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प्रशान्त मिश्रा मन
एक गीत! प्रेम ने दुनिया रची है, हम प्रणय के गीत रचते। दुर्जनों का साथ दे निज कर्म से वे रोज़ भागें। सो गया था चित्त उनका पर अभागे नैन जागें। हर तरफ अन्याय पसरा हर तरफ अपराध था सो- जागरण के राग भरकर हम समय के गीत रचते। प्रेम ने दुनिया रची है,........... मर रही हैं भावनाएं है अनय अंतिम चरण पर। कर रहें आलाप हम सब आज के सीता हरण पर। किन्तु कोई राम भी है जो उन्हें छुड़वा रहा है- रावणों को मृत्यु देकर; हम विजय के गीत रचते। प्रेम ने दुनिया रची है,................. दुर्बलों के हेतु संबल हम बने यह एषणा है। हो सतत सद्भावना ही यह हृदय की भावना है। हर थकन की हो पराजय धर्म की जय-जय सदा हो लोक हित में हम निकल कर अभ्युदय के गीत रचते। प्रेम ने दुनिया रची है,..................... प्रशांत मिश्रा मन #NojotoQuote एक गीत! प्रेम ने दुनिया रची है, हम प्रणय के गीत रचते। दुर्जनों का साथ दे निज कर्म से वे रोज़ भागें। सो गया था
प्रशान्त मिश्रा मन
एक गीत! मैंने सोचा न जिसको कभी होश में, आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है। मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा। दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा। एषणा थी न जिसकी मुझे वो मिला- धमनियों में रुधिर लबलबाने लगा। साँस बढ़ने लगी फिर उसे देख कर- सज सँवर कर चली, मनचली! आयी है। आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है। छू रही वो मुझे मैंने उसको छुआ। एक होने लगा तन मचलता हुआ। गढ़ रहीं देह पर धड़कनें राग को- साँस से और ख़ुशियों की माँगी दुआ। मैं बहकने लगा था भ्रमर की तरह- जब लगा मेरे घर इक कली आई है। आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है। प्यास क्या थी.? हमें यह मिलन कह रहा। मैं धरा शुष्क; उसको गगन कह रहा। साध कर मौन वो प्रेम बरसा गयी- तर मुझे कर गयी यह बदन कह रहा। चूम कर माथ को वो लिपटने लगी- बन के कोई परी! बावली आई है। आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है। प्रशांत मिश्रा मन #NojotoQuote एक गीत! मैंने सोचा न जिसको कभी होश में, आज वो स्वप्न बन कर चली आयी है। मन तृषित हो उठा, कँपकँपाने लगा। दाँत से उँगलियाँ मैं दबाने लगा। एषण
प्रशान्त मिश्रा मन
किसी विशेष मित्र हेतु एक गीत! ऋतुएँ आएँगी जाएँगी , बदलेंगे संदर्भ सहस्त्रों। प्रणय कलित पर हृदय हिमालय, तुम्हें सँभाले खड़ा रहेगा।
Anchal Pandey
चलिए.. कर दें आजाद खुदको, हर हथकड़ी, हर विकार से। संतोष, सौहार्द्र, दया और प्रेम हो जहां! चलें ऐसे नए संसार में। (अनुशीर्षक में पढ़ें ) Read in caption.. मन में कुछ आना, फिर उसकी ओर निकल जाना। कुछ करना, फिर पाना.. क्रमश: उसका अधिकारी बन जाना। यात्रा है हर किसी की! ...
Alok Vishwakarma "आर्ष"
जन्मदिन के शुभ अवसर पर भेंट स्वरूप 108 पंक्तियों की यह अनिर्वचनीय व अनुपम कविता "Happy Birthday Dear Vanila" प्रखर जगती के हित अवकाश में, तिमिर अज के निमित आकाश में । पहर प्रगति के ऋत्य प्रकाश में, उदय रश्मि सवित निशि न
Amar Anand
-परम सत्य योगपथ- ऋषि, मुनि, साधु और सन्यासी में अंतर - नीचे कैप्शन में... ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर :------ भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक म