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Prem Nilewad

मेरी कुछ lines महारथी महा धनुर्धारी महा दानी... सुर्यपुत्र कर्ण पर समर्पित है 🙏

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मेरी पहचान  #सुर्यपुत्र कर्ण

©Prem Nilewad मेरी कुछ lines महारथी महा धनुर्धारी महा दानी... सुर्यपुत्र  कर्ण पर समर्पित है 🙏

सुमन

महारथी

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Anand Mishra

कर्ण #कर्ण

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जब निश्चित हो निज हार प्रबल,
और मन कुंठित सा तकता हो,
लर्जिश हो तन और साँसों में,
और डग-मग भय सब सुनता हो,
खलिश मची हो अंतर्मन,
जीत खड़ी ,फुफकारे फन,
आंख झुकीं,मन शायी हो,
हर-पल थमते भाई हों,
उठो वीर! तब सांस भरो,
अब साथी मन का आएगा,
सभी पुकारेंगे वीर उसे भी,
पर वो कर्ण कहलायेगा ।

©Anand Mishra कर्ण
#कर्ण

Maulik Soni

#noshame महारथी करण....🚩

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sonali dubey

# कर्ण #विचार

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Anjani Upadhyay

कर्ण #समाज

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Vivek Singh rajawat

कर्ण।

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"कर्ण"
कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए
पथ भ्रष्ट नही तुम संगत भ्रष्ट हो गए,
न्याय से तोड़ नाता अन्याय के स्व हो गए
कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए,
कृष्ण ने भी माना तुमको तुम्हारे कौशल को जाना
तुमको एक बार अकेले युद्ध विराम शक्ति जाना,
परशुराम की शिक्षा को तुम भूल गए
अनिष्ट को अपना स्वयं के अस्तित्व को भूल गए,
कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए।
तुम सा दानी न हुआ कोई उस द्वापर काल में
तुम फँस गए मैत्री और छल प्रपंच के मायाजाल में,
अंगदेश को वरदान मिला जो तुम अंगराज हो गए
देवी कुन्ती को वरदान मिला तुम सूर्यपुत्र हो गए,
कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए।
तुमने क्षत्रिय हो कर भी शुद्र के जीवन जी लिया
लघु जाति की वेदना तृष्णा को भी सह लिया,
यू तो पांडव पाँच थे प्रथम छटे तुम हो गए
विधि के खेल में तुम ममत्व से अछूते रह गए,
कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए।
ये काल ने कुछ ऐसी गति हैं बनाई
अनीति देखो आज नीति पर हावी हो आई,
कुरु सभा में द्रौपदी का चिर हरण किया जाए
हे दानी तुम मौन क्यों ये रहस्य न समझ आए,
कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए।
तुम दानी,वीर शास्त्रों से शस्त्र तक तुममे समाए
फिर क्यों तुम अनीति के साथ हो आए,
कर्ण तुम कैसे वीदीर्ण हो गए।
विवेक सिंह राजावत कर्ण।

Madhu Katariya

कर्ण #पौराणिककथा

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vibhanshu bhashkar

#कर्ण

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खुद को अर्जुन बताते हो ..
अब तुम्हारे शहर कोई कर्ण
नहीं बचा क्या ...?? #कर्ण

Saurabh Dubey

#कर्ण

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#कर्ण#
त्याग,तप की प्रतिमूर्ति और था वह स्वाभिमानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
जन्म लेते ही राधेय को
आँचल मिला था जल का,
कहाँ पता था उत्तर देना 
होगा नियति के छल का।
सोचा उसने कुरु वंश को
अपना कौशल दिखलाऊँ,
निज शरासन से अपने शौर्य का,
परिचय जग को करवाऊं।।
मगर तभी सभा में 
एक आंधी सी आई,
योग्यता को निगल गयी,
जात-पात की खाई।।
उसी क्षण कर्ण ने कौन्तेय से प्रतिस्पर्धा थी ठानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
प्रतिस्पर्धा की चाह में वह
भटक रहा था वन में,
ज्वार सा उमड़ रहा था 
रक्त उसके तन में।।
अपने कौशल से उसने परशु को 
गुरुता करवायी थी धारण,
मन ही मन आनंदित थे दोनों
होने वाला था व्रत का पारण।।
पीड़ाओं पर विजय प्राप्त कर 
भी वह था हारा,
गुरु ने श्राप दिया रण में
भूलोगे ज्ञान सारा।।
गुरु को कर प्रणाम फिर उसने अपनी भूल मानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
दे रहे थे अर्घ्य सूर्यपुत्र 
पिता को जब जल से,
मांग लिया देवराज ने
कवच-कुंडल तब छल से।
देवराज ने यह सोच लिया
अब तो यह निर्बल है,
किन्तु सूर्यपुत्र का तेज 
बिन इनके भी और प्रबल है।।
बज उठी दुदुम्भी रण में 
सूर्यपुत्र कर रहे युद्ध की तैयारी,
कितने वर्षो बाद कौन्तेय 
वध की अब आई है बारी।
भीषण युद्ध की कालिमा अब दोनों ओर है छानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
फंसा गया अचानक रण में
जब सूर्यपुत्र का रथ,
केशव ने फिर दिखलाया पार्थ को 
वहीं विजय का पथ ।
असमंजस में थे पार्थ 
नियति के इस खेल से,
मन व्यथित था पार्थ का,
वास्तविकता के इस मेल से।।
संधान किया पार्थ ने फिर गांडीव का
और झोंक दिया अपना बल सारा,
इस प्रकार रण में कर्ण, 
गया भ्राता के हाथों मारा।।।
वर्षों बीत गए फिर भी अब तक न बदली कहानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
              -सौरभ दुबे "संकल्प"

©Saurabh Dubey ##कर्ण
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