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Mili Saha
// जन्मदिन // कहीं तो खो गए हैं आकर हम समझदारी की दुनिया में, न उछल कूद, न हल्ला गुल्ला कहांँ आ गए इस जहांँ में। बचपन में जन्मदिन पर मन कितना उत्साहित रहता था, सप्ताह भर पहले से ही, चंचल तितली सा ये फिरता था। अब तो अनगिनत जिम्मेदारी और भविष्य की चिंता में, अपनी खुशी, अपना जन्मदिन, कहांँ याद रह पाता हमें। सब की खुशियों का ख़्याल रखते-रखते, खुद को भूले, औरों की खुशियों में हमारी खुशियों के अब फूल खिले। कहाँ मतवाले से हो जाते, बचपन में, इस दिन के लिए, अब तो वक़्त ही नहीं मिलता, इस उतावलेपन के लिए। केक काटने और तोहफा पाने की मन में रहती हलचल, स्नेक्स, कोल्ड्रिंक,चॉकलेट्स देख मन जाता था मचल। गुब्बारे फोड़ते,मिठाइयांँ खाते, खेल होते थे मस्ती वाले, कितने खास हम एहसास कराते जन्मदिन बचपन वाले। जितनी भी कर लो मस्ती न रोक टोक न पड़ती थी डांट, सबकी ज़ुबान पर रहता हमारा नाम और हमारी ही बात। मम्मी पापा, दादा दादी दोस्त, रिश्तेदार,देते थे बधाइयांँ, नाना नानी से सुंदर उपहार पा,खिलती मन की कलियांँ। सभी दोस्त होते थे साथ हल्ला गुल्ला मस्ती का माहौल, दोस्तों का कहना "हैप्पी बर्थडे टू यू" लगते थे मीठे बोल। (पूरी कविता अनुशीर्षक में ) ©Mili Saha जन्मदिन कहीं तो खो गए हैं आकर हम समझदारी की दुनिया में, न उछल कूद, न हल्ला गुल्ला कहांँ आ गए इस जहांँ में। बचपन में जन्मदिन पर मन कितना उत