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"ANUPAM"

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राजेन्द्र प्र०पासवान

कविता #शब्द_खेल

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बीतेगी घृणा की अंधियारा 
वंशी का टेर कोई सुनाएगा 
दीप जलाकर मन में रखना 
प्रेम का नया सबेरा आएगा कविता  #शब्द_खेल

राजेन्द्र प्र०पासवान

हमने जो  देखा चाँद को 
चाँद ने देखा सितारों को ।
आया दिन गले लगने का 
ईद मुबारक  हो आपको । #शब्द_खेल

राजेन्द्र प्र०पासवान

लोग कहाँ भागे जा रहे हैं 
ये कैसा जन कोलाहल है ।
नफ़रत फैली है चारो ओर 
स्वदेश का ये कैसा हाल है ।
कौन किसकीआवाज सुने 
सब अपनों में ही बदहाल है ।
आओ चलें हम पेड़ के पास 
बुझा लें हम गले की प्यास ।
फँसे चुके  हैं हम बुरी तरह 
ये कौन शिकारी की है जाल? 
 #शब्द_खेल

राजेन्द्र प्र०पासवान

वक़्त आने पर मैं 
ख़ुद बदल जाऊँगा 
और कह दूँगा कि 
तख़्त बदल गया 
ताज़ बदल गया 
वक़्त के साथ मेरा 
इमान बदल गया ।
 #शब्द_खेल

Choubey_Jii

राज़ ऐ मोहब्बत बयां क्या करू,
अजब सा तो मेरा हाल हो गया है।

रूह छटपटा रही है तुझमें समाने को
जिस्म मेरा तो इक जाल हो गया है।

#चौबेजी  #चौबेजी #बज़्म #क़लम_ए_ख़ास #शब्द_खेल #nojoto

Choubey_Jii

धुआँ धुआँ था चारसू, आग का नामोनिशाँ न था, समुन्दर का किनारा था पर बुझाता मैं कैसे उसकी लगाई आग थी जो मेरे दिल को जला रही थी #Poetry #क़लम_ए_ख़ास #बज़्म #शब्द_खेल #चौबेजी

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धुआँ धुआँ था चारसू,
आग का नामोनिशाँ न था,

समुन्दर का किनारा था
पर बुझाता मैं कैसे

उसकी लगाई आग थी
जो मेरे दिल को जला रही थी

राजेन्द्र प्र०पासवान

गीत
दया करो भाई दया करो 
जीवात्मा पर दया करो ।
पेड़_पौधे पँछी 
कीट_पतंग जीव-जंतु 
सबमें है जीवात्मा 
दया की नहीं है सीमा 
सबसे जो श्रेष्ठ है 
उसपर कुछ उपकार करो 
दया करो भाई दया करो 
जीवात्मा पर दया करो । #शब्द_खेल

राजेन्द्र प्र०पासवान

चलते -चलते 
ज़िन्दगी अब ऊबने लगी है 
उदासी में शाम गुजरने लगी है  #शब्द_खेल

राजेन्द्र प्र०पासवान

हैरत    है कि मेरा कोई ख़ता न था 
फिर भी वह फासले बढ़ा कर गई ।
#बज़्म 
होगी  वह किसी सहर की ग़ज़ल 
ख़्वाब  से मुझको जगाकर गई ।
#क़लम_ए_ख़ास 
साहस न   था कि अत्यधिक लिखूँ
आस का दीया कोई जलाने लगी ।
#शब्द_खेल 
जाग उठा निर्जीव वाद्य यंत्र भी 
ज़िन्दगी जब राग सुनाने लगी ।
 #dpf
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