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Lalit Saxena
हमने ख़ुद को ज़िंदा जलते देखा है रोशन दिन आँखों में ढलते देखा है सांस-सांस पीर कसमसाती रहती मुर्दा सपने पांवपांव चलते देखा है उगते सूरज के जलवे देखे हर दिन उदास शाम को भी उतरते देखा है ख़्वाहिशें, सारे ही रंग उतार देती है उम्रदराज़ को भी, मचलते देखा है दरवाजे पर नहीं कोई दस्तक हुई हर सुब्ह उन्हें वैसे गुज़रते देखा है दिन बुरे हों, तो ये दरिया भी सूखे बुलंदियों को भी, बिखरते देखा है ©Lalit Saxena ग़ज़ल
ग़ज़ल
read moreDivuu.writes
White Dear Diary, love, trust, promises सब फालतू बातें हैं😆 सच कहूं?? मर्द ज़ात से नफरत हो गई यार😊 मर्द की फितरत में ही है बदल जाना, धोखा देना, तोड़ देना।।💔 ©Divuu.writes #love_shayari सच कहूं??
#love_shayari सच कहूं??
read moreबेजुबान शायर shivkumar
White मैं अपने बारे में लिखूं भी तो क्या लिखूं थोड़ा अच्छा या काफी बुरा लिखूं !!🕊️ मैं कहानी हूं पूरी या किस्सा अधूरा लिखूं ✨ मैं कौन हूं मैं खुद को क्या लिखूं !!🕊️ अपनी उम्र से तजुर्बों में बढ़ा लिखूं ✨ या उम्मीदों की लाशों पर चला लिखूं!!🕊️ ना समझेगा कोई भला मैं क्या लिखूं✨ लोग समझते हैं सुलझा हुआ तो खुद को क्या उलझा हुआ लिखूं !!🕊️ हम अपने बारे में और जानते ही नहीं ✨ चलो छोड़ो भी आज खुद को सरफिरा लिखूं !!✨❣️ ©बेजुबान शायर shivkumar Sethi Ji Kshitija poonam atrey angel rai puja udeshi कविता कविताएं हिंदी कविता कविता कोश मैं अपने बारे में लिखूं भी तो क्या लिखूं
Sethi Ji Kshitija poonam atrey angel rai puja udeshi कविता कविताएं हिंदी कविता कविता कोश मैं अपने बारे में लिखूं भी तो क्या लिखूं
read moresc_ki_sines
White जीना हैं अकेले फिर भी लोगों के पीछे दुख के मेले हैं किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों हम अब भी अकेले हैं जलते हैं अकेले ही यादों के दरिया में भी बुझती नहीं वो आग तफ़्दिशे जलन भी झेले हैं किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों मगर और भी अकेले हैं नसीब का लिखा वो ही जाने तक़दीर का दिया हुआ दर्द_ए _नसीब हम ने भी झेले है अब इस के बाद न जाने नसीब में क्या है ना आओ साथ हमारे जिंदगी में हमारे बहुत झमेले हैं ना याद आते अब वो लम्हे ना याद आते हो तुम कभी इस कदर मेरे सफ़र में ओ मुसाफ़िर कि अब तन्हाई इस कदर मेरी यादों में घुल गई कि ना अब कोई मिलता ना अब कभी बिछड़ता शायद अब हम अपने आप से भी नहीं मिलते कि अब हम अपने ध्यान से उतरे हुए से आसुओं के रेले हैं के ना अब कभी कहना मुझसे कि साथ चलने को तुम्हारे हम अपना सब कुछ छोड़ चलते हैं अब ना मिलेंगे हम ना वो हमारी मोहब्बत मिलेंगे तो सिर्फ हम और हमारी तन्हाई जिसको दिया तुमने और हमने वो जख्म सदियों से झेले है फिर ये खेल ना खेलो हमारे साथ समझ जरा ज़ख्मी हु और टूटे हुए इस कदर की फ़िर ना जुड़ सकू दोबारा जो खेल लोगों ने सदियों से खेले हैं मत आजमा ए ज़ालिम कि आवाज़ तक नहीं आएगी मेरे दर्द कि हम अब अकेले बहुत अकेले हैं ©Sonuzwrites #good_night ग़ज़ल ✍️
#good_night ग़ज़ल ✍️
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