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Nitesh Gomane
माणसाने माणसाशी माणुसकीने वागावे, माणुसकीचा प्रसाद प्रत्येकाच्या हातावर द्यावा, त्यातून जे समाधान मिळते ते कुठेही विकत मिळणार नाही. ✍:-कवी नितेश गोमाणे जाणीव माणुसकीची
Nitesh Gomane
!!! माणुसकीची किम्मत !!! हे मानवा तू जागा हो ना , माणुसकी तू समजून घेणा ठेव याची तू जाण , माणुसकी हाच खरा आहे प्राण ...!!को !! जन्म घेऊनी या भूमीवर दीनदुबळ्याना द्यावा आधार कर जीवन तू छान, माणुसकी हाच खरा आहे प्राण ...!!१!! मी पणा कधी ठेऊ नको रे जन्माचे हित साधून घे रे हेच खरे आहे ज्ञान, माणुसकी हाच खरा आहे प्राण ..!!२!! ज्ञान हे सारे वाटून द्यावे सगळ्यांचं तू भले करावे हेच खरे आहे दान, माणुसकी हाच खरा आहे प्राण ....!!३!! माणुसकीची किम्मत भारी स्वार्थ त्या पुढे काहीच नाही कर जिवाचे तू रान, माणुसकी हाच खरा आहे प्राण ....!!४!! कवी -नितेश आनंदी गणपत गोमाणे पाते पिलवलि (चिपळूण ) *9326779460* माणुसकीची किंमत
vivek mokal
Kishan Gupta
किचन की रानी, तू पसीने से लतपत, पंखा बना, मुझे घुमाये जा रही हो,, चाय कब तक यूँ ही, फीकी पिलाओगी, इलायची के इंतजार में, अदरक पीसे जा रही हो। ~किशन गुप्ता #कविता #कविता #
Awanish Singh
दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। पार जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है। जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।। कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गये हैं । हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। तोड़ दी अवरोध की सारी, शिलाएँ एक क्षण में । मैं धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।। शीत वर्षा और आतप कर, न पाये क्षीण गति को। बिजलियों की कौंध में भी, पंथ गढ़ता ही रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। ©Awanish Singh (AK Sir) #कविता #कविता
Balu Khaire
भीगी हुई आँखोका मंजर न मिलेगा, घर छोडकर मत जाओ कही घर ना मिलेगा। फिर याद बहुत आएगी जुल्फो की शाम, जब धूप मे साया कोई सर न मिलेगा। आंसू को काभि ओस का कतरा न समझना, ऐसा तुम्हे चाहत का समुदर ना मिलेगा। इस ख्वाब के माहोल मे बे-ख्वाब है आँखे, जब निंद बहुत आएगी बिस्तर ना मिलेगा। ये सोचलो आखरी साया है मोहब्बत, इस दरसे उठोगे तो कोई दर ना मिलेगा ©Balu Khaire कविता कविता #lonely