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Rakesh Kumar Dogra
अभी कुछ दिन पहले मै किसी शादी मे गया था। रात वहॉ एक लेखक दोस्त के यहॉ रूका । रात काफी देर तक असहनशीलता पर वाद विवाद हुआ। सोने के लिए उसने रिजाई देते हुए कहा दोस्त इस पलग मे थोडे खटमल हैं किसी तरह रात गुजार लेना। खैर रात काटी खुजलाते-२। सुबह उठकर चलने लगा तो दोस्त बोला उस पलगं मे खटमल नही थे। मजाक किया था। पर लेखक हूं न । Status of Mind किस तरह एक दी हुई परिस्थिती को बदल जाता है इससे अच्छा उदाहरण मै नही दे सकता। जैसे कोई भी बुखार आजकल डेंगू हो सकता है। तो पुरूस्कार लौटाना कौन सी आफत है। मैं पात्र हूं। पात्र में क्या है वो पात्र का नहीं है। सूत्रधार का है। Amazing Amazon
Sneh Prem Chand
काश कोई योग गुरु ऐसा भी होता जो हमें ऐसा अनुलोम विलोम करना सिखा देता, जिसमें अंदर सांस लेते हुए संग प्रेम,सौहार्द,अपनत्व और स्नेह ले जाएं, और बाहर सांस छोड़ते हुए अपने भीतर के ईर्ष्या,द्वेष, अहंकार,क्रोध,लोभ,काम सब छोड़ देवें।। दिल की कलम से ©Sneh Prem Chand अनुलोम विलोम #Hope
Umang Parmar
रंगमंच के पात्र तो जिंदगी के छात्र है, जो जिंदगी सिखाती है, वो रंगमंच दिखाती है।। #रंगमंच #पात्र
Vasundhara Chaudhary
#अन्यथा बदनामी एवं मजाक का पात्र बन सकते हैं
Vishal Vaid
तेरे कूचे में जो बीमार नज़र आते है मुझ को सारे ही ये फनकार नज़र आते हैं मैं तेरी सोच में निकलूं जो कभी सहरा में साथ में चलते सौ अश्ज़ार नज़र आते हैं तूने जो चूमा है इन आंखो के कशकोलों को खोटे सिक्के मुझे दीनार नज़र आते हैं वो फलक जिसमे सितारें ही जड़े रहते थे हिज्र में देखूं तो बस खार नज़र आते हैं नींद से जगने का दिल करता नही है मेरा ख्वाब तेरे जो लगातार नज़र आते हैं जब ये जिंदा थे,दर-ओ-बाम न थे हासिल, पर दफ़न कब्रो में जमींदार नजर आते हैं इश्क से पहले सुख़न-वर लगे, सब को नीरस फिर यही लोग मज़ेदार नजर आते हैं अशजार ***पेड़ो का समूह कश्कोल***भिक्षा पात्र सुखनवर*** शायर, कवि
Vishal Vaid
तेरे कूचे में जो बीमार नज़र आते है मुझ को सारे ही ये फनकार नज़र आते हैं मैं तेरी सोच में निकलूं जो कभी सहरा में साथ में चलते सौ अश्ज़ार नज़र आते हैं तूने जो चूमा है इन आंखो के कशकोलों को खोटे सिक्के मुझे दीनार नज़र आते हैं वो फलक जिसमे सितारें ही जड़े रहते थे हिज्र में देखूं तो बस खार नज़र आते हैं नींद से जगने का दिल करता नही है मेरा ख्वाब तेरे जो लगातार नज़र आते हैं जब ये जिंदा थे,दर-ओ-बाम न थे हासिल, पर दफ़न कब्रो में जमींदार नजर आते हैं इश्क से पहले सुख़न-वर लगे, सब को नीरस फिर यही लोग मज़ेदार नजर आते हैं अशजार ***पेड़ो का समूह कश्कोल***भिक्षा पात्र सुखनवर*** शायर, कवि