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BANDHETIYA OFFICIAL
कलम कला है,कलई भी खुल जाती है। सर कलम मौत हो, हो जीवन पेड़ कलम कटा, मरण -जनम की थाती है, कलई भी खुल जाती है। प्रमाण पत्र जनम का, प्रमाण पत्र मरण का, मृत्यु का जीवन का, कुंडली भी कुछ पाती है। सृजन किसे भाये, कौन दुश्मन, ये भी कलम की हस्ती यकीनन, सर, धड़, जड़, पकड़ ले धड़कन, जकड़ ले यम अकाल भी, अकाल मृत्यु आती हैं। ©BANDHETIYA OFFICIAL #कलम #कला है।
#कलम #कला है। #मोटिवेशनल
read moreअज्ञात
सुनते हो ए कलम, आज जब मैंने अपने आप को दर्पण मे देखा तो घबरा गया.. मैंने देखा मेरे सर रूपी काली घटाओं को चीरते हुए मानो दूज का चाँद निकल आया हो और अपनी चांदनी की छटा सर के चारों तरफ बिखेरने को आतुर हो..! वहीं जब अपने चेहरे को देखा तो उसमे भी कहीं कहीं दाग धब्बे गड्ढे दिखे और अजीब सी एक उदासी सी छा रही थी..! ए कलम मानो दर्पण मुझसे कह रहा हो कि अब कलम का साथ छोड़ और तुलसीमाला हाथ मे ले ले..! यूँ आभास होते ही मैं बेचैन हो गया और यकायक दर्पण से बोल उठा.. ए दर्पण मेरे थोड़ा वक़्त दे,.. थोड़ा वक़्त दे.. अभी तक मुझे मेरी अंतरप्रेरणा का दीदार तक नहीं हुआ है.. बस एक बार उसका दीदार कर लूँ फिर तेरे सारे इशारों को सहर्ष स्वीकार कर लूंगा... और मानो दर्पण ने मेरी विस्मृति पर कटाक्ष करते हुए मुझे आगाह किया हो कि-"मत भूल दीदार और श्रृंगार के लिए मुकर्रर वक़्त इस जन्म मे नहीं अगले जन्म का है इसलिये अपने आप को बैचैन मत कर..! " इतना सुनते ही मानो मैंने दर्पण से मुख मोड़ लिया और तुमसे मेरे अंतर के द्वन्द बताने चला आया.. क्या तुम भी यह मान चुके हो कि अब मैं उस अवस्था के पायदान चढ़ने लगा हूँ जहाँ से वापस उतरा नहीं जा सकता..? और अगर मेरी देह अपने चरम को पा रही है तो क्या मुझे अपनी अंतरप्रेरणा से मुख मोड़ लेना चाहिए, ये किस अवस्था में आ पड़ा हूँ, क्या अब उसे भुलाना होगा मुझे..? क्या अब उसके रूप लावण्य पर, उसके सौंदर्य पर,उसके मनमोहक स्वरूप पर,स्वभाव पर लिखना अशोभनीय सा लगेगा..? या ऐसा करने से मुझे या उसे कोई क्षोभ हो सकता है...? ना जाने कितने सवाल मेरे अंतर को वेधे जा रहे हैं..! मैं उसे अपने अंतर से कैसे विदा कर पाउँगा कलम...नहीं नहीं मैं तो उसे एक पल भी दूर न कर पाउँगा। तुम तो मेरे पग पग के साथी रहे हो.. तुमसे क्या छिपा है कलम..! मैं तुमसे पूछता हूँ,बस मुझे इतना बता दो मेरी अंतरप्रेरणा मेरी इस बूढ़ी होती देह को देखकर मुझसे दूर तो नहीं हो जायेगी..! वो मेरे पास ही रहेगी ना..? बोलो ना कलम..! मेरे पास..! क्यूंकि मेरे पास केवल वही है जो मेरे जीने का आधार है। ©अज्ञात #कलम
Dev Rishi
घरों की चौखटों पर शिक्षा यूं ही रखी रहें दवा दारू, न सही पर शिक्षा यूं ही मिलती रहें स्कूल, कोलेज, अब तो सारे धंधेबाज हो गये है कुछ यूं ही घरों की दीवारें किताबों से सजी धजी रहें ©Dev Rishi #शिक्षा #व्यवसाय
SarkaR
कलम हमारी चलती है करीबी दुनिया देख कर। ज़ालिम दुनिया ने हमे ही किरदार बना दिया। ©SarkaR #कलम