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Kavita Ghosh
मृत्युभोज उन्हें करायें जिन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं ©Kavita Ghosh #मृत्यु भोज
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जलन-शील,मूर्ख,कमजोड़ समाज में आज भी कुप्रथाओं से लड़ने की हिम्मत नहीं ! यहाँ एक आगे बढ़ता है दूसरा टांग पकड़कर खींचता है। (मृत्यु भोज बंद हो) (मृत्यु भोज बंद हो)
SK Poetic
शास्त्रों में मृत्यु भोज वर्जित है।महाभारत में एक वाक्य मिलता है जिसमें कृष्ण कहते हैं कि कहीं भोजन तब करो जब भोजन कराने वाले और भोजन करवाने वाले का मन प्रसन्न हो।दुख के समय किसी को कहीं भोजन करने नहीं जाना चाहिए। कहीं-कहीं तो मृत्यु वाले घर को छूतक मानकर लोग भोज में नहीं जाते। किन्ही परिवारों या समुदायों में यह परंपरा से चल रहा है।संस्कार से नहीं।संस्कार तो हमारे यहां सोलह है। अंत्येष्टि के बाद कोई संस्कार नहीं है।आप यदि मृतक के नाम पर दान करना चाहते हैं तो अच्छा होगा पेट भरो को भोजन कराने से बेहतर होगा गरीब बेसहारा बच्चों को भोजन करवाएं। किसी गरीब बच्चों की फीस भरे।किसी गरीब को कंबल दे।पर मृत्यु भोज ना करें। मृत्यु भोज क्यों नहीं खाना चाहिए? हिंदू धर्म में मुख्य सोलह संस्कार बनाए गए हैं।इनमें सबसे पहला संस्कार गर्भाधान है और अंतिम व 16 वां संस्कार अंत्येष्टि है। यानी कि इन 16 संस्कारों के बाद कोई 17वां संस्कार है ही नहीं। अब जब 17 वां संस्कार की कोई बात ही नहीं कहीं गई है तो तेरहवीं संस्कार कहां से आ गया?आज हम आपको महाभारत में मृत्यु भोज से जुड़ी हुई एक कहानी के बारे में बताएंगे जिससे आपको एक हद तक समझ में आ जाएगा कि क्या वाकई में मृत्यु भोज में जाना उचित है या नहीं? इस कहानी में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने शोक या दुख की अवस्था में करवाए गए भोजन को ऊर्जा का नाश करने वाला बताया है।इस कहानी के अनुसार,महाभारत का युद्ध शुरू होने ही वाला था। भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जाकर संधि करने का आग्रह किया।उन्होंने दुर्योधन के सामने युद्ध ना करने का प्रस्ताव रखा।हालांकि दुर्योधन ने श्री कृष्ण की एक ना सुनी।दुर्योधन ने आग्रह को ठुकरा दिया। जिससे श्री कृष्ण को काफी कष्ट हुआ।वह वहां से निकल गए।जाते समय दुर्योधन ने श्री कृष्ण से भोजन ग्रहण कर जाने को कहा। इसपर श्रीकृष्ण ने कहा कि 'सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनै:' अर्थात हे दुर्योधन जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो,तभी भोजन करना चाहिए। इसके विपरीत जब खिलाने वाले एवं खाने वाले के मन में पीड़ा हो, वेदना हो,तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिए। महाभारत की इस कहानी को बाद में मृत्यु भोज से जोड़ा गया।जिसके अनुसार अपने किसी परिजन की मृत्यु के बाद मन में अथाह पीड़ा होती है,परिवार के सदस्यों के मन में उस दौरान बहुत दुख होता है।जाहिर सी बात है कि ऐसे में कोई भी प्रसन्नचित अवस्था में भोज का आयोजन नहीं कर सकता, वहीं दूसरी ओर मृत्यु भोज में आमंत्रित लोग भी प्रसन्न चित्त होकर भोज में शामिल नहीं होते।ऐसा कहा गया है कि इससे ऊर्जा का विनाश होता है।कुछ लोगों का तो ये तक कहना है कि तेरहवीं संस्कार समाज के चंद चालाक लोगों के दिमाग की उपज है।महर्षि दयानंद सरस्वती, पंडित श्रीराम शर्मा, स्वामी विवेकानंद जैसे महान ऋषियों ने भी मृत्यु भोज का पुरजोर विरोध किया है।किसी व्यक्ति की मृत्यु पर लजीज व्यंजनों को खाकर शोक मनाने को किसी ढंग से कम नहीं माना गया है। इसलिए हमें मृत्यु भोज का बहिष्कार करना चाहिए। ©S Talks with Shubham Kumar क्या मृत्यु भोज करना उचित है? #illuminate
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
Satpal Das
Sunita D Prasad
# मृत्यु भोज.... डाल गया था 'कोई' एक बीज.. उस पहाड़ की गोद में। (Read in caption) --सुनीता डी प्रसाद💐 # मृत्यु भोज.... डाल गया था 'कोई' एक बीज.. उस पहाड़ की गोद में। बंजर होते हुए भी उसने, उस बीज को
Hariom
निष्प्रभ की दुनिया
Sushant Singh Rajput quotes किससे बात करनी चाहिए थी? कौन से फ्रेंड्स कौन अपने ? वो जो मुसीबत आने पर सबसे पहले पीठ दिखाते हैं ? या वो जो किसी के घावों पर नमक छिड़कने का काम करते हैं? ये बेईमानों की बस्ती है जनाब यहां किसी के दुःख दर्द से किसी को कोई लेना देना नहीं होता ये सारे रिश्ते नाते सब सुख के साथी हैं दुःख के नहीं इंसान का सबसे बड़ा मित्र उसका अनुभव ही है बाकि सब मोह माया है अपने बच्चों को अकेला रहने की और असफलता को फेस करने की कला सिखाएं..!! - निष्प्रभ की दुनिया @nishprabhkiduniya अकेलापन दुनिया का सबसे ख़तरनाक रोग है नौकरी, बंगला, गाड़ी दुनिया की हर शोहरत बेकार है उस व्यक्ति के लिए जिसके पास एक भी कंधा ऐसा नहीं जिसप