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Anu Roy
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- नज़्म हम आपसे उठाते हैं । आपको देख मुस्कराते हैं ।।१ आज बरसो हुए लिए फेरे । गिफ्ट तुमको चलो दिलाते हैं ।।२ प्यार कब बाँटते यहाँ बच्चे । प्यार तो और ये बढाते हैं ।।३ हाथ जब भी लगा तेरे आटा । रुख से लट तब हमीं हटाते हैं ।।४ जब भी आयी विवाह तारीखें । घर को खुशियों से हम सजाते हैं ।।५ घर के बाहर कभी न थी खुशियाँ । सोचकर शाम घर बिताते हैं ।।६ दीप बुझने न दूँ मुहब्बत का । नाम का तेरे सुर लगाते हैं ।।७ है खुशी का महौल घर में अब । बच्चे किलकारियां लगाते हैं ।।८ हाथ मेरा न छोड देना कल । जी न पाये प्रखर बताते हैं ।।९ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- नज़्म हम आपसे उठाते हैं । आपको देख मुस्कराते हैं ।।१
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं । कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१ लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।। न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२ मनाएं उन्हें हम भला आज कैसे । जिन्हें आज अपना खुदा जानते हैं ।।३ मिटेगा नहीं ये कभी रोग दिल का । यहाँ लोग करना दगा जानते हैं ।।४ मुझे बस है उम्मीद अपने सनम से । कि देना वही इक दुआ जानते हैं ।। ५ न रहता मेरा दिल कभी दूर उनसे । मगर लोग सारे जुदा जानते हैं ।।६ ठहरती नहीं है नज़र उन पे कोई । तभी से उन्हें हम बला जानते हैं ।।७ नही प्यार तू उस तरह कर सकेगा । वो करना हमेशा जफ़ा जानते हैं ।।८ न पूछो प्रखर तुम हँसी वो है कितना । कहूँ सच तो सब अप्सरा जानते हैं ।।९ ३०/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो रहते कहाँ हैं पता जानते हैं । कि उनकी सभी हम अदा जानते हैं ।।१ लगा जो अभी रोग दिल को हमारे ।। न मिलती है इसकी दवा जानते हैं ।।२ मन
ARTI JI
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल:- तू फ़िदा है हमीं पे जताती नहीं । क्या मुझे देख तू मुस्कराती नहीं ।।१ थाम लूँ थाम तेरा मैं कैसे भला । प्यार का मैं वहम दिल बिठाती नहीं ।।२ साथ चलना तुम्हारे अलग बात है । साथ पर अजनबी का निभाती नहीं ।।३ जिनसे रिश्ता जुड़ा है यहाँ प्यार का । देख उनको कभी मैं रुलाती नहीं ।।४ प्रेम उनका करें कैसे जाहिर यहाँ । माँग सिंदूर क्या मैं सजाती नहीं ।।५ दौड़ आयेगा वो एक आवाज़ में । पर उसे भी कभी मैं बुलाती नहीं ।।६ प्यार का सोचकर आज अंज़ाम मैं । कोई रिश्ता भी देखो बनाती नहीं ।।७ है सड़क पर बहुत आज मजनूं पड़े । मैं नज़र यार उनसे मिलाती नहीं ।।८ भूल तुमसे हुई है जताकर वफ़ा । जा प्रखर केश तुझ पर लगाती नहीं ।।९ ०६/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- तू फ़िदा है हमीं पे जताती नहीं । क्या मुझे देख तू मुस्कराती नहीं ।।१ थाम लूँ थाम तेरा मैं कैसे भला । प्यार का मैं वहम दिल बिठाती नहीं ।
GoluBabu
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- उनकी बातों का एतबार मत करना । ऐसे ही दरिया पार मत करना ।।१ इस तरह इंतजार मत करना । हुस्न वालों से प्यार मत करना ।।२ प्यार करते बहुत सुना उससे । इसका लेकिन करार मत करना ।।३ खा लिया ठोकरें बहुत तुमने । जान को अब निसार मत करना ।४ मुफ्त में दे रहा तुम्हें ये दिल । इसका तुम भी व्यापार मत करना ।।५ अपने जैसा गरीब ही समझो । मुझको यूँ दरकिनार मत करना ।।६ बात ऊँची कभी यहाँ करके । हम को खुद पे सवार मत करना ।।७ हर गली चापलूस बैठे हैं । तुम उन्हें होशियार मत करना ।।८ हार जाते हो बार बा देखा । जीत की अब हुँकार मत करना ।।९ प्यार में सौदे भी लगे होने । अब प्रखर तुम उधार मत करना ।।१० १२/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- उनकी बातों का एतबार मत करना । ऐसे ही दरिया पार मत करना ।।१ इस तरह इंतजार मत करना । हुस्न वालों से प्यार मत करना ।।२ प्यार करते बहुत
Ravendra
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- ख्वाब आँखों में क्या पला था तब । छोड़कर जब सनम गया था तब ।।१ खत वहीं पे जला दिया था तब । बेवफ़ा जब सनम हुआ था तब ।।२ वक्त पे मैं पहुँच नहीं पाया । प्यार नीलाम हो चुका था तब ।।३ फासला चाह के किया उसने । प्यार का सिलसिला रुका था तब ।।४ कैसे कर ले यकीं सितमगर पे । उसकी हर बात में दगा था तब ।।५ राह कोई नजर न थी आती । पास कुछ भी न तो बचा था तब ।।६ खेल हम जाते जान की बाजी । साथ कोई नही खड़ा था तब ।।७ अब तो आँखों से बस बहे पानी । जख्म़ ऐसा हमें मिला था तब ।।८ दिल का सौदा करें प्रखर कैसे । प्यार में ही ठगा गया था तब ।।९ ०६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- ख्वाब आँखों में क्या पला था तब । छोड़कर जब सनम गया था तब ।।१ खत वहीं पे जला दिया था तब ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल उसके होंठो पे दुआ हो जैसे । फूल पत्थर पे खिला हो जैसे ।।१ दिल में इक दर्द उठा हो जैसे । तीर फिर दिल में चुभा हो जैसे ।।२ क्यों उसे देख के ये है लगता । खुलते होंठो को सिला हो जैसे ।।३ हाथ हाँथों में सनम ये लेकर । दूर कुछ साथ चला हो जैसे ।।४ उनकी बातों से यही लगता है । दिल में कुछ और छुपा हो जैसे ।५ वो पुकारेगा यकीं है मुझको । फिर भी लगता वो खफ़ा हो जैसे ।।६ जिस तरह कर रहा दिलवर खिदमत । बाद बरसों के मिला हो जैसे ।।७ इस तरह हाँफता है वो उठकर । खुद से जंग लड़ा हो जैसे ।।८ इस तरह देखता है वो मुड़कर । नींद से आज जगा हो जैसे ।।९ ०५/०३/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल उसके होंठो पे दुआ हो जैसे । फूल पत्थर पे खिला हो जैसे ।।१