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नवनीत ठाकुर
हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा, मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा। हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने, गिरकर भी उठने का हुनर सीख लिया मैंने। हवा के रुख़ से कभी डर नहीं लगता मुझे, मेरी मंज़िल ने मेरे इरादों को आज़मा लिया है। हर जख्म ने मेरे हौसले को और गहरा किया, हर दर्द ने मेरी जीत का रास्ता दिखा दिया। अब तूफ़ान भी मुझसे सहम कर गुजरते हैं, मेरे इरादों से ज़माने के नक़्शे बदलते हैं। जहाँ कांटे बिछाए गए थे मेरे रास्तों में, वहीं मैंने अपने सपनों के फूल खिला दिए। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा, मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा। हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने, गिरकर भी उठने
#नवनीतठाकुर हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा, मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा। हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने, गिरकर भी उठने
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आँधियों ने भी कई बार राह रोकनी चाही, पर मेरे हौसले ने हर दिवार तोड़ दी। दुनिया ने पूछा कैसे जीते हो हर जंग, मैंने कहा, खुद से हारने की बात छोड़ दी। जो गिरते हैं, वही उड़ना सीखते हैं, जो जलते हैं, वही सूरज बनते हैं। मुझे गिराने की साज़िश हर तूफ़ान ने की, पर मैं हर बार और मज़बूत होकर उठता हूँ। मंज़िलों ने कहा, तुमने हम तक पहुँचने का हक़ पाया, रास्तों ने कहा, तुम्हारे जज़्बे ने हमें झुकाया। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर आँधियों ने भी कई बार राह रोकनी चाही, पर मेरे हौसले ने हर दिवार तोड़ दी। दुनिया ने पूछा कैसे जीते हो हर जंग, मैंने कहा, खुद से
#नवनीतठाकुर आँधियों ने भी कई बार राह रोकनी चाही, पर मेरे हौसले ने हर दिवार तोड़ दी। दुनिया ने पूछा कैसे जीते हो हर जंग, मैंने कहा, खुद से
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तूफ़ान आए तो मेरा हौसला देखो, डूबता हूँ, उभरता ज़रूर हूँ। गिरकर फिर से खड़ा, तूफ़ानों से लड़ने का तरीका, ढूंढता ज़रूर हूँ। राहें कठिन हो, फिर भी रुकता नहीं , गिरते हुए भी खुद को सम्भालता हूँ, हार नहीं मानता कभी, हर हाल में जूझता ज़रूर हूँ। हर चोट ने मेरी पहचान बनाई है, जो गिरा, उसने उठने की कहानी सुनाई है। राख से उगने की आदत है मुझमें, जलकर भी खुद को जलाता ज़रूर हूँ। मुश्किलें मुझसे हार मान जाती हैं, मेरे इरादे हर मोड़ पर मुस्कुराते हैं। ज़िंदगी के हर तुफ़ान को मैंने देखा है, पर ख़ुद को हर बार आज़माता ज़रूर हूँ। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर तूफ़ान आए तो मेरा हौसला देखो, डूबता हूँ, उभरता ज़रूर हूँ। गिरकर फिर से खड़ा, तूफ़ानों से लड़ने का तरीका, ढूंढता ज़रूर हूँ।
#नवनीतठाकुर तूफ़ान आए तो मेरा हौसला देखो, डूबता हूँ, उभरता ज़रूर हूँ। गिरकर फिर से खड़ा, तूफ़ानों से लड़ने का तरीका, ढूंढता ज़रूर हूँ।
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सूरज हूँ, हर शाम ढलता ज़रूर हूँ, पर हर सुबह फिर से जलता ज़रूर हूँ। जितनी बार गिरा हूँ, उतनी बार सीखा हूँ, हर चोट ने मुझे और सशक्त किया, ज़रूर हूँ। राहें कांटों से भरी हों, फिर भी चलता हूँ, तक़दीर खुद की बदलता ज़रूर हूँ। दूरियाँ चाहे जितनी बढ़ें मुझसे, वो मेरी मंज़िल, फिर भी मेरे कदमों तक पहुँचता ज़रूर हूँ। लहरों से डरकर मैं किनारे नहीं बैठता, तूफ़ान से भी टकराता ज़रूर हूँ। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर सूरज हूँ, हर शाम ढलता ज़रूर हूँ, पर हर सुबह फिर से जलता ज़रूर हूँ। जितनी बार गिरा हूँ, उतनी बार सीखा हूँ, हर चोट ने मुझे और सश
#नवनीतठाकुर सूरज हूँ, हर शाम ढलता ज़रूर हूँ, पर हर सुबह फिर से जलता ज़रूर हूँ। जितनी बार गिरा हूँ, उतनी बार सीखा हूँ, हर चोट ने मुझे और सश
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