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Gurdeep Kanheri
बचपन की मौजों की बात अब कहाँ वो निराले दिन और वो सुहानी रात कहाँ वो छुपते- छुपाते दोस्त और वो मुलाकात कहाँ अब शाम होते रात है वह शह और मात कहाँ ©Gurdeep वो दिन वो रातें
K_Sanket
आखरी वो लम्हा आखरी वो पल कैसे बताये वो दिन कैसे जिये थे हमने, एक तरफ कॉलेज का वो आखरी दीन दुसरी तरफ प्रोफेशन का वो पेहला दीन दोनो के बीच कैसे उलझ गये थे हम कैसे बताये वो दिन कैसे जिये थे हमने, कॉलेज के वो हसीन लम्हे सोने ना देने वाली वो मस्ती भरी राते दोस्तों के साथ बीताये गये वो खुबसुरत पल कैसे बताये वो दिन कैसे जिये थे हमने, क्लास रूम मे बिताये हुये वो हसीन यादें बोर्ड पे टीचर्स डे का किया गया सेलिब्रेशन टेबल पे गाई गयी वो मस्ती वाली गाणे लेट आने पे क्लास मे करी गयी वो पनिशमेंट कैसे बताये वो दिन कैसे जिये थे हमने, बस आखरी वो लम्हा था आखरी वो पल था जिस दीन वो यादो का कॉलेज छोडणा था उस दीन बितायी गयी वो रात अभी भी पलको मे छुपायी हुइ हे जैसे समंदर मे बारिश का पाणी कैसे बताये वो दिन कैसे जिये थे हमने, कैसे बताये वो दिन कैसे जिये थे हमने... - संकेत कामीनवार आखरी वो लम्हा आखरी वो पल कैसे बताये वो दिन कैसे जिये थे हमने...
Thoughts With M.K.
रात क्या होती है , हम से पुछिये... तुम तो सोये, और सवेरा हो गया । ©Thoughts With M.K. वो रातें... #Moon
अनुज यादव
वो कातिल रातें जब हम तारों की बातें करते थे पतझड़ के सूने मौसम में बहारों की बातें करते थे। वो कातिल रातें
CP RAHUL
काळी सिया रातों में एक तस्वीर झपकती पलकों से, काळजै उतरतीं है ख्वाबों ही ख्वाबों में मैं मेरे बिफरे हाथों में मिलणे की लकीर बणाता हूँ इतणे में एक झपकी, स्याही उलट जाती है मेरा हाथ, मेरी आँख्या, मेरे ख़्वाब सबऽ नीले हो जातें अ काळी सियाह रातें भी। ........ सीपी राहुल वो #रातें #राजस्थान
Sachin Pathak
जो, अंधेरा ही काफी हों नींद आने को, फिर मजबूर क्यूँ हैं, जग जग रातें बिताने को, यूँ ही नहीं आँखें मूँदी जाती, सूरत चाहिए तेरी पलके झुकाने को, वो जगी रातें....
सौरभ कुमार "गाँगुली"
मना लो खुशियाँ जो मेरे काम का नहीं! मैं क्यों मनाऊं वो दिन जो मेरे राम का नहीं॥ न कोयल की कोई तान बजती है! न पौधों पे कोई शाख सजती है! न फूलों का कोई ख्वाब पलता है! न भगवे में कोई सूरज ढलता है! फिर मनाने में कोई नाम सा नहीं! मैं क्यों मनाऊं वो दिन! जो मेरे राम का नहीं! न धूप ने कोई घूंघट चढ़ा लिया! न हवाओं ने कोई पहरा बढ़ा लिया! न सृजन का कोई बीज फूटा है! न किसी चांद से चकोर रूठा है! मेरा देश मोहताज किसी शाम का नहीं! मैं क्यों मनाऊं वो दिन! जो मेरे राम का नहीं॥ सौरभ कुमार "गाँगुली! ©Ye No 1 YaRi Hai कैसे मनाऊं वो दिन जो मेरे राम का नहीं! #2021
Pawan Kumar
जिंदगी एक चाहत का सिलसिला है कोई मिल जाता है कोई बिछड़ जाता जिसे मांगते हैं हम अपनी दुआओ में वो किसी और को बिन मागे ही मिल जाता है ©Pawan Kumar हम घंटों करते थे जिनसे बातें , हाय हम कैसे भूलूँ वो रातें ...!!! #YouNme
vicky bhardwaj
उन काली रातों मे एक शख्स रौशनी की तरह दिख गया, हैरत तो हमें तब हुई जब वो शख्स मुसकुरा के मेरी नजरो को छु गया !! ©vicky bhardwaj वो काली रातें #Darknight