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Rahul Singh
मेरी रूह तरसती है तेरी खुशबू को ए राका, तुम कहीं और महकती हो तो बुरा लगता है..!! मेरी रूह तरसती है तेरी खुशबू को ए राका, तुम कहीं और महकती हो तो बुरा लगता है..!! #rakagraphy #collabwithme #collabchallenge #lovequote #pos
Bazirao Ashish
"शशांक" तुम हो कितने निर्मल शशांक! तुम हो बिल्कुल भोले मृगांक! कोई कहे चन्दा मामा तुमको कोई पुकारे चौदहवीं का चाँद। तुम तिल-तिल घटते तिल-तिल बढ़ते। हो सोलह कलाओं के कलानिधि शशांक! निशा काल तुम हिम समान तुम ही हो रजनीपति महान तुम हो राका के ईश सदा तुम पूरण दिखते यदा कदा। तुम आते सदा अँधेरों में सुधि लेने विपदा के घेरों में। जीव जन्तु सब सो जाते हैं तुम्हरे ही पावन पहरों में। तुम हो कितने निर्मल शशांक! तुम हो बिल्कुल भोले मृगांक! ~●आशीष●द्विवेदी● ©Bazirao Ashish . "शशांक" तुम हो कितने निर्मल शशांक! तुम हो बिल्कुल भोले मृगांक! कोई कहे चन्दा मामा तुमको कोई पुकारे चौदहवीं का चाँद। तुम तिल-तिल घट
SURAJ आफताबी
युगों से लम्बित मेरे आकारों व प्रकारों को, कर स्पर्श मिथ्य ही सही सौंधित प्रतिमान नहीं देगा; शून्य तल पर खड़ा हूँ नेह के फिर वही पुराने संदर्भ लेकर, चल देगा फिर से नजरें झुकाये; वो उन्हें उत्तरित सम्मान नहीं देगा...... ( सम्पूर्ण कविता अनुशीर्षक में....) युगों से लम्बित मेरे आकारों व प्रकारों को, कर स्पर्श मिथ्य ही सही सौंधित प्रतिमान नहीं देगा; शून्य तल पर खड़ा हूँ नेह के फिर वही पुराने संदर्
Vikas Sharma Shivaaya'
देवगुरू बृहस्पति :- गुरूवार को बृहस्पति जी की पूजा होती है है जिनको देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। चार हाथों वाले बृहस्पति जी स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुंदर माला धारण किये रहते हैं, और पीले वस्त्र पहने हुए कमल आसन पर आसीन रहते हैं। इनके चार हाथों में स्वर्ण निर्मित दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरदमुद्रा शोभा पाती है। प्राचीन ऋग्वेद में बताया गया है कि बृहस्पति बहुत सुंदर हैं। ये सोने से बने महल में निवास करते है। इनका वाहन स्वर्ण निर्मित रथ है, जो सूर्य के समान दीप्तिमान है एवं जिसमें सभी सुख सुविधाएं संपन्न हैं। उस रथ में वायु वेग वाले पीतवर्णी आठ घोड़े तत्पर रहते हैं! परिवार:-देवगुरु बृहस्पति की तीन पत्नियां हैं जिनमें से ज्येष्ठ पत्नी का नाम शुभा, कनिष्ठ का तारा या तारका तथा तीसरी का नाम ममता है। शुभा से इनके सात कन्याएं उत्पन्न हुईं हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं, भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती। इसके उपरांत तारका से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं। उनकी तीसरी पत्नी से भारद्वाज और कच नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख के अनुसार, बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त करा देते हैं। बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्र:बुद्धि भूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पितम। ए सजनी लीनो लला लह्यो नन्द के गेह ! चितयो मृदु मुसिकाई के हरि सबे सुधि गेह !! इस दोहे में रसखान जी वर्णन करते है कि हे प्रिय सजनी श्याम लला के दर्शन का विशेष लाभ है ! जब हम नन्द के घर जाते है तो वे हमें मंद मुस्कान से देखते है और हम सबकी सुधबुध लेते है ! अर्थार्त उनके घर जाने से हमारी सारी परेशानियों का हल निकल जाता है ! 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' देवगुरू बृहस्पति :- गुरूवार को बृहस्पति जी की पूजा होती है है जिनको देवताओं के गुरु की पदवी प्रदान की गई है। चार हाथों वाले बृहस्पति जी स
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 27 हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥27॥ हनुमानजी ने सीताजी को (जानकी को) अनेक प्रकार से समझा कर,कई तरह से धीरज दिया और फिर उनके चरण कमलों में सिर नवाकर वहां से रामचन्द्रजी के पास रवाना हुए ॥27॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी का लंका से वापस आना हनुमानजी लंका से वापिस आते है चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥ नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥ जाते समय हनुमानजी ने ऐसी भारी गर्जना की,कि जिसको सुन कर राक्षसियों के गर्भ गिर गये॥समुद्र को लांघ कर हनुमानजी समुद्र के इस पार आए और उस समय उन्होंने किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सब बन्दरों को सुनाया॥ राका दिन पहूँचेउ हनुमन्ता। धाय धाय कापी मिले तुरन्ता॥ हनुमानजीने लंका से लौट कर कार्तिक की पूर्णिमा के दिन वहां पहुंचे,उस समय दौड़ दौड़ कर वानर बडी त्वरा के साथ हनुमानजी से मिले॥ हनुमानजी का तेज देखकर वानर हर्षित होते है हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥ मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥ हनुमानजी को देख कर सब वानर बहुत प्रसन्न हुए और उस समय वानरों ने अपना नया जन्म समझा॥हनुमानजी का मुख अति प्रसन्न और शरीर तेज से अत्यंत दैदीप्यमान देख कर वानरों ने जान लिया कि हनुमानजी रामचन्द्रजी का कार्य करके आए है॥ हनुमानजी के साथ सभी वानर श्री राम के पास जाते है मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥ चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥ और इसी से सब वानर परम प्रेम के साथ हनुमानजी से मिले और अत्यन्त प्रसन्न हुए।वे कैसे प्रसन्न हुए सो कहते हैं कि मानो तड़पती हुई मछलीको पानी मिल गया॥फिर वे सब सुन्दर इतिहास (वृत्तांत) पूंछते हुए और कहते हुए आनंद के साथ रामचन्द्रजी के पास चले॥ सुग्रीव का प्रसंग वानरों का मधुवन के फल खाना तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥ रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥ फिर उन सबों ने मधुवन के अन्दर आकर युवराज अंगद के साथ वहां मीठे फल खाये॥जब वहां के पहरेदार बरजने लगे तब उनको मुक्को से ऐसा मारा कि वे सब वहां से भाग गये॥ आगे मंगलवार को ..., 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 27 हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं क