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कमलेश मिश्र
*कालिदास* उसी डाल को काट रहे हैं,देखो बैठे कालिदास। जिनसे विश्व लगाए बैठा, है सेवा की पूरी आस। माता पिता बड़ा करते हैं, जिन्हें काटकर अपना पेट। जिनके द्वारा बने हुए हैं, आज पुत्रगण भारी सेठ। उनकी जरा अवस्था में भी,नहीं लगाते उनको पास। उसी डाल को काट-----। जिन्हें पिता ने ऋण लेकर भी,अच्छी शिक्षा दिलवाई। वक्त पड़ा तो भूल गए सब,पीठ उन्होंने दिखलाई। बूढ़े बापू को मिलता है, अपने बच्चों से ही त्रास। उसी डाल को काट-----। मातृ पितृ ऋण चुका न पाए,देवों का आभार नहीं। वे समाज को क्या देंगे,जिन्हें परिवारों से प्यार नहीं। बीवी बच्चों से बढ़कर उन्हें,कुछ भी दिखता नहीं खास। उसी डाल को काट ------। सेवा के हित करें नौकरी, सेवकपन का नाम नहीं। बिन रिश्वत के होता अब, दफ्तर में कोई काम नहीं। मलिक जैसा रौब दिखाते, बतलाते अपने को दास। उसी डाल को काट-----। जनता के सेवक बनकर जो,हाथ जोड़कर मांगें वोट। मालिक बन जाने पर उनके,गद्दों में भी निकलें नोट। अपनी जेबें भरते उनसे, नहीं देश को कोई आस। उसी डाल को काट-----। उसी डाल को काट रहे हैं देखो बैठे कालिदास।। ©कमलेश मिश्र महाकवि कालिदास.....
दीपेश
तन गोरा तेरी पतली कमर चढ़ता यौवन सोला की उमर बड़ी आंख धरी मुख के ऊपर ज्यों कोई कमल खिला हो सर तेरे उर से उभरता सा यौवन छूकर के पवन करता पावन हंस बात करे मानो फूल झड़ें फूलो का रंग सभी पे चढ़े मेरे गांव गई उड़ धूल चढ़ी लगे मानो कपूर में धूल पड़ी तुम धूल धवल संग अतिसुंदर उपमा न मेरे मुंह से कढ़ी तुम कामदेव की दुल्हन सी इस लोक कौन से कुल उपजी तू कोमल ललित नवल कोपल सी सोहे मन देख भरे ना जी ©दीपेश #Beauty #Love #Like महाकवि केशव के पद से प्रेरित
Hrishi Vishal 007
#FourlinePoetry हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से भी कोई गंगा निकलनी चाहिए, मेरे सिने मे नहीं तो तेरे सिने मे सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए... महाकवि - दुष्यंत कुमार ©Hrishi Vishal 007 महाकवि - दुष्यंत कुमार #fourlinepoetry
"निश्छल किसलय" (KISALAY KRISHNAVANSHI)
श्याम को एक दिन सत्यभामा, सवाल की जाल चली उलझावै राधा तथा बाँसुरी बीच मोहन, कौन तुम्हे अधिको मन भावै। श्याम कहे ये सवाल उधेरत, मोर मना बस एतने समझावै, राधा रहें सुध आवत बांसुरी, बाँसुरी रहै, राधा सुधि आवै। #NojotoQuote महाकवि पं चंद्रशेखर मिश्र
Anokhi
प्रेम प्रेम नारी के हृदय में जन्म जब लेता.. एक कोने में ना रुक, सारे हृदय को घेर लेता है..! पुरुष में जितनी प्रबल होती विजय की लालसा.. नारियों में प्रीति उससे भी अधिक उद्दाम होती है..! प्रेम नारी के हृदय की ज्योति है..! प्रेम उसकी जिंदगी की सांस है..! प्रेम में निष्फल त्रिया जीना नहीं चाहती..!! शब्द जब मिलते नहीं मन के, प्रेम तब इंगित दिखाता है.. बोलने में लाज जब लगती प्रेम तब लिखना सिखाता है..! पुरुष प्रेम सतत करता है,पर प्रायः थोड़ा थोड़ा.. नारी प्रेम बहुत करती हैं सच है, लेकिन कभी कभी..! उसका भी भाग्य नहीं खोटा, जिसको न प्रेम प्रतिदान मिला..! छू सका नहीं पर इंद्रधनुष , शोभित तो उसके उर में है..!! महाकवि रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित कविता ©Anokhi # प्रेम महाकवि दिनकर जी द्वारा रचित कविता