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Bachan Manikpuri
Unsplash दिमाग दिमाग मनुष्य का पृथ्वी है वह जमीन है वह मिट्टी होती है जहां पर हम अपनी सोच रूपी बीजों को बोते हैं जिस तरह का बीज हम अपने दिमाग में बोते हैं उसी तरह से हमारा जीवन का निर्माण होता है इसलिए अपने दिमाग में वही बीज बोए जो आपके लिए अच्छा है जो आपकी उन्नति के मार्गों को खोलती है ©Bachan Manikpuri बीज
बीज
read moreSatish Kumar Meena
शादी का बंधन पवित्र होता है क्योंकि इसके साक्षी भगवान होते हैं जिनसे कुछ छुपा नहीं है। ©Satish Kumar Meena शादी का बंधन
शादी का बंधन
read moreAnjali Jain
आज प्रजातंत्र,भीड़तंत्र में बदल चुका है भीड़, पहले नेतृत्व को विवश करती है अपनी सुख सुविधाओं के लिए.... फिर स्वयं विवश होती है अपने दुःख और दुविधाओं से...!! ©Anjali Jain आज का विचार 08.12.24 आज का विचार
आज का विचार 08.12.24 आज का विचार
read moreश्रद्धा - एक गहरा समुन्दर
सारे पुराने धर्मों ने ईश्वर का भय सिखाया है! और जिसने भी ईश्वर का भय सिखाया है, उसने पृथ्वी पर अधर्म के बीज बोए हैं। क्योंकि भयभीत आदमी धार्मिक हो ही नही सकता। भयभीत आदमी धार्मिक दिखाई पड़ सकता है। ©श्रद्धा - एक गहरा समुन्दर #अधर्म #धार्मिक #“भयभीत” #ईश्वरीयशक्ति #पृथ्वीलोक #बीज #आदमीकाकिरदार #6thdec/12/24 #panchmi_shuklapaksha #margshish #11_12
#अधर्म #धार्मिक #“भयभीत” #ईश्वरीयशक्ति #पृथ्वीलोक #बीज #आदमीकाकिरदार #6thdec/12/24 #panchmi_shuklapaksha #margshish #11_12
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी वैज्ञानिकों की कारगुजारियों के चलते मौसम रंग बदल रहे है बायु प्रदूषण में केमिकल्स और वाहनों के अंधाधुंध प्रयोग शामिल हो रहे है कैसे पनपे कोई स्वस्थ्य बीज पौधा बनकर यूरिया और कीटनाशक मिट्टी के कण कण में पनप रहे है जहरीला हर खाद्यान्न भोजन के रूप में है केंसर के रूप में विश्वभर के लोगो को लील रहै है सभ्यताओं के विकास में पागलपन इतना बढ़ गया जीवन हम सब अपना बीमारियों के रूप में ढ़ोह रहे है चिंता शुद्व हवा पानी की करते करते असभ्यताओ के बीज विषरूप में बो रहे है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #WorldEnvironmentDay असभ्यताओ के बीज विषरूप में बो रहे है
#WorldEnvironmentDay असभ्यताओ के बीज विषरूप में बो रहे है
read moreashita pandey बेबाक़
कठिन उद्यमों से,मैंने जीवन की माटी ,सींची हैं तकदीरों के मस्तक पर मेहनत की ,रेखा खींची हैं जब जब घाव लगा हैं बढ़ने थोड़ी आंखें भींची हैं अपनी ज़िद मैं लिए बड़ी ये दुनिया,कांच सरीखी हैं दिवास्वप्न मे लिप्त नहीं,मैं रही धरा पर वास किए सभी कंटकों से जूझी स्वयं विजयश्री की हासिल नहीं कोई इक भी अखियां मेरे घावों पर भीगी हैं कठिन उद्यमों से,मैने जीवन की माटी,सींची हैं ©ashita pandey बेबाक़ #sad_quotes आज का विचार आज का विचार शुभ विचार
#sad_quotes आज का विचार आज का विचार शुभ विचार
read moreDev
वो कर्ज़ हम चुका ना पाये। हम्हारा फ़र्ज़ हम निभा ना पायें।। ©Dev दिल का अहसास
दिल का अहसास
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