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N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। अर्थ :- मनुष्य जैसे पुराने कपड़ोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है। जीवन में महत्व :- यह गीता में कई प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है, जिसमें यह समझाया गया है कि कैसे आत्मा अपने शरीर को छोड़ देती है और अन्य शरीरों के साथ पहचान करके नई परिस्थितियों में नए अनुभव प्राप्त करती है। व्यासजी द्वारा प्रयुक्त यह दृष्टान्त बहुत जानी मानी है । भगवान अपने विचारों को विशद उपमाओं के माध्यम से समझाने की विधि अपनाते हैं। इस तरह की तुलना आम आदमी को विचार स्पष्ट करने में मदद करती है। जैसे कोई जीवन की अलग अलग परिथितियों के लिए अलग अलग कपडे पहनता है, उसी प्रकार आत्मा एक शरीर को छोड़कर अन्य प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने के लिए दूसरे शरीर को धारण करती है। कोई भी नाइट गाउन पहनकर अपने काम पर नहीं जाता या ऑफिस के कपड़े पहनकर टेनिस नहीं खेलता। वे अवसर और स्थान के अनुकूल कपड़े पहनते हैं। यही हाल मौत या आत्मा का भी है। यह समझना इतना सरल है कि केवल अर्जुन ही नहीं, कोई भी विद्यार्थी या गीता का श्रोता त्याग के विषय को स्पष्ट रूप से समझ सकता है। अनुपयोगी कपड़े बदलना किसी के लिए भी मुश्किल या दर्दनाक नहीं होता है और खासकर जब किसी को पुराने कपड़े छोड़कर नए पहनने पड़ते हैं। इसी तरह, जब जीव को पता चलता है कि उनका वर्तमान शरीर उनके लिए किसी काम का नहीं है, तो वे पुराने शरीर को त्याग देते हैं। शरीर का यह "बूढ़ापन" या यों कहें कि शरीर की घटती उपयोगिता को केवल पहनने वाला ही निर्धारित कर सकता है। इस श्लोक की आलोचना यह है कि इस संसार में बहुत से बच्चे और युवा मरते हैं जिनका शरीर जीर्ण-शीर्ण नहीं था। इस मामले में, "बूढ़ापन" का अर्थ वास्तविक बुढ़ापा नहीं है, लेकिन शरीर की कम उपयोगिता यानी | इन बच्चों और युवाओं के लिए, यदि शरीर अनुपयोगी हो जाता है, तो वह शरीर पुराना माना जाएगा। एक अमीर व्यक्ति हर साल अपना भवन या वाहन बदलना चाहता है और हर बार उसे खरीदने के लिए कोई न कोई मिल जाता है। उस धनी व्यक्ति की दृष्टि से वह भवन या वाहन पुराना या अनुपयोगी हो गया है, लेकिन ग्राहक की दृष्टि से वही मकान उतना ही उपयोगी है जितना नया। इसी तरह, शरीर अप्रचलित हो गया है या नहीं, यह केवल वही तय कर सकता है जो इसे धारण करता है। यह श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धांत को पुष्ट करता है। (राव साहब एन. एस. यादव ) अर्जुन इस दृष्टान्त के माध्यम से समझते हैं कि मृत्यु उन्हें ही डराती है जो इसे नहीं जानते। लेकिन जो व्यक्ति मृत्यु के रहस्य और अर्थ को समझता है, उसे कोई दर्द या दुख नहीं होता है, क्योंकि कपड़े बदलने से शरीर को कोई दर्द नहीं होता है, और न ही हम हमेशा वस्त्र त्यागने की स्थिति में रहते हैं। इसी प्रकार विकास की दृष्टि से आत्मा भी शरीर त्याग कर नये अनुभवों की प्राप्ति के लिये उपयुक्त नये शरीर को धारण करती है। इसमें कोई दर्द नहीं है। यह वृद्धि और परिवर्तन जीव के लिए है न कि चेतना के रूप में आत्मा के लिए। आत्मा हमेशा परिपूर्ण होती है, उसे विकास की आवश्यकता नहीं होती। ©N S Yadav GoldMine #City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न
#City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न #पौराणिककथा
read moreParasram Arora
अभी अभी लौटा है एक अभिनेता तफरीह करके. बैचैन है निराश हुआ है. अपनी अभिनेत्री को यथा स्थान न पाकर ©Parasram Arora यथा स्थान
यथा स्थान #कविता
read moreवेदों की दिशा
।। ओ३म् ।। सप्त प्राणाः प्रभवन्ति तस्मात् सप्तार्चिषः समिधः सप्त होमाः। सप्त इमे लोका येषु चरन्ति प्राणा गुहाशया निहिताः सप्त सप्त ॥ 'उसी' से सप्त प्राणों का जन्म हुआ है, सप्त ज्वालाएँ, विभिन्न समिधाएँ सप्त होम तथा ये सन्त लोक जिनमें प्राण हृदय-गुहा को अपना बना कर विचरण करते हैं, 'उसी' से उत्पन्न हैं; सभी सात-सात के समूहों में हैं। The seven breaths are born from Him and the seven lights and kinds of fuel and the seven oblations and these seven worlds in which move the lifebreaths set within with the secret heart for their dwellingplace, seven and seven. ( मुंडकोपनिषद २.१.८ ) #मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #सप्त #यथा
#मुण्डकोपनिषद #उपनिषद् #सप्त #यथा
read moreAklesh Yadav
यथाशक्ति तथा भक्ति जितना आपको शक्ति है उसी के अनुसार काम करें नहीं तो बाद में पछताना पड़ सकता है ©Aklesh Yadav #City यथा शक्ति तथा भक्ति #life#success
Tarun Vij भारतीय
इतिहास में राजनीति में सिर्फ एक ही परिवर्तन आया है। पहले सत्ता धर्म निर्धारित करती थी, अब धर्म सत्ता निर्धारित करता है। यथा धर्म राजन, तथा धर्म प्रजा। #religion #politics #religionvspolitics #religionpolitics #qotd #hindiquotes #yqdidi #tarunvijभारतीय
यथा धर्म राजन, तथा धर्म प्रजा। #Religion #Politics #religionvspolitics #religionpolitics #qotd #hindiquotes #yqdidi #tarunvijभारतीय
read moreArsh
तुझे उपमा दूँ तो आखिर किसकी उपमा से भी तू अनुपम अनुपमता में हीं मैं भटका कैसे करूँ , मैं तेरा वर्णन ।। बर्फ के भीतर से रश्मि, छन कर आती वैसा कहूँ बर्फ पर बिछी चाँदनी या चंदा को बिंदिया कहूँ ।। तेरे लहराते आँचल को बादल कहूँ या केशों को मृग सा बना, इधर~उधर मैं तुझको हीं ढूँढा करूँ ।। तुम हीं कहो, तुम कौन हो मेरे सांसों की डोर हो, या ज़िन्दगी का झंकार मेरे मुझ कमल पर सोई शबनम या सागर की तृष्णा कहूँ अलसाई रात की सर्द हवा या प्रेम की ज्वाला कहूँ ।। उपमा:-किसी की तारीफ में कहे जाने वाले शब्द, यथा- मृगनैनी, गजगामिनी आदि। upma #arsh #jewells #gems #love #emotion #feeling #desire #passion #
उपमा:-किसी की तारीफ में कहे जाने वाले शब्द, यथा- मृगनैनी, गजगामिनी आदि। upma #Arsh #jewells #Gems #Love #Emotion #Feeling #desire #Passion # #nojotohindi #nojotopoem
read moreLife Lessons
Change your habits and Your life will change. Change your perspectives and The whole world will change. यथा दृष्टि, तथा सृष्टि। Change your habits and your life will change. Change your perspectives and the whole world will change. यथा दृष्टि, तथा सृष्टि। #zenattitud
Change your habits and your life will change. Change your perspectives and the whole world will change. यथा दृष्टि, तथा सृष्टि। zenattitud #JourneyWithin #zenattitude #mindapp
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