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Best मजदूरी Shayari, Status, Quotes, Stories

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dimple

#डायरी_के_पन्ने #अधूरी_तमन्ना #जीते_जी #कोई_आप_सा #D_arpan #कुछ_हम_कहें #कुछ_तुम_कहो #सबसे_बड़ा #मजदूरी #गांव लाइफ कोट्स प्रेरणादायक मोटिवेशनल कोट्स सक्सेस कोट्स मोटिवेशनल कोट्स समस्याओं पर कोट्स इन हिंदी

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कर रहे है शहर में मजदूरी l
जबकि गांव में खेत पड़ा  ll

©Dimple Kumar #डायरी_के_पन्ने #अधूरी_तमन्ना #जीते_जी #कोई_आप_सा #D_arpan #कुछ_हम_कहें #कुछ_तुम_कहो #सबसे_बड़ा #मजदूरी #गांव  लाइफ कोट्स प्रेरणादायक मोटिवेशनल कोट्स सक्सेस कोट्स मोटिवेशनल कोट्स समस्याओं पर कोट्स इन हिंदी

Prakash Vidyarthi

Ghumnam Gautam

White   खटे है दिन मगर क्यों शाम-घर आती है मजदूरी?
तुम्हें वेतन मुबारक़ हो मुझे अच्छी है मजदूरी
मैं सूनी एक खिड़की को तका करता हूँ सुब्ह-ओ-शाम
मेरी मजदूर आँखों को झलक उनकी है मजदूरी
#मजदूर_दिवस

©Ghumnam Gautam #safar #वेतन #मजदूरी 
#मुबारक़ #ghumnamgautam

दूध नाथ वरुण

Rajesh vyas kavi

श्रम के पसीने से _ क्या नहीं बनाया मैने।
पूछता हूं आप सभी से क्या सही पाया मैने।।
कुछ मिला न मिला _ छोड़ा नहीं श्रम कभी_
मैं परिश्रमी परिश्रम ही कमाया मैने।।

© Rajesh vyas kavi श्रम दिवस _
#श्रम 
#परिश्रम 
#मेहनत 
#मजदूर 
#मजदूरी 
#कर्म

Walden_Raj...

जो भी काम करना है। #मजबूरी से नहीं #मजबूती से करो। यारों ! क्योंकि ? मजबूरी से अगर काम करना पड़े तो वो #मजदूरी है । 😄😄😄 #MajesticWords

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Krishna B. Gautam

Parul Sharma

मंदिर में पानी भरती वह बच्ची चूल्हे चौके में छुकती छुटकी भट्टी में रोटी सा तपता रामू ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।

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मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
    चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
      भट्टी में रोटी सा तपता रामू
 ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू 
रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता           
      चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
 कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
 खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
 किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
 दीवार की ओट से खड़ी वो उदासी
  है बेबस, है लाचार इन मासूमों की मायूसी
  दिनरात की मजदूरी है मजबूरी
  फिर भी है भूखा वह, भूखे माँ-बाप और बहन उसकी।
   कुछ ऐसा था आलम उस पुताई वाले का
   पोतता था घर भूख से बिलखता।
 कुछ माँगने पर फूफा से मिलती थी मार लताड़।
 इसी तरह बेबस शोषित हो रहे हैं
   कितने ही बच्चे बार-बार।
 न इनकी चीखें सुन रहा, न नम आँखें देख रहा
      वक्त, समाज, सरकार!!!
 होना था छात्र, होता बस्ता हाथ में,
 इनका बचपन भी खेलता,
 साथियों व खिलौनों के साथ में।
  पर जकड़ा !!
  गरीबी,मजदूरी,भुखमरी और बेबसी ने इनके बचपन को!
   शर्मिंदा कर रही इनकी मासूमियत समाज की मानवता को।
     दी सरकार ने...
 जो स्कूलों में निशुल्क भोजन पढाई की व्यवस्था
  पेट भरते है उससे अधिकारि ही ज्यादा।
 फिर क्या मिला ?
       इन्हें इस समाज से
   बना दिया सरकार ने..
 बस एक " बाल श्रमिक दिवस"इनके नाम से।
                पारुल शर्मा मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
भट्टी में रोटी सा तपता रामू
ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।

Parul Sharma

#childlabour मंदिर में पानी भरती वह बच्ची चूल्हे चौके में छुकती छुटकी भट्टी में रोटी सा तपता रामू ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे

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मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
भट्टी में रोटी सा तपता रामू
ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू 
रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे
किसी तिराहे चौराहे पर बनाता सिलता सबके टूटे चप्पल जूते।
दीवार की ओट से खड़ी वो उदासी
है बेबस, है लाचार इन मासूमों की मायूसी
दिनरात की मजदूरी है मजबूरी
फिर भी है भूखा वह, भूखे माँ-बाप और बहन उसकी।
कुछ ऐसा था आलम उस पुताई वाले का
पोतता था घर भूख से बिलखता।
कुछ माँगने पर फूफा से मिलती थी मार लताड़।
इसी तरह बेबस शोषित हो रहे हैं
कितने ही बच्चे बार-बार।
न इनकी चीखें सुन रहा, न नम आँखें देख रहा
वक्त, समाज, सरकार!!!
होना था छात्र, होता बस्ता हाथ में,
इनका बचपन भी खेलता,
साथियों व खिलौनों के साथ में।
पर जकड़ा !!
गरीबी,मजदूरी,भुखमरी और बेबसी ने इनके बचपन को!
शर्मिंदा कर रही इनकी मासूमियत समाज की मानवता को।
दी सरकार ने...
जो स्कूलों में निशुल्क भोजन पढाई की व्यवस्था
पेट भरते है उससे अधिकारि ही ज्यादा।
फिर क्या मिला ?
इन्हें इस समाज से
बना दिया सरकार ने..
बस एक " बाल श्रमिक दिवस"इनके नाम से।
 पारुल शर्मा #ChildLabour
मंदिर में पानी भरती वह बच्ची 
चूल्हे चौके में छुकती छुटकी
भट्टी में रोटी सा तपता रामू
ढावे पर चाय-चाय की आवाज लगाता गुमशुदा श्यामू रिक्से पर बेबसी का बोझ ढोता चवन्नी फैक्ट्रीयों की खड़खड़ में पिसता अठन्नी
सड़कों,स्टेशनों,बसस्टॉपों पर भीख माँगते बच्चे भूखे अधनंगे
कचरे में धूँढते नन्हे हाथ किस्मत के टुकड़े
खो गया कमाई में पत्थर घिसने वाला छोटे

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