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Samdarshi PrajaMandal
आज गणतांत्रिक अखंड भारत प्रस्तावित 26 जनवरी 1929 लाहौर, स्थान रावी तट । प्राप्तव्य विखंडित भारत 15 अगस्त 1947 एक विखंडित राष्ट्र को लेकर कोई भी राष्ट्र पुरुष या जिंदा व्यक्ति उल्लसित नहीं हो सकता । अर्ध राष्ट्र को लेकर हम सब समदर्शी संकल्पबध्द हों, एक संपूर्ण राष्ट्र निर्माण के लिए। हम प्रतिज्ञाबद्ध हो उन बलिदानियो की संचित अभिलाषाओं की पूर्ति के लिए । संपूर्ण राष्ट्र निर्माण के लिए अखंड भारत निर्माण के लिए जय भारत , जय स्वदेश समदर्शी
समदर्शी
read moreAnkit Dixit Mohan
#HappyStorytelling शब्द शब्द संज्ञा हैं शब्द शब्द सार हैं शब्द गर सहज न हों तो शब्द शर्मशार हैं शब्द शब्द स्वर हैं शब्द शब्द मीत हैं #Poetry
read more@vijendrakrmaurya
शब्द बयां कर देते हैं, दुरियां दिल की... पर, शब्दों के लिए, अब, शब्द कहां.... @Vijendra £b💓दिल से दिल तक राधेकृष्णा #शब्द #शब्द #Nojoto
Aksk
दर्द बेचते है हम यहाँ लफ्जों में ढालकर, अगर चोट पहुँचे तो गुस्ताखी माफ़ कीजिये. ©Aksk शब्द हथियार, शब्द ही प्रहार शब्द की चोट, शब्द ही उपचार.
शब्द हथियार, शब्द ही प्रहार शब्द की चोट, शब्द ही उपचार.
read moreYishu Tiwari
( शब्द नाद है, शब्द ब्रम्ह है) निराश ना होना ए स्वर, ये तस्वीरों के जमाने चार दिन हैं, और तुम अनंत काल तक !! शब्द नाद, शब्द ब्रम्ह !
शब्द नाद, शब्द ब्रम्ह !
read moreBhushan sonar(B.G.S)
"वक्त "को थोडा वक्त' दो अच्छा वक्त जरूर आएगा... शब्द मेरे..(शब्द माझे)
शब्द मेरे..(शब्द माझे)
read moresaloni toke alfazon ki khumari
समय समय की बात है। कल तक जिसके लिये नजरे respect मे झुकती थी। आज वही नजरे नफरत मे झुकती है। 🙄😏😏 ©saloni toke alfazon ki khumari mere शब्द शब्द #WritingForYou
mere शब्द शब्द #WritingForYou #विचार
read moreAtit Arya
शब्द मैं शब्द हुँ, अकेला,तन्हा,कमजोर और हारा हुआ, लेकिन अगर किसी और शब्द से मिल जाऊ, तो लोगो के दिलो पर असर करता हुँ, किसी को रुला देता हुँ, तो किसी को हँसा देता हुँ, और बिन बोले ही सबकुछ सीखा देता हुँ, मैं शब्द हुँ, मेरी कोई पेहचान नही अकेले, मेरा कोई वाजूद नही अकेले, सिर्फ अकेले मैं शब्द हुँ, मैं कुछ नही कर सकता अकेले, लेकिन जब मिल जाऊ किसी और शब्द से, तो दुनिया जीत लेता हुँ, लोगो के दिलो पर राज कर, उनको अपनी ओर खीच लेता हुँ, मैं शब्द हुँ, इंसानो के लिए अपनी बात कहने का एक जारिया हुँ, रोते हुए के लिए सहारा हुँ, तो किसी के लिए सिखने की चाभी, मैं जज्बाताें का जंजाल हुँ, तो मैं अंकही किताब हुँ, मैं शब्द हुँ, इंसानो ने ही मुझे बानाया हैं, बनाकर फिर इस्तेमाल होना सिखाया हैं, उनका जैसा मन किया वैसा इंस्तेमाल किया, और मुझको कागज के पन्नो मे समेत बेच दिया, उनका हक हैं मुझपर, क्याेंकि उन्होनें ही तो बनाया हैं, मैं तो अकेला निशब्द हुँ, किसी का साथ पाने से मैं पूरा शब्द हुँ, मैं शब्द हुँ, शब्द मैं शब्द हुँ,
शब्द मैं शब्द हुँ,
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