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gaTTubaba

words...... लगा था उसको खोकर आया हूँ तबसे खुदको भी खोकर आया हूँ आइना तोड़कर आया हूँ या आँखें छोड़कर आया हूँ

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words......

लगा था उसको खोकर आया हूँ 
तबसे खुदको भी खोकर आया हूँ 

आइना तोड़कर आया हूँ 
या आँखें छोड़कर आया हूँ


कागज़ कमाकर लाया हूँ 
या जेब गँवाकर आया हूँ 

मोती लेकर आया हूँ 
या समंदर देकर आया हूँ

©gaTTubaba words......

लगा था उसको खोकर आया हूँ 
तबसे खुदको भी खोकर आया हूँ 

आइना तोड़कर आया हूँ 
या आँखें छोड़कर आया हूँ

gaTTubaba

#Thinking शौक से लिखता हूँ कागज़ पर कुछ बातें शौकीन भी कागज़ का हूं

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White शौक से लिखता हूँ कागज़ पर कुछ बातें
शौकीन भी कागज़ का हूं

©gaTTubaba #Thinking शौक से लिखता हूँ कागज़ पर कुछ बातें
शौकीन भी कागज़ का हूं

Anjali Singhal

"कोरा कागज़ पूछ रहा है रोज़ आते हो तुम पास मेरे, और चल देते हो तुम मुझ पर लिखकर। क्या कोई छू जाता है हर रोज़ तुम्हें, एक नया ख़्वाब बनकर।।"

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Unsplash "कोरा कागज़ पूछ रहा है रोज़ आते हो तुम पास मेरे,
और चल देते हो तुम मुझ पर लिखकर।

क्या कोई छू जाता है हर रोज़ तुम्हें,
एक नया ख़्वाब बनकर।।"

©Anjali Singhal "कोरा कागज़ पूछ रहा है रोज़ आते हो तुम पास मेरे,
और चल देते हो तुम मुझ पर लिखकर।

क्या कोई छू जाता है हर रोज़ तुम्हें,
एक नया ख़्वाब बनकर।।"

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी

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Unsplash लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके,
ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं।

शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़,
वो भी बुझते-बुझते बस एक निशानी हो गईं।

इश्क़ में लिखते रहे हम हज़ारों किस्से,
मगर सच्चाई में वो सब बेमानी हो गईं।

वो कसमें, वो वादे, वो लम्हों की गहराइयाँ,
अब किताबों की तरह बंद कहानी हो गईं।

जो हमने देखा था कभी चाँद की रोशनी में,
वो उम्मीदें भी अब धुंधली कहानी हो गईं।

जिनसे रोशन था कभी हर एक कोना-ए-दिल,
वो रोशनी भी अंधेरों की मेहरबानी हो गईं।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके,
ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं।

शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़,
वो भी

संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु

चिलमन=पर्दे ख़लिश=शिकायत राफ़्ता= संबंधित दरमियां ए साहिल= मझधा, मुकद्दर(भाग्य) स्वलिखित गज़ल शीर्षक समंदर आंखों का विधा गज़ल भाव वास्त

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