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Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
"सबसे बड़ा गरीब" वो मनुष्य होता है,सबसे बड़ा गरीब बिक चुका होता है,जिसका ज़मीर उनसे लाख गुना अच्छे है,फकीर जो जिंदादिल मन से है,बड़े अमीर वो अमीर होकर मांगते है,नित भीख जिसके दिल है,लालच के बेहद करीब भगवान के दरबार मे वो है,बड़े गरीब जो दूसरों की मांगते है,उनसे तकलीफ कहता है,साखी सुनो सब साथी मित्र दीपक ही दूर कहते है,अंधेरे के चरित्र वो व्यक्ति हरगिज हो न सकता,गरीब जिसके इरादों में तम मिटाने का इत्र वो इस दुनिया असल मे होते है,गरीब जो पैसा होकर भी उठाते है,तकलीफ़ ऐसे अमीरों से तो अच्छे होते है,गरीब जो वर्तमान में जीकर गुनगुनाते है,गीत खुद की नजर में तब बनता व्यक्ति गरीब जब खो देता है,वो मन का संतोष मीत साखी की नजर में वो होते है,बड़े गरीब जिनके पास पैसा परंतु नही,कोई मित्र ईश्वर की दृष्टि में वो है,सबसे बड़े,गरीब जिनके पास चींटी के बराबर नही,दिल जिनके विचार,गरीब वो भी कम न गरीब उनकी भी साँसों में बहती है,गरीब समीर उनकी न दिखती,आईने में कोई तस्वीर जिनके आत्म शीशे तोड़ चुके,स्वयं पथिक दुनिया मे दीन पैदा होना गुनाह नही,सुधीर गरीब मरते है,जिनके पास न कर्म तदबीर अपने कर्मों से तोड़ सकते,गरीबी जंजीर अपने खुद के कर्मों से बनती है,तकदीर जो जीता खुदी की जिंदगी,वो है,अमीर उसे आती अच्छी नींद,जो मन से है,अमीर पैसे नही तोली जा सकती,अमीरी चरित्र सम्पन्नता तब,जब सूखी रोटी लगे,अमृत बाकी तो सब जमाने बिना निशाने के तीर जिनके जिंदा है,शरीर पर बिक चुके जमीर दिल से विजय विजय कुमार पाराशर-"साखी" ©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" #cactus गरीब