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खत्री श्रेय अरोरा हिमान्शु
मैंने उन्हें अपना माना अपना समंझ कर लेकिन वो तो मुझे छोड़ गए पराया कर गए गेर मान कर #खत्री
Omprakash Khatri
नीड़ डाल तृण पर , जीवन है यह ऋण पर। भड़क रही है ज्वाला - सी, अतीत के मलाल - सी। है यह विशुद्ध रूप का, प्रकाश अतुल अनूप का। बुला रही है, तप्त मही, तरंग लहू की बह रही। यह तेज अचल भाल पर, विकट कष्ट काल पर। सम्बंध है यह औचित्य के, निर्लज्ज,दुष्ट,प्रपंच के। रूष्ट हो यह मही खड़ी, पुकारती यह अविचल अड़ी। क्या , ऋण इसका चुकाऊ, शीश चरण पर झुकाऊ। बह रही है धार देखो!इस नवीन प्रपात से, छपक-छपक कर पड़ रही,नीर बूंदे प्रपात से। शीर्ष से उठा यह,मही की रज पखारने, धूल से इस मही की,सागर का वियोग पाटने। अन्न को यह उदर से अपने, सह दरार ,वक्ष मे अपने। मनुज के उदर को तृप्त करने, घाव लेती , उदर पर अपने। फिर भी निर्लज्ज मनुज कितना, स्वार्थ से,यह सहज इतना। फिर भी मही का प्रेम देखो, मनुज पर इसका क्षेम देखो। ©Omprakash Khatri मही का क्षेम # ओम खत्री
मोहन यादव
मोहन यादव खत्री पहाड़ देवी जी प्रसिद्ध मंदिर विंध्यवासिनी
Sabir Khan
#OpenPoetry लिखने वाला चाहे जैसा भी हो, उसके लेख को पढ़ें-भाव को पढ़ें, उसकी लेखनी की प्रशंसा करें। आपकी प्रशंसा में वो सामर्थ्य है जो कि लेखक का जीवन बदलने के लिये काफ़ी है। .....भावार्थ यह है कि किसी की निजी जिंदगी पर टिप्पणी न करते हुए उसके अच्छे कार्य की प्रशंसा करें, उसका जीवन परिवर्तन निश्चित है। लेखक
Shikha Dubey
लेखक अपने भीतर उमड़े शैलाबों में डूब कर उभरता है तब जा कर वो कुछ लिख पाता है देर तलक वो खुद से लड़ता है तब जा कर वो एक मुकाम पाता है कालिख (स्याही) से कुछ लिखता है तब कहीं जा कर इतिहास पन्नों पर छपता है शब्दों से संग्राम में कुछ चुन कर लाता है तब जा कर उन्हें ,कुछ तहजीब , कुछ तरीके से कतार में लगाता है फिर कतार में लगे शब्दों को पन्नों पर बिठाता है तब कहीं जा कर वो लोगों के दिलों को छू पाता है लेखक
Sabir Khan
#Pehlealfaaz लिखने वाले समाज के रचयिता हैं, समाज लिखने वालों से ही चलता है। अब लिखने वाले ही स्वयं सोच लें कि उनको समाज कैसा बनाना है। लेखक
Vinit Kumar
लेखक अच्छे शब्द इस्तेमाल करने से नहीं बनते बल्कि बनते है समाज की बुर्राईओं के खिलाफ आवाज उठाकर बनते हैं और जब दिल के मरीज खुद को लेखक कहते हैं तो लगता है कौन नाराज हैं समाज से लेखनी,कागज़ या ईश्वर। #लेखक