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Dharamveer Verma
#OpenPoetry कविता...औरत ____________ इक औरत ही सही,मुझकों भी आसमान दे दो मत नोचों,मत नोचों,मेरे सुकोमल पंखों को उडने दो खूब,मुझकों भी उडान दे दो इक औरत ही सही,मुझकों भी आसमान दे दो। मैं,नारी ही नहीं,कुछ और भी हूँ मैं,ही बेटी,मैं ही माता इक प्रेम की डोर भी हूँ बन सके घर का कोना-कोना स्वर्ग से सुन्दर ऐसी खुशियों,ऐसे रिश्तों की अटूट डोर भी हूँ। कुछ ज्यादा नहीं,चाहिए ये जहाँ तुझसे बस थोड़ा सा सम्मान दे दो न देखें मुझे,गिद्ध सी निगाहें ऐसे जज्बातों के इंसान ऐसा इक जहान दे दो। dharamveer Verma'धर्म' कविता... औरत
Parasram Arora
कविता की एक क्षुद्र सी पंक्ति भी महाकव्य बनने का दम रखती हैँ उनकेलिए जो संवेदनाओ की स्पृहा से सदैव स्पंदित रहते हैँ जो अतीत की दैदीत्यमान गाथा को भविष्य से जोड़ कर देखते हैँ और जी मौन की समृद्ध ध्वनि को भी सुन सकने मे समर्थ हैँ कविता और महाकाव्य......
Anamika verma
😊" मैं खग हूं " 😊 मैं खग हूं , खग की बात बताती हूं। पास मेरे रंग बिरंगे पंख हैं, जिन्हें फैला, नीले आसमां की ओर उड़ जाती हूं। मैं खग हूं , खग की बात बताती हूं। स्वतंत्र हूं , स्वतंत्रता से मैं, हर रोज गीत गुनगुनाती हूं। अन्न के दानों को, मैं फुदक-फुदक कर खाती हूं। मैं खग हूं , खग की बात बताती हूं। भोर होते ही, सबसे पहले चहचहाती हूं , संध्या होते ही,फिर से आशियाना में आ जाती हूं मैं खग हूं। खग की बात बताती हूं। ©Anamika verma कविता और शायरी #sagarkinare