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Mona a

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Khalil Siddiqui

Arpan Varu

साँस लेती hui lash

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White उम्र गुज़री है माँजते ख़ुद को
साफ़ हैं पर चमक नहीं पाए

डाल ने फूल की तरह पाला
ख़ार थे ना महक नहीं पाए

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Bharat Bhushan pathak

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White जीवन ये नदिया बहती-सी धारा।
ढूँढे यहाँ पे सभी किनारा।

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Khairul

दीक्षा गुणवंत

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मैं उसको इस कदर आंख भर के देखूं,
वो जाए दूर फिर भी आह भर के देखूं।
एक इंसान ने यूं ही इस कदर पा लिया उसे,
मैं उसे खुद के किस ख्वाब में देखूं?

चंद लम्हे बिताए उसके साथ में,
पर सपने हजार मैं देखूं।
साथ में होकर भी रास्ते अलग से हैं हमारे,
खुद अकेले चलकर उसे किसी और के साथ मैं देखूं।।

कुछ कह कर भी किसी के एहसास-ए-मोहब्बत से 
वाकिफ होने से महरूम है ये दुनिया।
यूं तो बिन कहे, बिन सुने समझ लेते हैं एक दूजे को,
उसकी आंखों में खुद के लिए प्यार बेशुमार मैं देखूं।।

यूं बिखरी जुल्फें, यूं बदहवास सी हालत, यूं आंखों के दरमियां घेरे काले काले,
उसे पसंद हूं मैं इन खामियों के साथ।
वो कहे मेहताब का नूर मुझे,
उसकी नजरों से आईने में खुद का दीदार हजार बार मैं देखूं।।

वो मेला, वो झूले, वो रास्ता तेरे साथ में,
याद है वो आखरी दिन मेरा हाथ तेरे हाथ में।
वो बिंदी, वो लाली, फिर भी कुछ कमी सी थी श्रृंगार में,
वो तेरी पसंद के झुमके पहन खुद को बार-बार मैं देखूं।।

मोहज़्ज़ब(सभ्य) मोहब्बत और ये बेइंतेहा चाहत हमारे दरमियां,
एक पायल उसने अपने हाथों से पहनाई जो मुझे।
कुछ इस तरह छुआ मेरे पैरों से मेरे दिल को,
उस लम्हे को तन्हाई में हजार बार मैं देखूं।।


बेबसी का आलम कुछ इस कदर है मेरे आशना,
वो साथ होकर भी साथ नहीं है मेरे।
मेरा होकर भी मेरा ना हो सका वो,
उसे पाया भी नहीं, फिर भी खो देने का आज़ार(दर्द) मैं देखूं।।

-लफ़्ज़-ए-आशना "पहाड़ी"









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Suchin

Aryan Sharma

qais majaz,dark

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White तगाफुल ए मगरूर 

मैंने देखा तुम्हें पाने का ख़्वाब
लेकिन हमेशा मिले मुझे काले गुलाब 
दूर तेरी सोने के पानी चढ़ी महफ़िल से हम चले 
जब हसीन ख़्वाबों से आँखें खुली
कीचड़ में फ़िर थे फंसे 
जज़्बातो ने कि है ख़ुशी से ख़ुदकुशी 
चाहा जब तुमसे इकरार करना ,मिली सिर्फ बेरुखी 
मैं बदल गया हूँ इतना 
अब खुद को भी जनता नहीं 
अब ना तुम रखना राब्ता  कभी 
बेरुखी खामोशी अश्क़ मुफ़्लिसी 
जिंदगी में सबसे बड़ा हादसा यही
माना थी अजब दीवानगी 
लब सिले थे तुम्हारे थी तुम्हें तलब ए खामुशी 
हार गए हम हम सारी बाज़ी 
जला दिया है मैंने दफ़न कर दिया वो माज़ी 
अब उम्र भर के लिए तेरे मेरे दरमियाँ रह जाएगी बस ये ख़ामोशी 
समझा देना अपने चाहने वालों को,जो तंज़ कसते है मुझपे 
इस कलम में है अब वो कुव्वत 
ज़हर भरे तीर से तेज़ अल्फाज़ फेकूंगा सोचा भी नहीं होगा  
मिलेगा नहीं इलाज ज़ख्म होंगे ला इलाज आ रहा है इंकलाब 
तेरे लिए इस कलम में सिर्फ़ भरा है तेज़ाब
एक बार होता है इश्क़ दोबारा नहीं 
तेरे उस गुनाह का होगा कफ़्फ़ारा नहीं
मोहबत क्या तुम मेरी नफरत के क़ाबिल नहीं 
ऐसे के साथ जोड़ दूँ मुस्तकबिल मैं ऐसा पागल नहीं 
अब मोहबतो कि महफ़िल में हम बिल देके बैठे हैं 
तेरे जैसे जाने कितने मुझे दिल देके बैठे हैं

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