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Priyanjali
भाग:-२ बड़ो ने सदा सुहागन का आशीर्वाद दिया..... छोटों ने कर प्रणाम ढेर सारा प्यार दिया...... जेठ सब बचते फिरें....... देवर मज़ाक का....... एक मौका न छोड़ें........ मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी सबको देखती....... भाभी देख ननदी खुशी में पगलाई रे........ बेटी हुई है देख किसीने दी दुहाई......... किसीने हाय लगाई रे........................! मिलन रात की बेला आयी................. सबने मिलकर सुहाग की सेज सजायी...... देवर सब ज्ञान बाँटे........... ननद भी सब कहाँ पीछे.......... "वो" न आये रातभर मैं प्रतीक्षा करती रही............ नींद आये अँखियन में बैठे बैठे रतिया बिताई रे........!! बेटी हुई है देख किसीने दी दुहाई...... किसीने हाय लगाई रे...................! भोर भई आहट हुई दरवाजे पर....... लगा वो आये......... किन्तु कानों में गुँजा सासुमाँ का स्वर........ सब की इच्छा नई बहू के हाथ का........... बना चाय पीने की.................. मंद मंद मुस्काते रसोई में कदम बढ़ाई रे..... सबका मन मोहने....... प्रेम स्नेह मिलाया...... चाय बनाई रे.......... बेटी हुई है देख किसीने दी दुहाई......... किसीने हाय लगाई रे.....................!! अपने उनको न देख खीज गई.... किससे, कैसे पूछूँ, समझ न पाई....... देख दुविधा में मग्न मुझे............ ननदी धीरे धीरे मेरे पास आई...... भईया गए बॉर्डर में लड़ने...... आकस्मिक बुलावा आया था........ ननदी कानों में यही गुनगुनाई रे....... बेटी हुई है देख किसीने दी दुहाई......... किसीने हाय लगाई रे......................!! ©Priyanjali भाग:-२ बड़ो ने खूब आशीर्वाद दिया... छोटों ने कर प्रणाम ढेर सारा प्यार दिया... जेठ सब बचते फिरें..... देवर मज़ाक का एक मौका न छोड़ें.... मैं कि
N S Yadav GoldMine
बूड्ढी बैट्ठी घर के बाहरणे छोरी पतासे बाट्टण आई। करले दादी मुह नैं मिट्ठा मेरी मां की कोथली आई। {Bolo Ji Radhey Radhey} बूड्ढी बोल्ली के खाउं बेट्टा, घर की बणी या चीज कोन्या। सारे त्योहार बाजारु होगे, ईब पहले आली तीज कोन्या। कोथली तो वा होवै थी जो म्हारे टैम पै आया करती। सारी चीज बणा कै घरनै मेरी मां भिजवाया करती। पांच सात सेर कोथली मैं, गुड़ की बणी सुहाली हो थी। गैल्या खांड के खुरमें हो थे, मट्ठी भी घर आली हो थी। सेर दो सेर जोवे हों थे, जो बैठ दोफारे तोड्या करती। पांच सात होती तीळ कोथली मैं, जो बेटी खातर जोड़्या करती। एक बढिया तील सासू की, सूट ननद का आया करता। मां बांध्या करती कोथली, मेरा भाई लेकै आया करता। हम ननद भाभी झूल्या करती, झूल घाल कै साम्मण की। घोट्या आली उड़ै चुंदड़ी, लहर उठै थी दाम्मण की। डोलै डोलै आवै था, भाई देख कै भाज्जी जाया करती। बोझ होवै था कोथली मैं, छोटी ननदी लिवाया करती। बैठ साळ मैं सासू मेरी, कोथली नैं खोल्या करती। बोझ कितना सै कोथली मैं, आंख्या ए आंख्या मैं तोल्या करती। फेर पीहर की बणी वे सुहाली, सारी गाल मैं बाट्या करती। सारी राज्जी होकै खावैं थी, कोए भी ना नाट्या करती। कोथली तो ईब भी आवै सै, गैल्या घेवर और मिठाई। पर मां के हाथ की कोथली सी, मिठास बेबे कितै ना पाई। सावन की कोथली और तीज की बधाई।🌳🌴🌳🌴🙏🙏 N S Yadav GoldMine 🌹🌹🙏🙏🌹🌹 ©N S Yadav GoldMine #DiyaSalaai बूड्ढी बैट्ठी घर के बाहरणे छोरी पतासे बाट्टण आई। करले दादी मुह नैं मिट्ठा मेरी मां की कोथली आई। {Bolo Ji Radhey Radhey} बूड्ढी