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मनोज कुमार झा "मनु"
उसने मेरी दैनंदिनी को अचानक से देखा। तीन शब्द जो उसके लिए ही लिखा था ।। आप भी पूछोगे क्या थे वे तीन शब्द? बस इतना ही कि "अपना ध्यान रखना"।। दैनंदिनी= डायरी ©मनोज कुमार झा "मनु" वो तीन शब्द #पीताम्बर
manoj kumar jha"Manu"
"आज जुकाम से सिर भारी है" मैं यह कहकर चाय की मना करूँगा। "अरे चाय तो जुकाम के लिए लाभदायक है" तुम यह कहकर पिला देना।। पीताम्बर और चाय
manoj kumar jha"Manu"
दिन गुजर तो जाता है मगर मुस्कुराता ही नहीं। तेरी याद न आये ऐसा तो कभी होता ही नहीं।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 दिन गुजर तो जाता है पीताम्बर #cinemagraph
manoj kumar jha"Manu"
दिन गुजर तो जाता है मगर मुस्कुराता ही नहीं। तेरी याद न आये ऐसा तो कभी होता ही नहीं।। फूल ही फूल सब तरफ और उनके बीच मैं, फूल मगर कोई तुम्हारे जैसा तो होता ही नहीं।। 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 दिन गुजर तो जाता है पीताम्बर #cinemagraph
manoj kumar jha"Manu"
यूँ झलक दिखा कर पीताम्बर, कहाँ चले जाते हो तुम। नजरें इधर उधर ढूंढें तुमको, मगर नजर नहीं आते हो तुम।। कहाँ गए पीताम्बर
Rahul Saraswat
बाल घुंघराले सिर पीताम्बर तन सोहे मोर मुकुट धारे गले बनमाल सजी नैन कजरारे और अधरन सुशोभित सांवली सुरतिया है!1! मनमोहिनी मुरलिया है!2! उठत चलत माखनचोर है छन छन छन बाजत यशोदा जी को नंदलाल हाथ के कंगन और ब्रजगोपाल हरि पैर की पाजनिया है!3! कृष्ण कन्हैया है!4! !! जय श्री राधेकृष्ण !! #पीताम्बर#कृष्ण#yqdidi
मनोज कुमार झा "मनु"
हरितालिका के पर्व पर, सब थे किंतु तुम नहीं मगर। श्रावण मास का सुंदर समय ,मगर नहीं था वहाँ पीताम्बर।। पीताम्बर तुम्हारी याद में,रो रहे हैं मेघ ये सब। गिर रही हैं बूँदें जो भी,जल नहीं स्व अश्रु हैं सब। मुस्कराहट ही छिन गयी है,और ये हृदय भी रोता है।। देखो सुनो चले आओ,तुमको देखते तो सौभाग्य होता है। अचानक देखा मैंने पीताम्बर था सामने, मन हुआ प्रसन्न नयनों ने जब देखा उसे। हृदय प्रफुल्लित था शब्द नहीं थे पास मेरे, अधिक पास आकर मैंने जब देखा उसे।। निरन्तर तुझे देखने का मन था मगर, समय अपने साथ नहीं था मगर। उसके बाद भी कई दिनों तक मिलना चाहा, इन्द्र को लेकिन यह रास नहीं आया मगर।। वर्षा घनघोर चहुंओर जल ही जल था, मार्ग में निकलने को स्थल नहीं था।। फिर चुपचाप बैठ गया मैं निराश, फिर जाता किन्तु वहाँ पीताम्बर नहीं था।। ©मनोज कुमार झा "मनु" पीताम्बर कहाँ हो