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White दहलीज़ पर कविता" बहुत पछताए ,घर की लांघ के "दहलीज़"हम लड़कपन में, बड़ा भरोसा था जिनके वादे पे, मौसम की तरह रंग बदल गए कुछ दिन में। अनुजकुमार हेयय क्षत्रिय © # दहलीज़ पर कविता"
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Unsplash जय माँ शारदा विधा-सरसी छंद १६/११ पदान्त २१ भगवत गीता में मिलता है,सब ग्रंथों का सार। मानव जीवन की खातिर है,जीवन का आधार। जो गीता प्रतिदिन पढ़ते हैं, कभी न खाते खार। गीता ज्ञान बिन नहीं होगा, मानव का उद्धार।। स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari #Book #poem #छंद #कविता #भक्ति भक्ति भजन
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*महाकुंभ(२०२५)* प्रयागराज में लगा है लोगों का हुजूम। महाकुंभ की खुशी में लोग रहे सब झूम। पतित पावनी नदियों का पुनीत यह संगम, तीर्थराज प्रयाग परम पावन देव भूम।। दुनिया से लोग आते करने शाही स्नान। अमृत बूंद जहां गिरी यही वह पावन स्थान। सभी संत इस पुनीत अवसर पर आते हैं, संतों के अखाड़े हैं महाकुंभ की शान।। कई सदियों से यहाँ पर लगता है मेला। कुछ आते समूह में कोई सिर्फ अकेला। हर दिन लंगर चलते रहते सुबह शाम हैं, झोली भर घर जाते जेब न हो इक धेला।। गंगा यमुना सरस्वती का पवित्र संगम। त्रिवेणी नदियों का दृश्य है बहुत विहंगम। महाकुंभ अवसर पर देव धरा पर आते, शाही स्नान हेतु आता संतों का जंगम।। कुछ दर्शन को आते ,कुछ लेने गुरु दीक्षा। हर एक जन को मिलती यहाँ सनातन शिक्षा। भूखे को भोजन, प्यासे को पानी मिलता, कोई खाली न जाता सबको मिलती भिक्षा।। बारह -बारह से गुणा तब आता यह पर्व। सनातनी इस पर्व पर हमें बहुत है गर्व। पावन त्रिवेणी तट की महिमा बड़ी अपार, जिसकी गाथा गाते जन ,देव, मुनि, गन्धर्व।। स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari #महाकुंभ2025 #मुक्तक #कविता #भक्ति #संगीत भक्ति भजन
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a-person-standing-on-a-beach-at-sunset *हरि नाम नहीं भजते हैं* इक मृगनयनी के चक्कर में पागल बनकर फिरते हैं महाकुंभ में आए श्रद्धालु हरि नाम नहीं भजते हैं इक लड़की मोनालिसा जिसने सबका चैन चुराया माला बेचन वाली ने सब के ऊपर जादू चलाया कुंभ के सारे श्रद्धालु अब उसकी माला जपते हैं महाकुंभ में आए श्रद्धालु हरि नाम नहीं भजते हैं इस सुन्दरी का महाकुंभ में हो रहा प्रचार- प्रसार मोनालिसा की ही खबरें छाप रहे सारे अखबार मोहित रुप के सम्मुख सारे धर्म- कर्म न लिखते हैं महाकुंभ में आए श्रद्धालु हरि नाम नहीं भजते हैं जानें कैसा रोग लगा है? इन भक्त जनों के मन को छोड़कर त्रिवेणी पावन तट को पूज रहे बस तन को भजन कीर्तन छोड़ रुप के पीछे सारे चलते हैं महाकुंभ में आए श्रद्धालु हरि नाम नहीं भजते हैं तन के पीछे पागल फिरते होते चरित्रवान नहीं जो नारी करे अनादर होता उसका सम्मान नहीं धर्म- कर्म के काम छोड़कर रुप ताक़ते रहते हैं महाकुंभ में आए श्रद्धालु हरि नाम नहीं भजते हैं सालों की प्रतीक्षा के बाद यह शुभ अवसर आया है एक सुन्दरी के चक्कर में अपना समय गँवाया है हरि भक्ति को छोड़ सभी बस वीडियोग्राफी करते हैं महाकुंभ में आए श्रद्धालु हरि नाम नहीं भजते हैं कुछ समय की यह तन सुन्दरता रुप काम न आएगा अन्त समय में बस संग दान, धर्म, कर्म ही जाएगा भक्ति भजन को छोड़ रुप के क्यों चक्कर में पड़ते हैं महाकुंभ में आए श्रद्धालु हरि नाम नहीं भजते हैं स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम" उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ©Ramji Tiwari #हरिनामनहींभजतेहैं #कविता #महाकुंभ२०२५ #भक्ति Hinduism
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