगे, दोस्तों वह मां कहलाती है.... जिसकी लोरी के बगैर नींद नहीं आती है.. जिसकी मधुर पुकार के बिना उठना, मानो सुबह भी झल्लाती है.. तेरे स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबू मन को ललचाती है.. पापा का नाम नहीं लेती, उनको मेरे नाम से बुलाती है.. दोस्तों वह मां कहलाती है.... तेरे आंचल के बगैर घर की छांव भी, मानो तपती धूप सी कल्लाती है.. तेरी मुस्कुराहट के बगैर, यह प्रकृति, यह शीतल हवा भी मुझे जलाती है.. दोस्तों वह मां कहलाती है.. तेरा लॉक डाउन में दीदी के यहां रहना, ओ मेरी मां! लगता है दिन-ब-दिन आंगन की तुलसी भी मुरझाती है.. दोस्तों वह मां कहलाती है.... मेरे लिए इस महामारी से भी भारी है, मेरी मां की यादें। जब भी आती हैं, मन के शांत सरोवर में कंकड़ उछाल जाती हैं.. दोस्तों वह मां कहलाती है... प्रशासन से जद्दोजहद के बाद, तेरे से जो मिलने का मौका मिला.. मेरा अशांत मन मानो ऐसे खिला.. जैसे मन की उजड़ी बगिया में, मेरी आश चमेली सी खिल जाती है.. दोस्तों वह मां कहलाती है... तेरे से मिलने की उमंग, मानो भोर में हो सूरज से निकलती तरंग.. मीलो लंबा रास्ता भी ऐसे कटे, जैसे मोहल्ले की गली कट जाती है.. दोस्तों वह मां कहलाती है.... पाके तेरा स्नेहिल दर्शन, मैं तो गदगद हो गया.. गुस्से में था जैसे नीम का रस, अब सरवद हो गया.. लेकिन तेरी आंखों से बहती आंसुओं की धारा, शायद यह ममता कहलाती है.. दोस्तों वह मां कहलाती है.... मां के आ जाने पर अब, मुरझाई तुलसी भी मुस्कुरा गई.. उदास रसोई में लौटी रौनक, मायूसी दुम दबाकर भाग गई.. घर का हर कमरा रोशन हुआ, आंगन की मिट्टी भी खिलखिलाती है.. सारा जहां हो पास में, मगर किसी एक के बगैर, सब कुछ सुना लगे, रतन वह मां कहलाती है.... रत्नेश राय (रतन) दोस्तों वह मां कहलाती है
Animesh Mungariya SHAHAB
वो माँ कहलाती है। #animeshmungariya #Nojoto
Nishith Sinha
इतना आसान नहीं खुद को सुनना .. जब मुख बंद और .. मन मस्तिष्क पुरज़ोर ध्वनित हों !! ध्वनि