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Stories related to तनहा तनहा जीते थे

Parasram Arora

भी क्या दिन थे

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White वे भी क्या दिन थे 
ज़ब मै ठहाके मार कर 
हँसा करता था
 
बिना शिकायत के 
जिंदगी बसर करता था
 
छोटे छोटे खबाब देख 
कर जिंदगी के दिन 
काट लिया करता था
 
रफ्ता रफरता वक़्त गुजरता गया 
और बचपन पीछे छुटता गया 
 और मै जवान होता गया

©Parasram Arora भी क्या दिन थे

Praveen Jain "पल्लव"

#chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे

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पल्लव की डायरी
घुटन कियो लिबासों में हो रही है
फेशनो के नाम पर 
नंगेपन की नुबायस हो रही है
सादगी अंगों की बनी रहे
सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे
लगता है बाजारू रुख
असभ्यताओ को निमंत्रण दे रहा है
फले फूले बाजार,कट लिबास कर
अंगप्रदर्शन को तज्जबो दे रहा है
                                              प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव" #chaandsifarish सभ्यताओं के कपड़े पहनाये थे

Narender Kumar

दुर थे तो शांत थे पास आए तो शोर हुआ।

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unique writer

गुण नहीं थे

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Shashi Bhushan Mishra

#आस्तीन के सांप बहुत थे#

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आस्तीन के साँप बहुत थे फुर्सत में जब छाँट के देखा,
झूठ के पैरोकार बहुत थे आसपास जब झाँक के देखा,

बाँट रही खैरात सियासत मेहनतकश की झोली खाली, 
नफ़रत की दीवार खड़ी थी अल्फ़ाज़ों को हाँक के देखा,

जादू-टोना,  ओझा मंतर,  पूजा-पाठ   सभी   कर   डाले,
मिलती नहीं सफलता यूँही धूल सड़क की फाँक के देखा,

धरती से आकाश तलक की यात्रा सरल कहाँ होती है,
बड़ी-बड़ी  मीनारों  से  भी करके सीना चाक के देखा,

कदम-कदम चलता है राही दिल में रख हौसला मिलन का, 
मंज़िल धुँधला दिखा हमेशा सीध में जब भी नाक के देखा,

चलना बहुत ज़रूरी 'गुंजन' इतनी बात समझ में आई, 
हार-जीत के पैमाने पर ख़ुद को जब भी आँक के देखा, 
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #आस्तीन के सांप बहुत थे#

Mukesh Patel

#poetryunplugged जीवन है जो हम जीते हैं किस तरह से जीना है

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RAMLALIT NIRALA

जीते जी सम्मान करना सिख लो मरने के बाद समसान की दोर सुरू होगी

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silent whisperer

#ValentinesDay तुम मिले थे कुछ इस तरह

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meri_lekhni_12

मेरे जीते जी रो लेता..........#कविता Poetry #gajal

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White मेरे जीते जी रो लेता ,तो मैं मरता भला ही क्यों,
लौटकर आने की चाहत है पर मैं आ नही सकता।

क्यों गमगीन रहते हो , रहो न पहले जैसे तुम,
तुम्हारे चेहरे पर  मातम सा अब अच्छा नहीं लगता।

तसब्बुर में तेरे शामो शहर मैने दिन गुजारे थे,
तुझे क्या होगया जो मेरे बिन अब रह नही सकता।

तेरी राहों को तकती थी निगाहे मेरी हर सूं तब
कि क्यों बैठा है चौराहे पे, मुझे जब पा नही सकता।।

पूनम सिंह भदौरिया
दिल्ली

©ek_tukda_zindgi _12 मेरे जीते जी रो लेता..........#कविता #Poetry #gajal

Ganesh Din Pal

#मन के जीते जीत है 😯

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