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Devendra Sahis
Mili Saha
// पहली बारिश // उलझन में ऐसा उलझा मौसम की पहली बारिश भूल गया, ज़िंदगी कितनी आगे निकल गई पीछे देखना ही भूल गया, वो हथेली पर पड़ती हुई बारिश की पहली बूंद का एहसास, ज़िन्दगी के सफ़र में, जाने कब कहांँ छूट गया उसका साथ, आज बरसो बाद जब तन्हाई में, बैठा था खिड़की के पास, बादलों की गड़गड़ाहट और तेज बिजली की आई आवाज़, खिड़की से बाहर झांँककर देखा,थे उमड़ते घुमड़ते बादल, देखकर उनकी लुकाछुपी याद आ गया बचपन का वो पल, कैसे बादलों को देख कर, बारिश का इंतजार हम करते थे, मस्ती करने की सारी योजना पहले ही बना लिया करते थे, सोच ही रहा था कि सहसा ही, रिमझिम सी आवाज़ आई, बारिश की अनगिनत बूंदे, खिड़की के शीशे से आ टकराई, देखकर बारिश की बूंदों को, मन कहीं ख्यालों में खो गया, दिल के कोने से बचपन निकलकर, बारिश में भीगने चला, बेफिक्र मस्ती में झूमने लगा ऐसे मानो दुनिया से अनजान, ना माथे पर कोई शिकन ना, उलझन भर रहा ऊंँची उड़ान, कभी आसमान निहारता कभी पानी में छप छपाक करता, तनिक भी चिंता नहीं बीमार होने की, ऐसी मस्ती है करता, आंँखों को बंद कर मुस्कुराहट के साथ बाहें फैलाता है ऐसे, दोनों हाथों से जैसे बारिश की, हर बूंद को समेटना चाहता, इतने में कुछ दोस्त भी पहुंँच जाते लेकर काग़ज़ की कश्ती, फिर तो रोके भी किसी के न रुकेगी ऐसी चल पड़ती मस्ती, ज़मीन पर गड्ढों में भरे जल में तैर रही अनगिनत कश्तियांँ, पानी उछलते एक दूजे पर, मासूमियत भरी वो मनमर्जियांँ, पुकार रहे मम्मी पापा दादा दादी, किसी की नहीं है सुनता, बरसात की आखिरी बूंँद तक, बचपन मस्ती करना चाहता, हाथ पैरों में लगे कीचड़ कपड़ों का भी हो गया है बुरा हाल, पर मन है कि रुकने को तैयार नहीं ये बचपन भी है कमाल, तभी अचानक ही बंद हो गई खिड़की तेज़ हवा के झोंके से, मानों ख़्वाब में था और जगा दिया है किसी ने गहरी नींद से, मैं तो वहीं बैठा था, किन्तु ये मन बचपन की सैर कर आया, कल्पना में ही सही, मौसम की पहली बारिश में भीग आया, कितनी सुंदर वो तस्वीर, सच में कितना सुखद एहसास था, बारिश की बूंदों में भीगा हुआ एक एक क्षण बेहद खास था, हमने खुद को इतना उलझा कर रखा है, इस दुनियादारी में, कि खुद के लिए जीना ही भूल गए जीवन की इस क्यारी में, हर रंग मिलेगा भीगकर तो देखो मौसम की पहली बारिश में, दिल फिर से बच्चा बन जाएगा, मौसम की पहली बारिश में।। ©Mili Saha #Barsaat // पहली बारिश // उलझन में ऐसा उलझा मौसम की पहली बारिश भूल गया, ज़िंदगी कितनी आगे निकल गई पीछे देखना ही भूल गया, वो हथेली पर पड़त
Vaghela Jateen
કાઇ પણ સ્થગિત નથી રહેતું આ દુનિયા માં ખાલી આપણે અટકેલા છીએ .. એમ લાગે છે પરંતુ પાછળ ફરીને જોવો તો તમને જોઈને બીજા પણ અટકેલા છે બસ એને આગળ ધપાવવા તમારે અટકવાનું બંધ કરવું પડશે નયતર બધું અટકતું થશે તો પણ આ દુનિયા નઈ અટકે બસ તમારે બટકવું પડશે Translation through Google as possible Please read... काई भी नहीं रखा है इस दुनिया में हम बस फंसते दिख रहे हैं लेकिन पीछे मुड़कर देखिए
Mayank dhiman
सुसि ग़ाफ़िल
वीरान पड़ी है जिंदगी कमल खिलने के इंतजार में , दर - दर बहुत भटक लिऐ सुख पाने के इंतजार में । घने -जंगल झुलस गए हैं यहां पानी के इंतजार में , पंछी- पक्षी बिछड़ गए हैं कुछ खाने के इंतजार में । धरती सूख रही है आसमानी पानी के इंतजार में , कितनी सुहागनें रूठी हुई हैं सजना के इंतजार में । कितनी कोखें सूनी पड़ी हैं संतान के इंतजार में , कितने घर सुनसान पड़े हैं वर- वधु के इंतजार में । कितनी विधवा बेहोश हैं आखरी आश के इंतजार में , कितने सारे अन्याय मचल रहे हैं न्याय के इंतजार में । ना जाने कितने पेड़ सूख गए हैं बसंत के इंतजार में , सुशील की कलम नहीं रुकेगी इल्जाम के इंतजार में । कल के लिए मेरे सभी दोस्तों भाइयों और बहनों का धन्यवाद , जिन्होंने अपना कीमती वक्त निकालकर अच्छे-अच्छे सुझाव दिया मूड ठीक करने के लिए , ऐसे ह