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Richa Mishra
जिम्मेदारी की चाह में उज्ज्वल भविष्य प्राप्त में प्रतिदिन करता हैं ; वह बेजोड़ मेहनत ! जिसके शुक्रगुजार यह मनुष्य जाति कभी नही कर सकती धन्यवाद क्योंकि मजदूर वह हैं जो रातों रात झोपड़ी को महल में तब्दील करता हैं ।। #मेहनतकीमिसाल #मजदूरों_की_भी_मजबूरिया_होती_हैं_साहब #मजदूरों_को_समर्पित #मजदूरीकासंघर्ष #मजदूरीकीदास्तां
Richa Mishra
जिम्मेदारी की चाह में उज्ज्वल भविष्य प्राप्त में प्रतिदिन करता हैं ; वह बेजोड़ मेहनत ! जिसके शुक्रगुजार यह मनुष्य जाति कभी नही कर सकती धन्यवाद क्योंकि मजदूर वह हैं जो रातों रात झोपड़ी को महल में तब्दील करता हैं ।। #मेहनतकीमिसाल #मजदूरों_की_भी_मजबूरिया_होती_हैं_साहब #मजदूरों_को_समर्पित #मजदूरीकासंघर्ष #मजदूरीकीदास्तां
santosh bhatt sonu
घरों से दूर यूं त्योहार मनाना, मजबूरी ही तो है। बस नाम बड़ा है प्रदेश की नौकरी का असल में मजदूरी ही तो है। मजदूरी
दूध नाथ वरुण
हम बंदे मजदूर हैं लोगों, हमे मजदूरी में शर्म नही। मजदूरी है काम हमारा, इससे बड़ा कोई कर्म नहीं।। ©दूध नाथ वरुण #मजदूरी
Vikas samastipuri
हूं मैं मजदूर मजदूरी हमारी पेशा है मंत्री जी की क्या बात करे उनका न लेखा न जोखा है । कवि-विगेश ©Kavi Kumar Vigesh मजदूरी #Labourday
संतोष सिंह
पिता नहीं चाहता बोझ देना.......... मजदूर की मजबूरी है, दो पैसे घर की जरूरी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, इसलिए घर - स्कूल की दूरी है। न कोई दिल की दूरी है, गरीब है, ख्वाहिशें पूरी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, उसकी सफ़र - ए - ज़िन्दगी अधूरी है। जीनत घर में जरूरी है, मानता हूं, तालीम की दूरी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, मजदूरी ही उसके घर धुरी है बेटा, पिता के पायजामा की डोरी है, बेटा, मां के हाथों की चूड़ी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, ये उसके घर की मजबूरी है। बाल मजदूरी भी चोरी है, मगर दुनिया कहां छोड़ी है। पिता नहीं चाहता बोझ देना, सरकार भी इसपर मुंह मोड़ी है। ....... संतोष सिंह #मजदूरी #बाल_मजदूरी
shabdokapitara
। मज़दूर। घर का एक कमाने वाला, भर दिन बोझ उठता है, परिवार का पेट भर कर, कभी खुद भूखा सो जाता है।। पैदल लौटता हर रोज़ अपने घर, लेकिन दूसरों की गाड़ी चलाता है, चप्पल इसके घिसे पांव के, पर हाथ की लकीर बनाता है।। पढ़ाई भले ना की इसने, लेकिन समय पर घंटी बजाता है, छुट्टी होते ही विद्यायल की, बच्चो का प्यार पता है।। बड़े - बड़े दफ्तरों के बाहर, अपना शीश झुकाता है, दरवाज़े का दरबारी बनकर, रोटी ये कमाता है।। जिस काम से हम घबराते, वो शौक से कर जाता है, दो वक्त के पैसे पाकर, वो मजदूर कहलाता है।। #shabdokapitara मजदूरी #InspireThroughWriting
Kamal Singh
थी उम्र उसकी पढ़ने की थी उम्र उसकी खेलने की परिवार की हालत उसके तंग थी घर की शान्ति उसके भंग थी गरिबी ने बचपन छीना हाथ से खिलोने छिने छिना उसका बालपन छिना उसका लडकपन #बाल मजदूरी