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azad satyam
लिखना चाहता हूं तुम्हे, दिल के कोरे कागज पर लेकिन बयां कर सके जो तारीफ तेरी, वो अनकहे अल्फ़ाज़ कहां से लाऊं 💌🕊️अनकहे अल्फ़ाज़💖💞 #ek_panchi_diwana_sa ©azad satyam लिखना चाहता हूं तुम्हे, दिल के कोरे कागज पर लेकिन बयां कर सके जो तारीफ तेरी, वो अनकहे अल्फ़ाज़ कहां से लाऊं 💌🕊️अनकहे अल्फ़ाज़💖💞 #ek_panchi_diw
लिखना चाहता हूं तुम्हे, दिल के कोरे कागज पर लेकिन बयां कर सके जो तारीफ तेरी, वो अनकहे अल्फ़ाज़ कहां से लाऊं 💌🕊️अनकहे अल्फ़ाज़💖💞 ek_panchi_diw
read moredilkibaatwithamit
White तुझे लिखना ही मेरा काम क्यूँ है तेरा याद आना ही इलहाम क्यूँ है जुलाई में अगर टूटा था ये दिल तो फिर ये #फरवरी बदनाम क्यूँ है कभी नफ़रत को भी सूली चढ़ाओ मुहब्बत का ही क़त्ल ए आम क्यूँ है हर इक इंसान को चाहत है इसकी फिर उलफ़त इस क़दर बे दाम क्यूँ है जुदाई बेवफ़ाई और आँसू मुहब्बत का यहीं अंजाम क्यूँ है तड़पना और रोना शेर लिखना यहीं सब इश्क़ का इनआम क्यूँ है ... ©dilkibaatwithamit तुझे लिखना ही मेरा काम क्यूँ है तेरा याद आना ही इलहाम क्यूँ है जुलाई में अगर टूटा था ये दिल तो फिर ये #फरवरी बदनाम क्यूँ है कभी नफ़रत को
तुझे लिखना ही मेरा काम क्यूँ है तेरा याद आना ही इलहाम क्यूँ है जुलाई में अगर टूटा था ये दिल तो फिर ये #फरवरी बदनाम क्यूँ है कभी नफ़रत को
read moreshamawritesBebaak_शमीम अख्तर
White ©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं.... जार जार होते अल्फ़ाज़ बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कतार अश्क, अलूदा चश्म से आलूदा कजरारी पलके.... वो कुछ बुने हुए ख्वाब कुछ गिले_शिकवे....?जो इब्न_आदम इल्म रखते हुए भी,औरत के अंतर्मन को जानबूझकर बेझिझक उसके द्वारा नजर अंदाज कर देना.... हां मैं लिखती हूं तरतीब से लफ्जों को पिरोकर, तमाम आलमी औरत के अंतर्मन को,उनके मन में चलते शोरगुल करते सांय सांय सन्नाटे को.... गर रही हयात तो मै बहुत कुछ लिखूंगी इन इब्न आदम पर भी .... #Shamawritesbebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर ©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं.... जार जार होते अल्फ़ाज़ बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कता
©मुझें लिखना आता है तभी तो मैं लिखती हूं.... जार जार होते अल्फ़ाज़ बिन्त हव्वा के हिस्से के रंजो अलम,वो मायूसी के आलम,वो शामो_ सहर जारों कता
read morePoet Kuldeep Singh Ruhela
Unsplash ये पत्ते भी न क्यों किताब लिए बैठे हैं लगता है ये भी कोई सबक याद किए बैठे हैं कोरे पन्नो पर लिखना चाहते है ये भी कुछ सबक शायद लगता हैं ये भी कुछ बोझ दिल में लिए बैठे हैं ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #leafbook ये पत्ते भी न क्यों किताब लिए बैठे हैं लगता है ये भी कोई सबक याद किए बैठे हैं कोरे पन्नो पर लिखना चाहते है ये भी कुछ सबक शायद
#leafbook ये पत्ते भी न क्यों किताब लिए बैठे हैं लगता है ये भी कोई सबक याद किए बैठे हैं कोरे पन्नो पर लिखना चाहते है ये भी कुछ सबक शायद
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