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Pushpendra Pankaj
सर्वहिताय-आत्मसुखाय, सुप्रभात- ---------------------------- पल दो पल को पंछी बनकर, मुक्त गगन की सैर करें। हँसें -हँसाएं, सुख-दुख बाँटें, नहीं किसी से बैर करें।। सब हैं अपने, कौन पराया? सबकी ही चिंता 'पंकज ', आज प्रभु से यही है विनती हे प्रभु !सब पर महर करें।। सभी आपसी भेद मिटाकर, साथ-साथ रहकर तो देखो, हँसी-ठिठोली की मस्ती में, दफ़न दिलों के ज़हर करें।। अपने लिए तो सभी जिये हैं , यह जीना भी क्या जीना है। छुपा हो परहित में अपना हित, कुछ ऐसा आठों पहर करें।। पुष्पेन्द्र 'पंकज' ©Pushpendra Pankaj सर्वहिताय-आत्मसुखाय सुप्रभात
Sarita Prashant Gokhale
वृत्त:-वंशमणि ८/८/४ एकांताला एक सावली मुकली चौकटीतल्या मर्यादेतच फसली अंतरातली भेट अनोखी घडली एक छानशी जन्मखूण ती ठरली श्वास गुंफले तिच्यामधे मी माझे गझल पाकळी प्राणावरती फुलली जीर्ण घराच्या सुकल्या होत्या भिंती खांब सरकला नाती उघडी पडली डाव साधुनी घाव घातले पाठी मर्दुमकीची धमक कुठे ना दिसली स्वार्थासाठी इमान नाही विकले आत्मसुखाने ओंजळ माझी भरली किती वादळे पेल्यामधली होती संकटातही नाव स्मिताची तरली स्मिता राजू ढोनसळे ©Smita Raju Dhonsale वृत्त:-वंशमणि ८/८/४ एकांताला एक सावली मुकली चौकटीतल्या मर्यादेतच फसली अंतरातली भेट अनोखी घडली एक छानशी जन्मखूण ती ठरली
Jai Singh
ये सच है कि बहोत खुदगर्ज़ हूं मैं भला किसकी गर्ज़ से सांसे लेते हो तुम कहीं डॉलर कही रुपया कहीं येन सोना चांदी और कहीं ज़मीन है आत्मसुख संतोष आत्मसम्मान क्या मुद्रा तुम्हारी अपनी है किसके इशारों पर जीवन नृत्य करते हो तुम ये सच है कि बहोत खुदगर्ज़ हूं मैं भला किसकी गर्ज़ से सांसे लेते हो तुम सांसे लेने भर को जीवन कह दें तो इंसान होने को फिर क्या कहें मुझ में ही मैं नहीँ तो फिर मैं कहाँ हूँ मुझे मैं होने की तलब बहोत है किस तलब की चाह पर बिकते हो तुम ये सच है कि बहोत खुदगर्ज़ हूं मैं भला किसकी गर्ज़ से सांसे लेते हो तुम ये सच है कि बहोत खुदगर्ज़ हूं मैं भला किसकी गर्ज़ से सांसे लेते हो तुम कहीं डॉलर कही रुपया कहीं येन सोना चांदी और कहीं ज़मीन है आत्मसुख संत