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Pushpvritiya
वैदेही से मेरी भेंट "मयतनया" में हुई............. वैदेही जो धरा पर लेटी दूब से अपना मन बांट रही थी...... और वह दूब उसकी पीड़ा सुन अपना रंग त्याग रहा था....... यूं तो रामायण का पूर्ण ज्ञान नहीं रखती, तथापि जो देखा.....जो पढ़ा....जो जाना..उस अनुसार................ भूमिगत होते समय वैदेही के अंतिम वक्तव्य उसे उसके मूल रूप में ला रहे थे.............. प्रारंभ में मूल.......अंत विलेय भी मूल में.......... सारा आवरण सारी कथा तो बस बीच की होती है............. @पुष्पवृतियां ©Pushpvritiya "मयतनया"..... मंदोदरी पर लिखा उपन्यास वैदेही... सीता का एक अन्य नाम #holdmyhand
Kavi Bharat Bhushan Tyagi
करत रही मंदोदरी बारंबार सचेत। अभिमानी समझो नहीं संकट को संकेत।। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 मंदोदरी के बार बार समझाने पर भी रावण जब नही माना और रावण के ऐसी अभिमान ने उसके पूरे कुटम्ब का सर्वनाश कर दिया। पर हम सबके पास समझने का वक्त है। प्रशासन का साथ दें,घर पर रहे।। ✍️भूषण करत रही मंदोदरी बारंबार सचेत। अभिमानी समझो नहीं संकट को संकेत।। मंदोदरी के बार बार समझाने पर भी रावण जब नही माना और रावण के इसी
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रानी मंदोदरी का राजा विभीषण से पुनर्विवाह (कहानी) कृपया अनुशीर्षक में पढ़े.. दूसरा चरण_पुनर्विवाह शीर्षक-रानी_मंदोदरी_का_राजा_विभीषण_से_पुनर्विवाह ********************************** विद्या-कहानी ********* आज के शीर्ष
Vandana Rana
जब माता मंदोदरी ने मेघनाथ से कहा - यदि तुमने नारायण को पहचान ही लिया हैं पुत्र तो तुम श्री राम की शरण में चले जाओ! तब मेघनाथ ने कहा:-नहीं माते, पिता के लिए सब कुछ छोड़ना तो स्वयं श्री राम ने सिखाया है! ये शब्द किसी का दिल जीतने के लिए पर्याप्त हैं👌 आज की मानव जाति से धर्मपरायण तो ये राक्षश कुल के लोग थे , अपने धर्म,कर्म,रिश्ते सब का मोल जानते थे, इनके युद्ध-नीति की मर्यादा आज के समाज के छल कपट से कोसों दूर हैं, अपने अंत को भली-भांति जानते थे लेकिन कायरों की तरह नहीं छिपते थे तथा अपने करम का अनुसरण किया करते थे जब माता मंदोदरी ने मेघनाथ से कहा - यदि तुमने नारायण को पहचान ही लिया हैं पुत्र तो तुम श्री राम की शरण में चले जाओ! तब मेघनाथ ने कहा:-नहीं
Neha Mittal
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 8 माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥ और अपने पैरो में दृष्टि लगा रखी है- मन रामचन्द्रजी के चरणों में लीन हो रहा है-सीताजीकी यह दीन दशा(दुःख) देख कर,हनुमानजीको बड़ा दुःख हुआ॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम अशोक वाटिका में रावण और सीताजी का संवाद-रावण का अशोक वन में आना तरु पल्लव महँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥ तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥ हनुमानजी वृक्षों के पत्तो की ओटमें छिपे हुए,मन में विचार करने लगे कि हे भाई अब मै क्या करू?इनका दुःख कैसे दूर करूँ?॥उसी समय बहुत सी स्त्रियोंको संग लिए रावण वहाँ आया। जो स्त्रिया रावणके संग थी,वे बहुत प्रकार के गहनों से बनी ठनी थी॥ रावण सीताजी को भय दिखाता है बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥ कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥ उस दुष्ट ने सीताजी को अनेक प्रकार से समझाया।साम, दाम, भय और भेद अनेक प्रकार से दिखाया॥रावणने सीता से कहा कि हे सुमुखी!जो तू एक बार भी मेरी तरफ देख ले तो हे सयानी, मंदोदरी आदि सब रानियो को॥ सीताजी तिनके का परदा बना लेती है तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा॥ तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥ (जो ये मेरी मंदोदरी आदी रानियाँ है, इन सबको)तेरी दासियाँ बना दूं, यह मेरा प्रण जान॥रावण का वचन सुन बीचमें तृण रखकर (तिनके का आड़ – परदा रखकर),परम प्यारे रामचन्द्र जी का स्मरण करके,सीताजी ने रावण से कहा – सीताजी रावण को श्रीराम के बाण की याद दिलाती है सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥ अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥ हे रावण! सुन,खद्योत अर्थात जुगनू के प्रकाश से कमलिनी कदापी प्रफुल्लित नहीं होती।किंतु कमलिनी सूर्यके प्रकाश से ही प्रफुल्लित होती है।अर्थात तू खद्योत के (जुगनूके) समान है, और रामचन्द्रजी सूर्यके सामान है॥सीताजी ने अपने मन में ऐसे समझ कर, रावणसे कहा कि(जानकी जी फिर कहती है, तू अपने लिए भी ऐसा ही मन मे समझ ले)रे दुष्ट! रामचन्द्रजीके बाण को अभी भूल गया क्या? वह रामचन्द्रजी का बाण याद नहीं है॥ सठ सूनें हरि आनेहि मोही। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥ अरे निर्लज्ज! अरे अधम! रामचन्द्रजी के सूने तू मुझको ले आया। तुझे शर्म नहीं आती॥ Continue... Tuesday..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 335 से 346 नाम 335 पुरन्दरः देवशत्रुओं के पूरों (नगर)का ध्वंस करने वाले हैं 336 अशोकः शोकादि छः उर्मियों से रहित हैं 337 तारणः संसार सागर से तारने वाले हैं 338 तारः भय से तारने वाले हैं 339 शूरः पुरुषार्थ करने वाले हैं 340 शौरिः वासुदेव की संतान 341 जनेश्वरः जन अर्थात जीवों के इश्वर 342 अनुकूलः सबके आत्मारूप हैं 343 शतावर्तः जिनके धर्म रक्षा के लिए सैंकड़ों अवतार हुए हैं 344 पद्मी जिनके हाथ में पद्म है 345 पद्मनिभेक्षणः जिनके नेत्र पद्म समान हैं 346 पद्मनाभः हृदयरूप पद्म की नाभि के बीच में स्थित हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 8 माता सीता का मन, श्री राम के चरणों में निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥ और अपन
atrisheartfeelings
निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन॥8॥ तरु पल्लव महँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥ तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥ बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥ कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।। तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा॥ तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥ सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥ अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥ सठ सूनें हरि आनेहि मोही। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥ #atrisheartfeelings #ananttripathi #sundarkand #sunderkand #yqbaba #yqdidi दोहा निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देख
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} आखिर क्यों हंसने लगा मेघनाद का कटा सिर :- महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित हिंदू धर्मग्रंथ ‘रामायण’ में उल्लेख मिलता है कि रावण के बेटे का नाम मेघनाद था। उसका एक नाम इंद्रजीत भी था। दोनों नाम उसकी बहादुरी के लिए दिए गए थे। दरअसल मेघनाद, इंद्र पर जीत हासिल करने के बाद इंद्रजीत कहलाया। और मेघनाद, का मेघनाद नाम मेघों की आड़ में युद्ध करने के कारण पड़ा। वह एक वीर राक्षस योद्धा था। मेघनाद, श्रीराम और लक्ष्मण को मारना चाहता था। एक युद्ध के दौरान उसने सारे प्रयत्न किए लेकिन वह विफल रहा। इसी युद्ध में लक्ष्मण के घातक बाणों से मेघनाद मारा गया। लक्ष्मण जी ने मेघनाद का सिर उसके शरीर से अलग कर दिया। उसका सिर श्रीराम के आगे रखा गया। उसे वानर और रीछ देखने लगे। तब श्रीराम ने कहा, ‘इसके सिर को संभाल कर रखो। दरअसल, श्रीराम मेघनाद की मृत्यु की सूचना मेघनाद की पत्नी सुलोचना को देना चाहते थे। उन्होंने मेघनाद की एक भुजा को, बाण के द्वारा मेघनाद के महल में पहुंचा दिया। वह भुजा जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना ने देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। उसने भुजा से कहा अगर तुम वास्तव में मेघनाद की भुजा हो तो मेरी दुविधा को लिखकर दूर करो। सुलोचना का इतना कहते ही भुजा हरकत करने लगी, तब एक सेविका ने उस भुजा को खड़िया लाकर हाथ में रख दी। उस कटे हुए हाथ ने आंगन में लक्ष्मण जी के प्रशंसा के शब्द लिख दिए। अब सुलोचना को विश्वास हो गया कि युद्ध में उसका पति मारा गया है। सुलोचना इस समाचार को सुनकर रोने लगीं। फिर वह रथ में बैठकर रावण से मिलने चल पड़ी। रावण को सुलोचना ने, मेघनाद का कटा हुआ हाथ दिखाया और अपने पति का सिर मांगा। सुलोचना रावण से बोली कि अब में एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहती में पति के साथ ही सती होना चाहती हूं। तब रावण ने कहा, ‘पुत्री चार घड़ी प्रतिक्षा करो में मेघनाद का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर आता हूं। लेकिन सुलोचना को रावण की बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब सुलोचना मंदोदरी के पास गई। तब मंदोदरी ने कहा तुम राम के पास जाओ, वह बहुत दयालु हैं’। सुलोचना जब राम के पास पहुंची तो उसका परिचय विभीषण ने करवाया। सुलोचना ने राम से कहा, ‘हे राम में आपकी शरण में आई हूं। मेरे पति का सिर मुझे लौटा दें ताकि में सती हो सकूं। राम सुलोचना की दशा देखकर दुखी हो गए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को अभी जीवित कर देता हूं’। इस बीच उसने अपनी आप-बीती भी सुनाई। सुलोचना ने कहा कि, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे पति जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें। मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि आपके दर्शन हो गए। मेरा जन्म सार्थक हो गया। अब जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं’। राम के कहने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए। लेकिन उनके मन में यह आशंका थी कि कि मेघनाद के कटे हाथ ने लक्ष्मण का गुणगान कैसे किया। सुग्रीव से रहा नहीं गया और उन्होंने कहा में सुलोचना की बात को तभी सच मानूंगा जब यह नरमुंड हंसेगा। सुलोचना के सतीत्व की यह बहुत बड़ी परीक्षा थी। उसने कटे हुए सिर से कहा, ‘हे स्वामी! ज्लदी हंसिए, वरना आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब सत्य नहीं मानेंगे। इतना सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इस तरह सुलोचना अपने पति की कटा हुए सिर लेकर चली गईं’। ©N S Yadav GoldMine #Colors {Bolo Ji Radhey Radhey} आखिर क्यों हंसने लगा मेघनाद का कटा सिर :- महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित हिंदू धर्मग्रंथ ‘रामायण’ में उल्लेख मि
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 9 रावण को क्रोध आता है आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥ सीता के मुख से कठोर वचन अर्थात अपनेको खद्योत के (जुगनूके) तुल्य औररामचन्द्रजी को सुर्य के समान सुनकर रावण को बड़ा क्रोध हुआ जिससे उसने तलवार निकाल कर, बड़े गुस्से से आकर ये वचन कहे ॥9॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम रावण सीताजी को कृपाण से भय दिखाता है सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥ नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥ हे सीता! तूने मेरा मान भंग कर दिया है।इस वास्ते इस कठोर खडग (कृपान) से मैं तेरा सिर उड़ा दूंगा॥हे सुमुखी, या तो तू जल्दी मेरा कहना मान ले,नहीं तो तेरा जी जाता है,(नही तो जीवन से हाथ धोना पड़ेगा)॥ माता सीता के कठोर वचन स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥ सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥ रावण के ये वचन सुनकर सीताजी ने कहा,हे शठ रावण, सुन,मेरा भी तो ऐसा पक्का प्रण है की या तो इस कंठ पर श्याम कमलो की मालाके समान सुन्दर और हाथिओ के सुन्ड के समान (पुष्ट तथा विशाल) रामचन्द्रजी की भुजा रहेगी या तेरी यह भयानक तलवार।अर्थात रामचन्द्रजी के बिना मुझे मरना मंजूर है,पर अन्य का स्पर्श नहीं करूंगी॥ माता सीता तलवार से प्रार्थना करती है चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥ सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥ सीता उस तलवार से प्रार्थना करती है कि हे तलवार!तू मेरे संताप को दूर कर,क्योंकि मै रामचन्द्र जी की विरहरूप अग्निसे संतप्त हो रही हूँ॥ सीताजी कहती है, हे चन्द्रहास (तलवार)!तेरी शीतल धारासे (तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है, तेरी धारा ठंडी और तेज है) मेरे भारी दुख़ को दूर कर॥ मंदोदरी रावण को समझाती है सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥ कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥ सीता जीके ये वचन सुन कर,रावण फिर सीताजी को मारने को दौड़ा। तब मय दैत्य की कन्या मंदोदरी ने निति के वचन कह कर उसको समझाया॥फिर रावण ने सीता जी की रखवारी सब राक्षसियों को बुलाकर कहा कि –तुम जाकर सीता को अनेक प्रकार से भय दिखाओ॥ रावण राक्षसियों को आदेश देता है मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥ यदि वह एक महीने के भीतर मेरा कहना नहीं मानेगी,तो मैं तलवार निकाल कर उसे मार डालूँगा॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 395 से 406 नाम 395 विरामः जिनमे प्राणियों का विराम (अंत) होता है 396 विरजः विषय सेवन में जिनका राग नहीं रहा है 397 मार्गः जिन्हे जानकार मुमुक्षुजन अमर हो जाते हैं 398 नेयः ज्ञान से जीव को परमात्वभाव की तरफ ले जाने वाले 399 नयः नेता 400 अनयः जिनका कोई और नेता नहीं है 401 वीरः विक्रमशाली 402 शक्तिमतां श्रेष्ठः सभी शक्तिमानों में श्रेष्ठ 403 धर्मः समस्त भूतों को धारण करने वाले 404 धर्मविदुत्तमः श्रुतियाँ और स्मृतियाँ जिनकी आज्ञास्वरूप है 405 वैकुण्ठः जगत के आरम्भ में बिखरे हुए भूतों को परस्पर मिलाकर उनकी गति रोकने वाले 406 पुरुषः सबसे पहले होने वाले 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 9 रावण को क्रोध आता है आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥ सीता के मुख से
Divyanshu Pathak
गुरु और शिष्य का नाता दुनिया में सबसे श्रेष्ठ है। मन बुद्धि आत्मा तक जिसकी पकड़ होती है। वह गुरुजी ही होते है। जब भी उनके साथ कुछ उपेक्षित किया जाए तो, उन्हें बहुत दुःख होता है। और रूठे इष्टदेव का कोपभागी बन, ख़ामियाजा भुगतना ही पड़ता है। आप सभी को परशुराम जयंती की शुभकामनाएं। कैप्शन पढ़ ही डालिये...💐 क्रमशः- 02 #गुरु_और_शिष्य हमारे शास्त्र और पुराण तो गुरु शिष्य के दृष्टांतो से भरे पड़े हैं। सृष्टि के आरंभ से यह परंपरा हमने ही दुनिया को दी। इसका प्रमाण हमारा ऋग्वेद