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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी करो मतदान, लोकतंत्र मजबूत बनाना है दिल्ली का दिल दिलवाला जीते हवा पानी की शुद्धता की शपथ खाना है लगे राजधानी भारत की ऐसा मन्त्र उम्मीदवारों को पढ़ाना है क्राइम केपिटल ना बने दिल्ली बढ़ चढ़कर दिल दिल्ली का जीतने का सबको प्रण उठाना है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #delhiearthquake करो मतदान
#delhiearthquake करो मतदान
read moreShashi Bhushan Mishra
भीड़ भगदड़ और सियासत, कर रहे हो क्यों शिकायत, ज़िन्दगी महफूज़ सबकी, ख़ुदा तुम रखना इनायत, आस्था अपनी जगह है, भीड़ से बचना हिदायत, ज़ल्दबाज़ी मत करो तुम, पास आ जाती क़यामत, गिद्ध दृष्टि ताकतीं जब, मन में लेकर इक अदावत, समझ पाते नहीं ज़ाहिल, मूर्ख भी करते बगावत, सीख लो तुम प्यार 'गुंजन', भावना मत करो आहत, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #भावना मत करो आहत#
#भावना मत करो आहत#
read moreAkash gautam s n
White अब हमनें उनको याद करना छोड़ दिया जो सायाद हमको कब का भूल चुके हैं ©Akash gautam s n #love_shayari किसीको याद ना करो
#love_shayari किसीको याद ना करो
read moreRAMLALIT NIRALA
White आज में नराज हूँ जब कौई दिकत परसानी होती है तो ईशान एक दुसरे की हैल्प ले लेता है पर कभी ईशान सोचा है कि जब हम लोग इस धरती पर बसे जीव जन्तु पर बेधड़क वार कर देते है तो उसे कौन सहारा देता होगा एक दुसरे से अलग करने मे क्या मीलता है जीतना दर्द ईसांन को होता है उतना ही हर जीव जंतुवो को भी होता है ©RAMLALIT NIRALA जीव जंतुवो पर दया करो
जीव जंतुवो पर दया करो
read moreParasram Arora
New Year 2025 खत्म करो अतीत की बात यदि तुम अतीत से नहीं टूटते तो तुम एक प्रेतात्मा का जीवन जी रहे होते हो. तब तुम्हारा जीवन अस्तित्वगत नहीं होता तब तुमारा जीवन सच्चा नहीं होता ©Parasram Arora खत्म करो अतित की बात
खत्म करो अतित की बात
read moreRUPESH Kr SINHA
......................................... ......... ©RUPESH Kr SINHA #कभी दर्द भी महसूश करो
#कभी दर्द भी महसूश करो
read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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