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B.L Parihar
बरसों बित गए शहर /गाँव के मेलें देखे हुए..... अब खुद कमाते हैं .... सालो बीत गयें बाबूजी को गुजरे हुए.........😔 miss u Papa ... (: #Babuji
#maxicandragon
॥बाबूजी॥ ———— आज एक अधिकारी से मिला वे सेवानिवृत ( रिटायर ) हो चुके हैं। उनके 3 पुत्र हैं जो मल्टीनेशन कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं, किंतु इसके बाद भी अधिकारी महोदय अपनी पत्नी के साथ अकेले ही रहते हैं। उनके पुत्र मेरे मित्र तो नही हैं किंतु उनसे मेरा परिचय अवश्य है, मैंने प्रणाम के बाद उनसे पूछा- आपके पुत्र कैसे हैं ? वे मायूस नही दिखे किंतु उनके स्वर में अधिकारी का भाव था, वे बोले- अच्छे ही होंगे.. ? मैंने कहा- मतलब ? वे बोले- मतलब हमारे बच्चे होना ना होना कोई मायने नही रखता। वे अपने में व्यस्त हैं, अपनी सेवा सुविधा ही उनका परम कर्तव्य है। हमारी देख भाल या ख़ैरियत की हमे जरूरत नही है कभी कभार मिलने आ जाते हैं और हॉ पैसे देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर देते हैं, क्योकि वे जानते हैं कि हमें पैसों से ही प्यार और अकेलेपन की आवश्यकता है, पैसे है तो हमारा सबकुछ हैं। मेरी आँखों में अपने लिए रुचा देखकर वे और खुलते हुए बोले- जबकि इन बच्चों के जन्म से लेकर विवाह होने तक हम दोनों पति पत्नी किसी भी समय इनके लिए उपलब्ध नही रहते थे, उनको बड़ा करने में हमने कोई मेहनत नही की, हमारा जीवन सिर्फ पैसे थे। जिन बच्चों के सुखद भविष्य के बजाय हमने अपने संसार, घर परिवार की परवाह की आज उन्हीं बच्चों की हमे जरूरत क्यो होगी | सुनकर मुझे दुःख हुआ उन्हें थोड़ा बहुत,और मै अपने घर की ओर बढ़ गया, तभी मेरे मस्तिष्क में अपने पूज्य दादा से जुड़ी हुई एक घटना ताज़ा हो गयी। हुआ ये था की हमारी पूज्य दादीजी जिनकी उम्र उस समय क़रीब ८८, ८९ वर्ष की थी वे कुछ समय से बीमार चल रहीं थीं अशक्तता के कारण वे चल भी नही पा रहीं थीं, तो पूज्य दादाजी मुझे और मेरे बड़े भाई को साथ लेकर दादीजी को बड़े अस्पताल में दिखाने के लिए निकल पड़े, जब हम गाडरवारा स्टेशन पर पहुँचे तो हमने पूज्य बाबूजी को सुझाव दिया की हम कुली बुला लेते हैं वो सामान उठा लेगा और हम दोनों भाई बारी-बारी दादीजी को उठा लेंगे जिससे उन्हें प्लैट्फ़ॉर्म पर चलना नही पड़ेगा। बाबूजी ने हमारे सुझाव को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहा- जी नही वे आपकी नही, मेरी माँ हैं। उन्हें आप लोग या कोई कुली नही मैं स्वयं ही उठाऊँगा, मेरी माँ ने मेरे जन्म से लेकर बड़े होने तक पहले मुझे अपनी कोख में उठाया और फिर मुझे गोद में उठाया इसलिए उनको उठाना मेरा धर्म भी है और आनंद भी है। पुत्र की उपस्थिति में पौत्रों को दायित्व सौंपना ना मुझे रुचिकर लगेगा और ना ही मेरी माँ के लिए प्रीतिकर होगा। तुम लोगों को सामान उठाने के लिए कुली बुलाना है तो बुला लो किंतु मेरी माँ के लिए उनका पुत्र ही पर्याप्त है क्योंकि माता पिता भार नही हमारे जीवन का आभार होते हैं। ये कहते हुए उन्होंने दादीजी से आनंदमग्न होते हुए कहा- माताराम, आज हम आपको कोतकैयाँ उठाएँगे, उन्होंने दादी जी को बहुत प्रेम से अपनी पीठ पर रखा और आनंद से स्टेशन के अंदर की ओर बढ़ गए। आज जब वर्तमान में सुनी हुई दास्तान और अतीत में घटी हुई घटना पर विचार करता हूँ तब पाता हूँ, कि हमारे बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं। एकल परिवारों में बच्चे हमेशा ये देखते हैं कि माता पिता अपने बच्चों की सुख, सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखते हैं, तब उन्हें लगता है कि बच्चों के सुख के लिए जीवन समर्पित करना माता पिता का कर्तव्य होता है। तब हमें बहुत तकलीफ़ होती है हम अफ़सोस करते हैं की जब उनके सुख के लिए हमने अपना जीवन खर्च कर दिया वे आज हमें छोड़कर अपने बच्चों को भगा रहे हैं। किंतु इसमें गलती उनकी नही है हमारी है, यदि हमारे बच्चों ने हमें अपने माता पिता की सेवा, सुख, सुविधा के लिए तत्पर देखा होता तब वे बड़े होकर इस सिद्धांत का पालन पूरी निष्ठा से करते की बच्चों का कर्तव्य अपने माता पिता के सुख, सुविधा का ध्यान रखते हुए उनकी सेवा करना होता है। आज संयोग से उनका जन्मदिन याद आया उनका पुण्य स्मरण करते हुए उनके द्वारा पूर्व में कही गयी एक बात आज भी मुझे याद है उन्होंने कहा था- भो**के साथ रहो ना रहो तुम्हारे बच्चे तुम्हारे सामने मरेंगे~ नष्टभवतु #Babuji #SadharanManushya